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June 17, 2025

जानिए कैलाश पर्वत के रहस्यों के बारे में, कोई नहीं चढ़ सकता शिखर पर, यहां सुनाई देती है ऐसी ध्वनि

शंकर के निवास स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है, कैलाश मानसरोवर। यह स्थान अद्भुत रहस्यों से भरा है। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है। जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। कैलाश पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है। साथ ही इस पर्वत और इसके आसपास के क्षेत्र जुड़े कई रहस्य हैं। इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे। पहले ये समझ लें कि ये स्थान कहां पर है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
चीन के नियंत्रण में है यह इलाका
कैलाश पर्वत तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षसताल झील हैं। यहां से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलतीं हैं। हिन्दू सनातन धर्म में इसे पवित्र माना गया है। कैलाश-मानसरोवर जाने के अनेक मार्ग हैं, किंतु उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट, धारचूला, खेत, गर्ब्यांग,कालापानी, लिपूलेख, खिंड, तकलाकोट होकर जानेवाला मार्ग अपेक्षाकृत सुगम है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आपको बता दें की फिलहाल कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए चीन हर साल कुछ भारतीय तीर्थ यात्रियों को वीजा देता है। ये यात्री दो रूट्स से कैलाश मान‌सरोवर की यात्रा पर जाते हैं। पहला है सिक्किम के नाथूला दर्रे से और दूसरा है उत्तराखंड के लिपूलेख दर्रे से। दोनों ही रास्तों से कैलाश मानसरोवर यात्रा पर पहुंचने में एक लंबा समय लगता है। हाल ही में भारत ने उत्तराखंड के धारचूला से लिपूलेख तक के लिए एक नई सड़क बनाई है, जिससे कैलाश मानसरोवर तक पहुंचने का समय कम हो गया है। तिब्बत पर अवैध कब्जे के बाद से हुई कैलाश मानसरोवर झील चीन के कब्जे में है। अब हम कैलाश पर्वत और इस क्षेत्र के रहस्यों और खास बातों का जिक्र करेंगे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

धरती का केंद्र
धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव। दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय। हिमालय का केंद्र है कैलाश पर्वत। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मों- हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म का केंद्र है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अलौकिक शक्ति का केंद्र
यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां दसों दिशाएं मिल जाती हैं। रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

ऐसी है कैलास पर्वत की संरचना
कैलास पर्वत की रचना कंपास के 4 बिंदुओं के समान है। कैलास पर्वत पर चढ़ाई पर प्रतिबंध है, लेकिन माना जाता है कि 11वीं सदी में एक तिब्‍बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी।
3.पिरामिडनुमा क्यों है यह पर्वत : कैलाश पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे पिरामिडों का केंद्र है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के 4 दिक् बिंदुओं के समान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

शिखर पर कोई नहीं चढ़ सकता
दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया, जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर है। यह अब तक रहस्य ही बना हुआ है। कहा जाता है कि जिसने भी आजतक कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने की कोशिश की। उसका दिशा सूचक (compass) ही खराब हो जाता है, क्योंकि कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र माना जाता है और यहाँ दशो दिशाएं आकर मिलती हैं। ऐसे में इस पर चढ़ने वाले रास्ता भटक जाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बढ़ने लगते हैं नाखून और बाल
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था कि उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था, क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है। कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, परंतु 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट ‘यूएनस्पेशियल’ मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी। हालांकि मिलारेपा ने इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा इसलिए यह भी एक रहस्य है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

