युवा कवयित्री मिताली बिष्ट की कविता-एक कोशिश बाकी है अभी
एक कोशिश बाकी है अभी।
रात के घने अंधेरे से पहले,
सांझ की वो हल्की रोशनी थी,
मेरे ख्वाबों की दुनिया में चंचल बंध एक उम्मीद सी
आकर बैठी मेरी खिड़की पर नन्हीं चिड़िया एक।
थकी हारी मानों जुझ रही हो अपने ही किसी फैसले से,
रात के पहले घर को लौटने से
नीला ये आसमा जो रोशनी में अपना लगता था उसे,
वो अभी है जैसे ‘कोई पहेली बूझने सी,
मैंने कहा कहाँ जाओगी अब,
आज रुको यहीं,
रात बड़ी है बहुत खो जाओगी कहीं।
उसकी आँखें अब भी अपने घौंसले तक की राह तय कर रही थी
साँझ का ये उजाला आज न जाने क्यूँ थोड़ी देर तक ठहरा रहा,
जैसे सूरज ने भी आज उसके लिये पहरा दिया,
उड़ान भरी फिर नन्ही चिडिया ने घर की ओर,
मैं समझी मुर्ख है लगाने चली है अंधेरे से होड़ ।
सुबह खुली, खिड़की पर वही नन्हीं सी चिडिया थी
पर कुछ अलग था उसमें इस बार,
मानो अपनी इस छोटी लड़ाई ने उसे और खुबसूरत बना दिया हो,
जैसे इस रात से जूझ कर उसने अपना नाम बना लिया हो।
आकर बोली मुझसे कि ये रात बेहद खुबसूरत है,
अपने द्वंद के किस्से गाती बोली बस तेरी मंज़िल थोड़ी सी ओझल है।
जगी है तुझ में आस फिर भी अभी,
उठ क्योंकि एक कोशिश बाकी है अभी।
कवयित्री का परिचय
मिताली बिष्ट, देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।