नन्हीं अंगुलियों का चमत्कार दिखाता है ये बाल कलाकर, कला कि दुनिया में एक उभरता हुआ नाम है अभिशौर्य सकलानी

कहते हैं कि हुनर अपने आप नहीं आता। इसके लिए निरंतर अभ्यास करना पड़ता है। इसे साबित कर दिखाया दस साल के अभिशौर्य सकलानी ने। इस बाल कलाकार की अंगुलियों में थिरकती पेंसिल से कुछ ही देर में जब कलाकारी सामने आती है, तो देखने वाला भी भौंचक रह जाता है। किसी का स्कैच बनाना हो, तो यह बालक हूबहू वैसा ही बना डालता है, जैसा सामने वाला उसके आगे नजर आता है।
कलाकारी के लिए अभिशौर्य के गुरु उनके पिता अनुपम सकलानी हैं। अनुपम पत्रकार हैं। कवि हैं और कलाकार हैं। कुछ साल से अनुपम ने अपनी छिपी प्रतिभा को लोगों के समक्ष रखा। उन्होंने लोगों के ढेरों स्कैच बनाए और उन्हें भेंट किए। पिता को स्कैच बनाते देख बेटा भी उनके पदचिह्न पर चला। उसने पिता को भी मानो पीछे छोड़ दिया हो। बेटे ने भी अपनी पहचान बनानी शुरू की। देहरादून में वह भी कई लोगों स्कैच बना चुका है।
टीचर्स कोलोनी गोविन्द गढ़ निवासी अनुपम सकलानी का दस वर्षीय बेटा अभिशौर्य सकलानी पेंसिल की रेखाओं से किसी के भी चेहरे का हूबहू का कागज पर उकेरने की कला में महारथ हासिल कर चुका है। वह कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की ओर अग्रसर है। उनके बनाए स्केच उनकी कला की गहराई को साबित करते हैं। साथ ही वे इस आगे बढ़ते हुए कला क्षेत्र में नाम कामना चाहते हैं।
सेंट जोजफ्स एकेडमी में कक्षा छह में अध्ययनरत अभिशौर्य सकलानी को कला के प्रति छोटे से ही रूझान था, जो निरंतर बढ़ता जा रहा है। क्लास की ड्राइंग बुक पर झोपड़ी बनाने से शुरू हुआ उनका सफर कब स्केच (पोर्टेट) की तरफ बढ़ा उनको ही पता नहीं चला। एक दिन घर में ही अपनी मां अनीता सकलानी का स्केच बनाया तो तारीफ मिली। उसके बाद अभिशौर्य का रुझान स्केच आर्ट की तरफ बढ़ गया।
उन्होंने कई कला प्रतियोगिता में पुरस्कार प्राप्त किए है। अभिशौर्य का कहना है कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, बिग बी अमिताभ बच्चन, महेंद्र सिंह धौनी, मैसी, कपिल देव, अक्षय कुमार, रामकुमार राव, मदर टेरिसा सहित कई प्रसिद्ध हस्तियों के स्केच बनाए हैं। हाल ही में उन्होंने पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड अशोक कुमार का स्केच बनाकर उन्हें भेंट किया। स्केच को देखकर पुलिस महानिदेशक ने उनकी कला की तारीफ की। अभिशौर्य का कहना है कि स्केच बनाने के बाद जब संबंधित व्यक्ति को दिया जाता है और उस समय उस व्यक्ति के चेहरे में जो खुशी झलकती है। वहीं उनकी कला का पुरस्कार है। उन्हें इससे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।