Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

September 11, 2025

हिमवंत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की पुण्य तिथि पर दी गई श्रद्धांजलि

आज हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की पुण्य तिथि एवं हिंदी दिवस का कार्यक्रम हिमवंत कवि चन्द्र कुवर बर्तवाल शोध संस्थान सोसाइटी की ओर से  देहरादून में मालती रावत निःशुल्क ऑक्सीजन बैंक के सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गिरधर पंडित ने हिमवंत कवि चन्द्र कुवर बर्त्वाल के जीवन पर विस्तार से चर्चा की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने बताया कि कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल ने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का ‘कालिदास’ मानते हैं। उनकी पुस्तक सम्पूर्ण काव्य ग्रंथ की सह संपादक रही कुसुम रावत ने कहा कि उनकी कविताओं में प्रकृतिप्रेम झलकता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चमोली जनपद के मालकोटी पट्टी के नागपुर गांव में 20 अगस्त 1919 को चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म हुआ। उनके पिता भूपाल सिंह बर्तवाल अध्यापक थे। चंद्र कुंवर बर्तवाल की शुरुवाती शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। उसके बाद पौड़ी के इंटर कॉलेज से उन्होंने 1935 में उन्होंने हाई स्कूल किया। उन्होंने उच्च शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद में ग्रहण की। 1939 में इलाहाबाद से स्नातक करने के पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय में उन्होंने इतिहास विषय से एमए करने के लिये प्रवेश लिया। इस बीच उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई और वे 1941 में अपनी आगे की पढ़ाई छोड़ गांव आ गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कवि चंद्र कुंवर प्रकृति की खूबसूरती को अपनी लेखनी के माध्यम से बयां करते थे। समय साक्ष्य से रानू बिष्ट ने कहा कि जो भी उनके मन में रहता कागज पर कलम की मदद से उकेर देते। कहा जाता है कि वे अपने लिखे काव्य, कविताओं को ना तो कहीं प्रकाशित करने के लिए देते ओर ना ही किसी पत्रिकाओं में देते। समाज सेवी सुरेंद्र कुमार कहा कि उनपर शोध कर रहे कई शोधतारतियो ने पी एच डी व डी लिट भी की है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चंद्र कुंवर बर्त्वाल कवितायें लिखते और अपने पास रख लेते, बहुत हुआ तो अपने मित्रों को भेज देते। इसे दुर्भाग्य ही कहे कि वे अपने जीवन काल में अपनी रचनाओं का सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशन नहीं कर पाये। उनके मित्र पं शम्भू प्रसाद बहुगुणा को उनकी रचनाये सुव्यवस्थित करने का श्रेय जाता है, जिन्होंने उनकी 350 कविताओं का संग्रह संपादित किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

डा. उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं व गीतों का प्रकाशन किया था। शोध संस्थान के सचिव रहे डॉक्टर योगंबर सिंह बर्तवाल ने भी उनकी रचनाओं को संग्रह करने व उनपर काम करने के लिए चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के माध्यम से उनके काम को सामने लाया। 14 सितम्बर 1947 को आकस्मिक 28 साल की उम्र में प्रकृति के चितेरे कवि इस दुनिया को अलविदा कह गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने बेहद ही कम उम्र में अपनी लेखनी के माध्यम से वो कर दिखया, जिसे लिखने, बयां करने के लिए किसी साहित्यकार को दशकों का अनुभव चाइए होता है। डा. उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं का प्रकाशन किया है। उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हज़ार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

मृत्यु पर आत्मीय ढंग से और विस्तार से लिखने वाले चंद्रकुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि थे। इस अवसर पर शंकर चंद रमोला, डा मीनाक्षी रावत, प्रभा सजवाण, प्रमेन्द्र बर्तवाल, सतेंद्र बर्तवाल, प्रकाश थपलियल, डॉक्टर गोगिल, डॉक्टर गुणानंद बलोनी, सत्य प्रकाश चौहान, यशवीर चौहान, मानवेंद्र बर्तवाल, ललित मोहन लखेड़ा, शिवानी, संचालन मोहन सिंह नेगी ने अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष मनोहर सिंह रावत ने की।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

Bhanu Prakash

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *