ब्रिक्स सम्मेलन के लिए दक्षिण अफ्रीका रवाना हुए पीएम मोदी, डॉलर के मुकाबले हो सकती है ब्रिक्स करेंसी पर चर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 से 24 अगस्त तक आयोजित होने वाले 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए आज यानी मंगलवार को दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग के लिए रवाना हो गए हैं। दक्षिण अफ्रीका और ग्रीस की यात्रा से पहले पीएम मोदी का बयान सामने आया है। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से यह बयान जारी किया गया है। इस सम्मेलेन में क्या नतीजा निकालता है, ये तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इसमें आर्थिक सहयोग पर चर्चा हो सकती है। साथ ही डॉलर के मुकाबले अपनी ब्रिक्स करेंसी को लेकर भी चर्चा की संभावना है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बयान के अनुसार पीएम ने कहा कि मैं दक्षिण अफ्रीका की अध्यक्षता में जोहान्सबर्ग में आयोजित होने वाले 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के निमंत्रण पर 22-24 अगस्त 2023 तक दक्षिण अफ्रीका गणराज्य का दौरा कर रहा हूं। मैं जोहान्सबर्ग में मौजूद कुछ नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें करने को लेकर भी उत्सुक हूं। ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोटाकिस के निमंत्रण पर मैं 25 अगस्त 2023 को दक्षिण अफ्रीका से एथेंस, ग्रीस की यात्रा करूंगा। इस प्राचीन भूमि की यह मेरी पहली यात्रा होगी। मुझे 40 साल बाद ग्रीस की यात्रा करने वाला पहला भारतीय प्रधानमंत्री होने का सम्मान मिला है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इससे पहले विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने सोमवार को कहा कि जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स (ब्राजील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन (BRICS summit) के मौके पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की द्विपक्षीय बैठकों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। हालांकि, उन्होंने पीएम मोदी (PM Modi) और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) के बीच मुलाकात होने की संभावना पर कोई सीधा जवाब नहीं दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ब्रिक्स क्या है
ब्रिक्स दुनिया की पाँच सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह है। ब्रिक्स अंग्रेज़ी के अक्षर ‘B R I C S’ से बना वो शब्द है, जिसमें हर अक्षर एक देश का प्रतिनिधित्व करता है। ये देश हैं ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका। ये वो देश हैं जिनके बारे में कुछ जानकारों का मानना है कि साल 2050 तक वे विनिर्माण उद्योग, सेवाओं और कच्चे माल के प्रमुख सप्लायर यानी आपूर्तिकर्ता हो जाएंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उनका मानना है कि चीन और भारत विनिर्माण उद्योग और सेवाओं के मामले में पूरी दुनिया के प्रमुख सप्लायर हो जाएंगे, जबकि रूस और ब्राज़ील कच्चे माल के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता हो जाएंगे। ब्रिक्स देशों की जनसंख्या दुनिया की आबादी का लगभग 40 फीसद है और इसका वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा लगभग 30 फीसद है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
आर्थिक मुद्दे पर एक साथ काम
ब्रिक्स देश आर्थिक मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ के बीच भारी राजनीतिक विवाद भी है। इन विवादों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सबसे अहम है। इस साल दक्षिण अफ़्रीका ब्रिक्स का अध्यक्ष है और वहां इस संगठन का 15वां शिखर सम्मेलन आयोजित हो रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ब्रिक्स से जुड़ना चाहते हैं कई देश
इस संगठन का सदस्य बनने के लिए कोई औपचारिक तरीक़ा नहीं है। सदस्य देश आपसी सहमति से ये फ़ैसला लेते हैं। ब्रिक्स का मुख्यालय चीन के शंघाई में है। ब्रिक्स के सम्मेलन हर साल आयोजित होते हैं और इसमें सभी पांच सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होते हैं। 2020 तक नए सदस्यों को इस समूह से जोड़ने के प्रस्ताव पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था, लेकिन इसके बाद इस समूह को विस्तार देने पर चर्चा शुरू हुई। फिलहाल अल्जीरिया, अर्जेंटीना, बहरीन, मिस्र, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इस समूह से जुड़ने के लिए अपने आवेदन दिए हैं। वहीं अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, बेलारूस, कज़ाख़स्तान, मेक्सिको, निकारागुआ, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सेनेगल, सूडान, सीरिया, थाइलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्की, उरुग्वे, वेनेजुएला और ज़िम्बाब्वे ने भी इसकी सदस्यता में अपनी रुचि दिखाई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