तेजी से धड़कने लगा दिल
इसके अलावा कहते हैं कि कैलाश पर्वत का स्लोप (कोण) भी 65 डिग्री से ज्यादा है, जबकि माउंट एवरेस्ट में यह 40-60 तक है, जो इसकी चढ़ाई को और मुश्किल बनाता है। ये भी एक वजह है कि पर्वतारोही एवरेस्ट पर तो चढ़ जाते हैं, लेकिन कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाते। रूस के एक पर्वतारोही, सरगे सिस्टियाकोव ने बताया कि, ‘जब मैं कैलाश पर्वत के बिल्कुल पास पहुंच गया तो मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा। मैं उस पर्वत के बिल्कुल सामने था, जिस पर आज तक कोई नहीं चढ़ सका, लेकिन अचानक मुझे बहुत कमजोरी महसूस होने लगी और मन में ये ख्याल आने लगा कि मुझे यहां और नहीं रुकना चाहिए। उसके बाद जैसे-जैसे मैं नीचे आते गया, मेरा मन हल्का होता गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आखिरी बार हुई थी इस साल कोशिश
कैलाश पर्वत पर चढ़ने की आखिरी कोशिश साल 2001 में की गई थी। जब चीन ने स्पेन की एक टीम को कैलाश पर्वत पर चढ़ने की अनुमति दी थी। फिलहाल कैलाश पर्वत की चढ़ाई पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है, क्योंकि भारत और तिब्बत समेत दुनियाभर के लोगों का मानना है कि यह पर्वत एक पवित्र स्थान है, इसलिए इस पर किसी को भी चढ़ाई नहीं करने देना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

हालांकि कहते हैं कि 92 साल पहले यानी साल 1928 में एक बौद्ध भिक्षु मिलारेपा ही कैलाश पर्वत की तलहटी में जाने और उस पर चढ़ने में सफल रहे थे। वह इस पवित्र और रहस्यमयी पर्वत पर जाकर जिंदा वापस लौटने वाले दुनिया के पहले इंसान थे। इसका उल्लेख पौराणिक साहियों में भी मिलता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

दो सरोवरों का रहस्य
यहां 2 सरोवर मुख्य हैं- पहला, मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है। दूसरा, राक्षस नामक झील, जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के समान है। ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं, जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जब दक्षिण से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिह्न वास्तव में देखा जा सकता है। यह अभी तक रहस्य है कि ये झीलें प्राकृतिक तौर पर निर्मित हुईं या कि ऐसा इन्हें बनाया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

यहीं से कई नदियों का उद्गम
इस पर्वत की कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली। इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की अन्य नदियां भी निकली हैं। कैलाश की चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख हैं जिसमें से नदियों का उद्गम होता है। पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सिर्फ पुण्यात्माएं ही कर सकती हैं निवास
मान्यता है कि यहां पुण्यात्माएं ही रह सकती हैं। कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

येति मानव का रहस्य
हिमालयवासियों का कहना है कि हिमालय पर यति मानव रहता है। कोई इसे भूरा भालू कहता है, कोई जंगली मानव तो कोई हिम मानव। यह धारणा प्रचलित है कि यह लोगों को मारकर खा जाता है। कुछ वैज्ञानिक इसे निंडरथल मानव मानते हैं। विश्वभर में करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालय के बर्फीले इलाकों में हिम मानव मौजूद हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कस्तूरी मृग का रहस्य
दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग। यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है, जो उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

डमरू और ओम की आवाज
यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज ‘डमरू’ या ‘ॐ’ की ध्वनि जैसी होती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि हो सकता है कि यह आवाज बर्फ के पिघलने की हो। यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहां से ‘ॐ’ की आवाजें सुनाई देती हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

कैलास पर्वत की आकृति
इस पर्वत की आकृति एक पिरामिड के समान है और वैज्ञानिक इसे धरती का केंद्र बताते हैं। रामायण में भी इसके पिरामिडनुमा होने के बारे में उल्‍लेख मिलता है। धरती के इस केंद्र को एक्सिस मुंडी माना जाता है। जिसका वर्णन दुनिया की नाभि या दुनिया के केंद्र बिंदु के रूप में किया जाता है। इसे आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र माना जाता है। माना जाता है कि यही वह बिंदु है जहां आकाश धरती से आकर मिलता है। यहीं पर आकर दसों दिशाओं का मिलन होता है। एक्सिस मुंडी वह स्‍थान माना जाता है कि जहां अलौकिक शक्तियों का प्रवाह होता है और यहां आकर आप उन शक्तियों से संपर्क कर सकते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

आसमान में लाइट का चमकना
दावा किया जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुई देखी गई हैं। नासा के वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि हो सकता है कि ऐसा यहां के चुम्बकीय बल के कारण होता हो। यहां का चुम्बकीय बल आसमान से मिलकर कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण कर सकता है।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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