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December 19, 2024

आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री यूनियन के सम्मेलन में चुनीं गईं ये पदाधिकारी, इन समस्याओं पर हुई चर्चा

सीटू से संबद्ध उत्तराखंड आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री यूनियन के सम्मेलन में विभिन्न मांगों को लेकर चर्चा की गई। यूनियन की देहरादून ईकाई के इस पांचवें जिला सम्मेलन में सुनीता को अध्यक्ष एवं राधा गुप्ता को महामन्त्री चुना गया। साथ ही आशाओं की मांगों को लेकर एकजुटता से संघर्ष का आह्वान किया गया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उत्तरांचल प्रेस क्लब सभागार में आयोजित इस सम्मेलन का उद्घाटन यूनियन की प्रांतीय अध्यक्ष शिवा दुबे ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि केंद्र की मोदी व राज्य की धामी सरकार महिलाओं के प्रति उदासीन हैं। महिलाओं पर हमले हो रहे हैं। उनका शोषण हो रहा है। कामगार महिलाओं को श्रम कानूनों के तहत कुछ अधिकार प्राप्त हैं, ये सरकारे उन अधिकारों को भी छिनने का काम कर रही हैं। ये श्रम कानूनों को महिला मजदूरों ने पुरुष मजदूरों के साथ बेतहाशा संघर्षो के पश्चात हांसिल किये थे, उन्हें समाप्त किया जा रहा है। उनकी यूनियन इसके खिलाफ संघर्ष करती रहेंगी ओर आशाओं की समस्याओं को लड़ कर दूर करेंगी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर में भी आशाओं के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आशा वर्कर्स को समय से किसी भी मद का भुगतान नहीं होता। ऐसे में उन्हें परिवार के खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। साथ ही केरल, पश्चमी बंगाल, महाराष्ट्र आदि राज्य सरकार की तरह ही उत्तराखंड में आशाओं को सुविधाएं देने की मांग की जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

उन्होंने कहा कि इस मांग को लेकर सीएम धामी से भी भेंट की गई थी। साथ ही इन राज्यों के शासनादेशों को भी सीएम को सौंपे गए। इनमें आशाओं के 63 वर्ष तक कार्य करने, सेवानिवृत्ति पर तीन लाख रुपये देने का प्रवधान है। उन्होंने मांग की थी कि आशाओं को 10 हजार वेतन / मानदेय दिए जाने का भी कई राज्यो में प्रावधान है। इसे उत्तराखंड में भी लागू किया जाए। इसके बावजूद सरकार मौन है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

 

इस अवसर पर सम्मेलन को बतौर मुख्य वक्ता के रूप में सीटू के जिला महामंत्री लेखराज ने कहा कि सीटू ने अपने स्थापना काल से ही मजदूरों की एकता और संघर्ष को आगे बढ़ने का कम किया है। देश की ट्रेड यूनियनों ने बड़े बड़े आन्दोलन किये है और शाशक वर्ग को पीछे हटने के मजबूर होना पड़ा है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार द्वारा करोना काल मे 44 श्रम कनुनो में से 29 प्रभावी श्रम कानूनों के स्थान पर चार श्रम संहितायें संसद में बनाई गई। मजदूरों का शोषण ओर मालिको पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए ये श्रम सहिंताये बनाई गई हैं। इसका हर मोर्चे पर विरोध किया जा रहा है।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मोदी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देते है, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीडन के मामले बढ़े हैं। ये सरकार बलात्कारियों और यौन हिंसा में शामिल लोगों की शरण स्थली बन गयी है। उत्तराखंड का अंकिता हत्याकांड हो या महिला पहलवानो के यौन उत्पीडन का मामला हो, मोदी व धामी सरकार द्वारा अपराधियो को संरक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आशाओं के द्वारा आपने समस्याओं व मांगों के लिए बड़े -बड़े संघर्ष किये हैं। उन्होने अपने संघर्षो के कारण ही कुछ सफलता हासिल की। उन्हें अपने संघर्षो को और अधिक व्यापक बनाना होगा।

इस अवसर पर सुनीता चौहान ने रिपोर्ट पेश की जिस पर प्रतिनिधियों ने बहस कर रिपोर्ट को पारित किया। इस अवसर पर सीटू के जिलाध्यक्ष कृष्ण गुंजियाल ने कहा कि करोना काल मे आशाओं ने अपनी जान की परवाह किये बगैर स्वास्थ्य विभाग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर करोना से जंग लड़ी है। इससे करोना पर विजय हासिल की गई । सीटू के जिला सचिव रामसिंह भंडारी ने भी सम्मेलन को सम्बोधित किया। इस अवसर पर पूजा शर्मा, अन्नू थापा, नीरू जैन, फुलमा, अनिता पंवार, मनप्रीत कौर, कलावती चंदोला, नीलम आदि ने विचार रखे।

ये चुने गए पदाधिकारी
इस अवसर पर हुए चुनाव में अध्यक्ष सुनीता चौहान, उपाध्यक्ष रोशनी राणा व नीरा कण्डारी, महामन्त्री राधा गुप्ता, कोषाध्यक्ष मनप्रीत कौर, सचिव पूजा शर्मा, साक्षी, संगठन मंत्री नीरज कंडारी सहित कार्यकारिणी में सदस्य चुने गए हैं। सम्मेलन का संचालन सुनीता चौहान ने किया।

ये रहे उपस्थित
इस अवसर पर आनीता भट्ट, अनिता पंवार, माहेश्वरी गुसाईं, सरिता चौहान, मीना, पूनम भट्ट, निकिता, रोशनी, शांता, उजला, संगीता, अनुराधा, अंजना सैनी, अनिता अग्रवाल, मधु पुरी, बबिता शर्मा, सीमा देवी, रीना, स्नेहलता, शकुंतला नेगी, पुष्पा, मनीषा, सुषमा शर्मा, प्रमिला, कांति जोशी, निर्मला जोशी सहित बड़ी संख्या में आशा कार्यकत्री उपस्थित रहीं।

आशा वर्कर्स की अन्य मांगे
आशाओं को 10 हजार वेतन / मानदेय दिए जाने का कई राज्यो में प्रावधान है। इसे उत्तराखण्ड में भी लागू किया जाए। आशाओं को सरकारी सेवक का दर्जा दिया जाऐ, न्यूनतम वेतन 21 हजार प्रतिमाह हो, वेतन निर्धारण से पहले स्कीम वर्कर की तरह मानदेय दिया जाए, सेवानिवृत्ति पर पेंशन सुविधा हो, कोविड कार्य में लगी सभी आशाओं को भत्ता दिया जाए, सेवा के दौरान दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी की स्थिति में नियम बनाए जाएं, न्यूनतम 10 लाख का मुआवजा दिया जाए, सभी स्तर पर कमीशनखोरी पर रोक, अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टरों की नियुक्ति हो, आशाओं के साथ सम्मान जनक व्यवहार किया जाए आदि मांगे शामिल हैं।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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