शिक्षिका उषा सागर की कविता- प्रगतिशील नारी की अभिलाषा
युग युग से हर नारी का है मन -मनोरथ
स्वतंत्रता, समानता का समानाधिकार मिले
समाज के हर एक पहलू और कार्य में नारी
कदम से कदम मिलाकर संग पुरुष के चले
नारी शक्ति को सशक्त बनाने
इनका समाज में अस्तित्व बढ़ाती
स्वयं की स्वतंत्रता को देती प्राथमिकता
स्वतंत्रता का मूल्य, अर्थ, महत्त्व समझती
संकल्पित हो जीवन में अपने
स्वतंत्र निर्णय खुद, खुद का लेती
स्वाधीनता संग आनन्दित होकर
रक्षक बन उसकी, संघर्ष करती रहती
समानाधिकारिता को महत्वपूर्ण समझना
अधिकारों का आबंटन हो
या समाज का स्थानांतरण होना
व्यापार हो या हो धार्मिक अनुष्ठान
घर हो या पूरा समाज
राजनीति और सामाजिक क्षेत्रों में
अपनी सक्रियता का रखती ध्यान
अभिवृद्धि देखने की आशा रखती
शिक्षा, ज्ञान और आत्म संवर्द्धन का
निर्विघ्न करती कर्तव्य का निर्वहन
नहीं चाहती है अनावश्यक बंधन (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
स्वावलंबी बन अपनी क्षमता विकसित करती
हर क्षेत्र में अपनी सक्रियता निभाने की कोशिश करती
देश, समाज हो या हो परिवार
देकर अपना सदा योगदान
करना चाहती सबका समानोद्धार
आगे बढ़कर सदैव समाज में
सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहती
दृढ़ संकल्पित होकर सदा
प्रगति का परचम लहराना चाहती
प्रगति मार्ग पर चलते रहना
आत्मनिर्भर हो स्वाभिमान से जीना
पड़े न किसी भी नारी को
घुटनभरा जीवन यूं जीना
हर मानव,नर हो या नारी हो
उन्नत समाज की परिभाषा है
प्रगतिशील नारी की भी तो
अंततः यही अभिलाषा है।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।