युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-समाज ने सहर्ष स्वीकारा है, निरक्षर स्त्री को
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समाज ने सहर्ष स्वीकारा है, निरक्षर स्त्री को
मगर नही स्वीकार कर पाया, पुरुषों से ज्यादा साक्षर स्त्री को।
समाज ने सहर्ष स्वीकारा है..
शादी के बंधन के नाम पर हर रोज प्रताड़ना सहती अबला को..
मगर नही स्वीकार कर पाया…
उन बेड़ियों से मुक्त हुई सबला को।
समाज ने सहर्ष स्वीकारा है.
उन संतानो को, जिनके हाथों किए गए माँ बाप बेघर
मगर नही स्वीकार कर पाया
बिन संतान के माँ बाप को।
समाज ने सहर्ष स्वीकारा है..
उस लड़की को, जो ब्याह दी गई उसकी मर्जी के खिलाफ
मगर नही स्वीकार कर पाया
उस लड़की की अपनी पसंद।
समाज ने सहर्ष स्वीकारा
बचपन में ब्याह दी जाने वाली छोटी बच्चीयों को
मगर नही स्वीकार कर पाया
अधेड़ उम्र की अविवाहित लड़की को।
मगर क्यों?
इन तमाम सवाल के जवाब जब भी मिले आप लोगो को….
तो बताना जरूर
उस साक्षर स्त्री को..
बंधनो से मुक्त हुई स्त्री को ..
बिन संतान के माँ बाप को..
अपनी पसन्द से शादी की इच्छा रखने वाली लड़की को..
और
अधेड़ उम्र तक अविवाहित रहने वाली लड़की को
देना तमाम जवाब कि…..
आखिर क्यों समाज उन्हें नही स्वीकारता?
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (तृतीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।