उत्तराखंड के कौसानी में जुटे साहित्यकार, विज्ञान को समाहित करते हुए बाल साहित्य रचने पर जोर
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के कौसानी में उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य संस्थान एवं बाल प्रहरी संस्थान अल्मोड़ा के तत्वावधान में ‘बाल साहित्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ पर आयोजित कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय कार्यशाला में बच्चों के लिए विज्ञान को समाहित करते हुए बाल साहित्य रचने पर जोर दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इस मौके पर विजय भट्ट भारत ज्ञान विज्ञान समिति उत्तराखंड (दून साइन्स फॉरम) देहरादून ने अपने वक्तव्य में कहा कि कल्पना के संसार और यथार्थ स्थिति के बीच के सन्तुलन को बनाए रखना बाल साहित्य लेखकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। दुनिया को देखने का नजरिया और इस धरती पर होने वाली घटनाओं को देखने का नजरिया क्या हो। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि चली आ रही परम्पराओं को उसी रूप में स्वीकार करते हुए चलना या इन पर विचार चिंतन मनन कर प्रश्न करने का आत्मविश्वास देना, इनमें से बच्चों को क्या स्वीकार करना हमारा उद्देश्य हो, इस पर लेखकों को एकमत होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें इस बात की जरूरत है कि हम बच्चों के सामने ऐसा साहित्य रखें, जो उनकी जिज्ञासाओं को बढ़ाये और उनके मन में प्रश्न करते हुए, उन प्रश्नों को पूछने, उनका उत्तर जानने, उत्तर जानने के लिए कुछ प्रयास करने की कवायदत को जन्म दे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि हम बच्चों को बतायें कि क्या हमारी जातियाँ, धर्म प्राकृतिक हैं? अगर नहीं तो इन पर हमारे प्रश्न क्या क्या हों? और इन प्रश्नों पर बच्चों के नजरिए की हम पड़ताल करें। उन्होंने कहा कि हमारे बाल साहित्य में यथार्थ वस्तुस्थिति की कल्पना हो, जो बच्चों की जिज्ञासाओं को बढ़ाए, न कि अमूर्त और केवल काल्पनिकता वाली कल्पनाएं हों, जो बच्चों को भ्रमित करे। उन्होंने इस बात के साथ अपना वक्तव्य समाप्त किया कि हमारा बाल साहित्य जिज्ञासाओं को जन्म देने वाला हो।
किशोर न्याय बोर्ड अल्मोड़ा के पूर्व सदस्य केपीएस अघिकारी ने कहा कि आज के समय में 40 और 50के दशक के बच्चों और आज इक्कीसवीं सदी के बच्चों की परिस्थितियों में व्यापक परिवर्तन हो चुका है। इसलिए उसकी परिस्थितियों और मानसिक स्तर में भी बहुत परिवर्तन हो चुका है। अतः हमें आज के बालक के लिए साहित्य सृजन करते वक्त भी हमें यह तथ्य अपने ध्यान में रखना होगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि आज का बच्चा अपनी वास्तविक उम्र से आगे की मानसिक उम्र (mantel age) का बच्चा है। अतः वह परम्परागत बाल साहित्य को स्वीकार नहीं करता या दूसरे शब्दों में कहें तो उस पर रूचि प्रदर्शित नहीं करता। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि आज का बच्चा साहित्य को छोड़ वर्तमान तकनीकि के मोबाइल से चिपका रहता है। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य लेखकों के सामने यह बहुत बड़ी चुनौती है कि वे वैज्ञानिक सोच परक साहित्य लिख सकें, जिसे पढ़ने के लिए बच्चे उत्सुक हों। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
साहित्यकार व बरिष्ठ पत्रकार दैनिक जागरण देहरादून के लक्ष्मी प्रसाद बडोनी ने कहा कि बच्चों को स्वतन्त्रता हो कि वे क्या करना चाहते हैं। उन्होंने तारे जमीं पर फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा कि साहित्य में वह चीज समाहित हो जो बच्चों के मनोविज्ञान व स्तर की हों। उन्होंने कहा कि साहित्य का सृजन ही इस लिए किया जाता है कि वह समाज का पथ प्रदर्शन करे। उन्होंने अपनी स्वरचित गजल से वर्तमान सामाजिक परिदृश्य पर चिंतन करते हुए राह अख्तियार करने की हिदायत भी दी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पूर्व वित्त नियन्त्रक अल्मोड़ा मोहन लाल टमटा ने कहा कि हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारी जो चीजें सब देख सकते हैं। हम स्वयं ही उन चीजों को नहीं देख सकते। उनका इशारा इस बात की ओर था कि हम बच्चों की उन चीजों पर लेखन करें जो वे स्वयं नहीं देख सकते। उन्होंने चाय व दूध का उदाहरण देते हुए इशारों इशारों में कि कहा कि वास्तव में जो चीज अच्छी है। बच्चे उसे पसंद नहीं करते और हम उन्हें दूध ही पिलाना चाहते हैं, जबकि वे हानिकारक चीज चाय ही पसंद कर रहे हैं। अतः हमारी चुनौती बहुत बड़ी है तथा बहुत बढ़ी भी है।संभवतः उनका यही आशय था कि हमें बच्चे की उम्र के मानसिक धरातल पर उतर कर ही उसके लिए कुछ परोसना पड़ेगा न कि हम अपनी रूचि का साहित्य उसे परोसें। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
