नहीं रहे डॉक्टर योगंबर बर्तवाल, हिंदी साहित्य में रहा उनका अहम योगदान
उत्तराखंड की राजधानी दून चिकित्सालय से सेवानिवृत्त डाक्टर योगंबर बर्तवाल का 75 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। आज सोमवार 28 अगस्त को उन्होंने देहरादून के कैलाश हॉस्पिटल में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह डेंगू से संक्रमित थे। सीपीएम, उत्तराखंड पीपुल्स फोरम, एसएफआई सहित विभिन्न राजनैतिक सामाजिक संगठनों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया। साथ ही हिंदी साहित्य में दिए गए उनके योगदान को याद किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ. योगंबर बर्तवाल पूर्व मुख्यमंत्री नारायण तिवारी के चिकित्सा सलाहकार भी थे। शारीरिक रूप से विकलांगता कभी उनकी सामाजिक एवं साहित्य रचना यात्रा में आढ़े नहीं आई। वह गढ़ कवि चन्द्र कुंवर बर्तवाल साहित्य समिति के कर्ताधर्ता में से थे। उन्होंने दून अस्पताल में लम्बे समय तक अपनी सेवाएं दी। दून अस्पताल में सेवारत रहने के दौरान वह गढ़वाल के दुर्गम इलाकों से आए मरीजों के नाश्ते और भोजन की व्यवस्था अपने घर से करने में भी चूक नहीं करते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गढ़वाल की पुरानी पीढ़ी के नेताओं की कुंडलियां उन्हें मुंह जबानी याद थी। वह लेखन के भी धनी थे। उन्होंने कई किताबें लिखी और कई किताबों का संपादन भी किया। प्रसिद्ध कवि चंद्रकुंवर बर्तवाल के कविता संसार से हिंदी साहित्य को अवगत कराने में भी उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। वह चंद्रकुंवर बर्तवाल शोध संस्थान के अध्यक्ष भी थे। इसके माध्यम से वह हर वर्ष 20 अगस्त को चंद्रकुंवर बर्तवाल की जन्म तिथि को बड़े गौरव के साथ मनाते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ. योगम्बर सिंह बर्तवाल समाज के लिए आदर्श थे। लगभग दो पांडुलिपियों के लेखक डॉक्टर बर्तवाल के लगभग 300 दुर्लभ पत्र, डायरियां आदि भारत सरकार के रिकॉर्ड में भी दर्ज हैं। जीवन के अन्तिम दिनों तक डॉक्टर बर्तवाल लेखन में लगे रहे। उन्होंने पत्रकारिता और साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उनके योगदान समाज सदैव याद करेगा।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।