शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-मेरा बचपन
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वो वो बचपन की मटरगश्ती,
बारिश का था वो पानी
कागज की थी वो कश्ती
वो नाला था, ना ही दरिया,
बस पानी से लबालब था।
हम खुश थे ऐसे पाकर,
मानो वो समंदर था॥
ना चूल्हे चक्की की थी चिन्ता
ना हमें कपड़ों का ही गम था
जितना भी खेलो दिन भर
उतना ही हमको कम था।
वो बचपन की मटरगश्ती-2
बारिश का था वो पानी
कागज की थी वो कश्ती।
जो जीते तो हम सिकन्दर,
हारे तो न कोई गम था
न जन्नत की ही थी चाहत।
न ऐशो आराम का ही मन था॥
वो बचपन की मटरगश्ती-3
वो बारिश का था पानी।
वो कागज की थी कश्ती।।
वो मां की साड़ी का था पल्लू,
या ख़ुशियों का बीता कल था।
खुशियों में डूबे हम थे
मस्ती में डूबा हर पल था॥
वो बचपन की मटरगश्ती-4
वो बारिश का था पानी।
कागज की थी वो कश्ती
मां के पल्लू की ऐसी हस्ती,
जिसमें अपनी सारी दुनियां
मानो सिमट के थी बसती।।
छत्रछाया में उसकी दुबक के,
लगता था हमको ऐसे
मानो हम ही हों चक्रवर्ती।।
वो बचपन की मटरगश्ती-5
वो बारिश का था पानी।
वो कागज की थी कश्ती।।
वो खुशियाँ बहुत थी सस्ती ,
छायी थी अनोखी मस्ती।
पापा की लाई वो टाफी,
मानो हमारे लिए थी ट्राफी॥
वो बचपन की मटरगश्ती-6
वो बारिश का था पानी।
वो कागज की थी कश्ती॥
दादी नानी की कहानियों में,
वो परियों की हसीन दुनियाँ।
नींदों में जाग कर हम सपनों में,
ढूँढते थे जादू भरी वो छड़ियाँ॥
माँ जब सुबह- सुबह जगाती
तो अक्सर बिखर सी जाती
मीठे सपनों की सारी लड़ियां॥
वो बचपन की मटरगश्ती,
वो बारिश का था पानी ।
वो कागज की थी कश्ती ॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।