खेतीखान चम्पावत से जुड़े देवेन्द्र ओली ने कहा कि पाश्चात्य से इतर हमारी सभ्यता हमें दंड और प्रेम के बीच में से प्रेम की राह का अनुसरण करने की संस्कृति का समर्थन करती है। अतः हमें प्रेम, सहचर, करुणा, सहयोग का भाव जाग्रत और जागृत करने वाले साहित्य के साथ ऐसे ही गुणों का विकास करने वाले बाल साहित्य का अनुकरण करना होगा। उन्होंने कुरीतियों व अंधविश्वास को हतोत्साहित करने वाले बाल साहित्य का सृजन किया जाना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
भारत ज्ञान विज्ञान समिति उत्तराखंड के महासचिव एस एस रावत ने कहा कि भारत ज्ञान विज्ञान समिति देश के 22 राज्यों में जीवन को बेहतर करने के उपायों पर लम्बे समय से काम कर रही है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित बाल साहित्य ही प्रकाशित करने का काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि अंसभव बातों को बाल साहित्य लेखन से बाहर करने की परम आवश्यकता है। हमारी जिम्मेदारी यह है कि हम बच्चों के समक्ष ऐसा साहित्य रखें जो उनकी भ्रान्तियों को दूर करे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने आगाह किया कि हम उन बातों का उल्लेख अपने वार्तालाप में भी करना छोड़ें जो तथ्यहीन हैं, अमूर्त हैं, वैज्ञानिक विवेचन से बाहर की हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण और वैज्ञानिक शिक्षा के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि कम से कम समय में अधिक काम करनाऔर कम से कम खर्चे में परिवार चलाना वैज्ञानिक शिक्षा को व्यवहार में उतारने के उदाहरण हैं।जबकि वैज्ञानिक सिद्धांतों को बताना, पढ़ाना, समझाना वैज्ञानिक शिक्षा हैऔर इन सिद्धांतों को जब हम व्यावहारिक जीवन में उतारते हुए, आत्मसात करते हुए, स्वयं जीवन में उतारते हैं तो यही हमारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण बन जाता है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ की बालवाणी की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि उत्तर प्रदेश संस्थान भारत की सभी भाषाओं के साहित्य का आदर करती है। हिंदी संस्थान का सबसे बड़ा सम्मान भारत व भारती सम्मान है। वर्तमान में हिंदी संस्थान द्वारा 156सम्मान दिये जाते हैं। पुस्तक प्रकाशन की 38 विधाओं पर सम्मान दिये जाते हैं। हिंदी संस्थान बाल साहित्य संवर्द्धन के तहत भी बाल साहित्य के लिए काम करता है। सौहार्द सम्मान उन 15 रचनाकारों को दिया जाता है जो हिंदी भाषी नहीं हैंऔर हिंदी भाषा के लिए काम करते हैं। बाल साहित्य को सम्बर्धित करने के लिए संस्थान निरंतर सक्रिय हैं। हम बाल रचनाकारों के साथ साथ बाल लेखनी और बाल तूलिका को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास करते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. डी एस रावत ने अपने वक्तव्य में कहा कि बाल साहित्य के लिए अपनाई जाने वाली भाषा सरल व प्रचलित होना चाहिए। लेखक अपने कौशल के हिसाब से अपनी विधा चुनते हुए कविता, कहानी, नाटक में बाल साहित्य का सृजन करे तो यह संग्रहणीय भी होगा। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य लेखक के रूप में भी आपके आचरण और परिवेश का बच्चों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः बाल साहित्य लेखकों को इस ओर भी सजग रहने की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति और परम्पराओं में निहित बातों व मान्यताओं का भी वैज्ञानिक विवेचन और अनुसंधान कर समाज के समक्ष लाने के प्रयास होने चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
द्वाराहाट अल्मोड़ा के वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. रमेश चन्द्र पंत ने उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ तथा बाल साहित्य संस्थान अल्मोड़ा का इस संगोष्ठी के आयोजन के लिए धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए लिखे जाने वाले साहित्य पर समय समय पर इस तरह के विचार मंथन होने चाहिए। उन्होंने कहा कि कहानियां बच्चों की पहली पसंद होती हैं इसलिए तार्किकता के बाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने वाले लेखन को प्रोत्साहित और प्रकाशित तथा प्रचारित किया जाना चाहिए।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।