क्या डॉलर की बादशाहत करेंगे खत्म
क्या डॉलर के जरिये अमेरिका की पूरी दुनिया में बादशाहत को ब्रिक्स देश खत्म कर सकते हैं। इन सवालों का सही जवाब तो बाद में आएगा, लेकिन ब्रिक्स देश भी आपस में मिलकर अपनी करंसी लाने पर विचार कर रहे हैं। 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में अपनी करेंसी लाने की घोषणा हो सकती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पिछले साल रूस-यूक्रेन में जंग छिड़ने के कारण रूस को दुनियाभर के कई देशों में प्रतिबंध झेलना पड़ा। इसका असर वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ा। रूसी सांसद अलेक्जेंडर बाबाकोव का कहना था कि ब्रिक्स देश भुगतान के लिए नई करंसी बनाने की तैयारी में है। ऐसे में सवाल है कि कैसी होगी ब्रिक्स करंसी और क्या ये देश मिलकर डॉलर को पीछे छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ब्रिक्स मुद्रा अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देगी
ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देश कथित तौर पर आपस में व्यापार के लिए एक सामान्य मुद्रा के निर्माण की खोज कर रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका में आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में अगस्त 2023 में जल्द से जल्द एक नई वित्तीय व्यवस्था की घोषणा की जा सकती है, जिसे एक सामान्य ब्रिक्स मुद्रा में अनुवाद करने की क्षमता के साथ देखा जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत, चीन लगातार कर रहे हैं प्रयास
भारत डॉलर को वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में रुपये से बदलने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। नई दिल्ली डॉलर की कमी का सामना कर रहे देशों को अपने व्यापार भुगतान को भारतीय रुपये में निपटाने की पेशकश कर रहा है। देश का लक्ष्य अपने निकट पड़ोस में “आपदा प्रूफ” देशों को बनाना है और जिसके साथ यह महत्वपूर्ण व्यापार मात्रा साझा करता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ब्रिक्स के सम्मेलन
ब्रिक्स का 14वां शिखर सम्मेलन 23 और 24 जून 2022 को हुआ। चीन XIV ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का मेजबान था। यह तीसरी बार था, चीन ने शिखर सम्मेलन की मेजबानी की, पहली बार 2011 में और दूसरी बार 2017 में। इसकी परिणति बीजिंग घोषणा में हुई। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का 2023 संस्करण अगस्त 2023 में दक्षिण अफ्रीका में होने वाला है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ब्रिक्स करंसी क्यों लाने की तैयारी
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार को लेकर डॉलर का एकाधिकार रहा है। पिछले कुछ सालों में इसके कारण कई देशों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर हुआ। यही वजह है कि अब ब्रिक्स देश अपनी करंसी लाने की योजना बना रहे हैं जो उनके बीच कारोबार और लेन-देन का जरिया बन सके। इसके अलावा अघोषित तौर पर इसे अमेरिकी डॉलर को पीछे छोड़ने की योजना भी बताया जा रहा है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अभी सबसे पावरफुल है डॉलर
1944 से डॉलर दुनिया की ऑफिशियल रिजर्व करंसी है, यह निर्णय 44 देशों के समूह ने लिया था, जिसे ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट के नाम से जाना जाता है। इसके बाद से ही डॉलर दुनियाभर में पावरफुल स्थिति में है। डॉलर को लेकर अमेरिका द्वारा बनाई जाने वाली पॉलिसी को दुनियाभर के देशों को मानना पड़ता है। साल-दर-साल अमेरिका की एकतरफा नीतियों का असर दुनियाभर के देशों पर पड़ा है, लेकिन चीन और रूस समेत कई देश नई करंसी के रूप में इसका समाधान तलाश रहे हैं। IMF के मुताबिक, पिछले साल के आखिरी क्वार्टर में दुनियाभर में डॉलर का फॉरेन एक्सचेंज गिरकर 59 फीसदी तक पहुंच चुका है। ऐसे में ब्रिक्स करंसी आती है तो यह आंकड़ा तेजी से गिरना तय है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
किसे सबसे ज्यादा दिक्कत
डॉलर भले ही किंग करंसी कहा जाता है, लेकिन रूस और चीन जैसे कुछ ऐसे देश हैं जो डॉलर को नापसंद करते हैं। वो इस पर रोक लगाना चाहते हैं। इसे ही डी-डॉलेराइजेशन कहा जा रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, नई ब्रिक्स करंसी आने पर कई देशों में कारोबार के लिए डॉलर पर निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कब आएगी ब्रिक्स करंसी और कैसी होगी पेमेंट व्यवस्था
कई रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया है कि नई करंसी एक कार्ड के रूप में होगी, जो ब्रिक्स देशों में लागू होगी। इसकी मदद से भुगतान उस देश को उसकी अपनी करंसी में प्राप्त होगा। ब्रिक्स देश डॉलर की जगह अपनी उस करंसी में भुगतान करेंगे। इस साल अगस्त में दक्षिण अफ्रीका में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन इसकी घोषणा की जा सकती है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।