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November 7, 2024

जन्मदिवस पर विशेषः दरकते जोशीमठ ने की पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा की यादें ताजा, फिर बड़े आंदोलन की जरूरत

उत्तराखंड में चमोली जिले के जोशीमठ में जिस तरह जमीनें फट रही हैं। पहाड़ खिसक रहे हैं। जमीन से पानी के स्रोत फूट रहे हैं। ऐसे में पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा की यादें फिर से ताजा हो गई हैं। आज नौ जनवरी को उनका जन्मदिवस है और जोशीमठ सहित पहाड़ों में विकास के नाम पर किए जा रहे निर्माण कार्यों के खिलाफ फिर से बड़े आंदोलन की जरूरत महसूस होने लगी है। क्योंकि विकास के नाम पर जिस तरह से पहाड़ों का सीना चीरा जा रहा है, उसके खिलाफ समय समय पर बहुगुणाजी आंदोलन करते रहे। आज उनकी जन्मतिथि पर एक बार फिर से उत्तराखंड के पर्यावरण को बचाने के लिए एक बड़े आंदोलन की जरूरत महसूस की जा रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सुन्दरलाल बहुगुणा भारत के एक महान पर्यावरण-चिन्तक एवं चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होने हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में वनों के संरक्षण के लिए संघर्ष किया। उनकी पत्नी भी उनके अन्दोलन से जुड़ी हुईं थीं। 1970 के दशक में पहले वे चिपको आन्दोलन से जुड़े रहे और 1980 के दशक से 2004 तक के दशक में टिहरी बाँध के निर्माण के विरुद्ध उन्होंने बड़ा आंदोलन भी किया।वे भारत के आरम्भिक पर्यावरण प्रेमियों में से एक हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

दरक रहा है जोशीमठ
गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में धंसते जोशीमठ में तबाही का खतरा गहराने लगा है। यहां जमीन धंसने के कारण 600 घरों में दरारें आ गई हैं। हाईवे दरक गए। भवन और मकानों में दरारें आ गई। कई मंदिरों पर भी खतरा मंडरा रहा है। कई स्थानों पर पानी के स्रोत फूट गए। ऐसे में लगभग 600 परिवारों को उनके घर खाली करने का आदेश दिया गया है। साथ ही चारधाम ऑल वेदर रोड (हेलंग-मारवाड़ी बाईपास) और एनटीपीसी की पनबिजली परियोजना जैसी मेगा परियोजनाओं से संबंधित सभी निर्माण गतिविधियों पर स्थानीय निवासियों की मांग पर अगले आदेश तक रोक लगा दी गई है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

जोशीमठ औली मार्ग आवागमन भी बंद कर दिया गया है। राज्य सरकार ने कहा है कि जिन लोगों के घर प्रभावित हुए हैं और उन्हें खाली करना है। उन्हें मुख्यमंत्री राहत कोष से अगले छह महीने के लिए मकान किराए के रूप में 4,000 रुपये प्रति माह मिलेंगे। जोशीमठ के दरकने की कहानी नई नहीं है। उत्तर प्रदेश के दौर में वर्ष 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की कमेटी ने जोशीमठ में ऐसे खतरों को लेकर सचेत किया था। कई कमेटियों की रिपोर्ट यहां अनियोजित निर्माण पर सवाल उठाती रही है। फिर भी चाहे आल वेदर रोड यो हा बदरीनाथ का मास्टर प्लान। या फिर जल विद्युत योजनाएं। इनके नाम पर पहाड़ों को छलनी करने का सिलसिला खत्म नहीं हुआ। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

चिपको आंदोलन के हैं प्रणेता
चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी सन 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बीए किया। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।(खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

बड़े बांधों के खिलाफ थे बहुगुणा
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने काफी समय तक आंदोलन भी किया। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज ‘पर्यावरण गाँधी’ बन गया है। 21 मई 2021 को 94 वर्ष की उम्र में कोरोना और लंबी बीमारी की चलते सुंदरलाल बहुगुणा ने एम्स ऋषिकेश में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

 

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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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