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August 9, 2025

शटअप, यू डॉंट नो, आइ एम-पत्रकार……., फिर जो हुआ आप ही पढ़ लो

दफ्तर से देर रात को घर आने या देर रात को दफ्तर जाने वालों के लिए हर सड़क व गली में एक मुसीबत खड़ी रहती है। दिन के समय तो ऐसी मुसीबत कहीं गायब रहकर नींद फरमा रही होती है, लेकिन रात को तो मस्ती के ही मूड में आ जाती है।

दफ्तर से देर रात को घर आने या देर रात को दफ्तर जाने वालों के लिए हर सड़क व गली में एक मुसीबत खड़ी रहती है। दिन के समय तो ऐसी मुसीबत कहीं गायब रहकर नींद फरमा रही होती है, लेकिन रात को तो मस्ती के ही मूड में आ जाती है। दूर से नजर आया कोई व्यक्ति या वाहन। मुसीबत पहले से ही तैयार रहती है। कई बार अकेले या फिर झुंड के रूप में कुत्ते आने-जाने वालों को डराने को तैयार रहते हैं। यदि एक बार कोई किसी कुत्ते या उनके झुंड़ से डर गए, तो यह कुत्तों के लिए हर रात का खेल हो जाता है। यदि किसी कुत्ते को आपने धमका दिया, तो अक्सर वहां दोबारा कुत्ते आपको नहीं डराएंगे। भले ही अन्य लोगों का उनके कोपभाजन बनने का सिलसिला चलता रहेगा।
देर रात के समय आफिस से घर जाने के दौरान मैं भी उन स्थानों पर सतर्क रहता हूं, जहां अक्सर कुत्ते राहगीरों को डराने के लिए तैयार रहते हैं। ऐसे स्थानों पर मैं हमले से पहले ही मोटरसाइकिल धीमी कर कुत्तों पर ही हमला करने का नाटक करता हूं। ऐसे में वे दूर भाग जाते हैं। एक बार तो मेरे मौहल्ले में ही एक कुत्ता मेरे पीछे बुरी तरह पड़ गया। जैसे ही मैं घर से निकलता, कुछ ही दूर आगे कुत्ता मेरी ताक में रहता। वह छिपा रहता और मुझे उसका पता नहीं चलता। जैसे ही बाइक उसके निकट से गुजरती वह अचानक झपट्टा मारता। ये क्रम कई दिन तक चला तो एक दिन मैने बाइक रोकी और उतर गया। कुत्ता भी मेरे से बचने को दीवार फांदकर एक घर में घुस गया। अब मैं भी उसके पीछे दीवार फांद गया। पर वह कहीं छिप गया।
खैर उस दिन से वो कुत्ता मेरे पीछे नहीं पड़ा। एक दिन उसका मालिक गेट के पास खड़ा था। मैं लापरवाह था कि वह अब नहीं भौकेगा। वहीं, मालिक के साथ होने के कारण उसने कुछ और ही ठान रखी थी। वह तो मेरे से बदला उतारना चाह रहा था। उस दिन मैं पैदल चल रहा था। मौहल्के की दुकान तक सामाने लेने के लिए। अचानक कुत्ता मुझ पर झपटा। जितनी तेजी से वह झपटा, उतनी तेजी से मालिक ने उसे पकड़ लिया। फिर मालिक ने जूता निकाकर उस पर दो तीन बार लगाया। साथ ही कहा कि पड़ोसियों को पहचानता नहीं है। फिर क्या था। तब से वह कुत्ता दूर से मुझे देखकर रास्ता बदल देता था। यदि रास्ता नहीं बदला तो मेरे करीब पहुंचने पर मुंह दूसरी तरफ फेर लेता। जैसे कि मुझे उसने देखा ही ना हो।
अक्सर पत्रकार भी देर रात को घर जाते हैं। तब सड़कें सनुसान होती हैं। यदि रात को कभी कोई पार्टी में चले गए तो जिनके पास वाहन नहीं होता, उन्हें कोई न कोई मित्र घर छोड़ ही देता था। अबका तो मुझे पता नहीं, लेकिन बीस तीस साल पहले लोग एक दूसरे को घर छोड़ने के लिए कई किलोमीटर दूर तक जाने में परहेज नहीं करते थे। एक पार्टी में मित्र ने दो पैग ज्यादा लगा लिए। फिर रात को उन्हें शायद छोड़ने वाला कोई नहीं मिला, या फिर झेंपू प्रवृति के कारण उन्होंने किसी को नहीं बताया कि उनके पास वाहन नहीं है।
वह जब देहरादून के डालनवाला क्षेत्र से होकर पैदल जा रहे थे तो बलवीर रोड के निकट अचानक कई सारे कुत्ते उनके पीछे दौड़ पड़े। डरकर मित्र एक कोठी की दीवार फांदकर भीतर कूद गए। तभी पुलिस की गाड़ी आई और उन्हें दीवार फांदते हुए देख लिया। उठाकर थाने ले गई। तब मोबाइल फोन होते नहीं थे। मित्र ने उन्हें पूरी घटना बताई। उनकी बातों पर पुलिस को इसलिए विश्वास हुआ क्योंकि उनकी बॉडी लैंग्वेज ही ऐसी थी कि उन पर शक करना मुश्किल था। परिचय पत्र देखा गया तो वह स्थानीय समाचार पत्र के निकले। तब पुलिस सम्मान उन्हें अपनी गाड़ी से घर छोड़कर आई।
कुत्तों के आतंक की अब मैं ऐसी घटना बता रहा हूं, जिसका कोई विश्वास नहीं करेगा, लेकिन ये भी सच है। ऐसी ही एक घटना मुझे याद है। बात करीब 90 के दशक की है। देहरादून में एक मित्र के घर दावत में कई पत्रकार साथी आमंत्रित थे। अमूमन पत्रकार साथियों में कई की अपना परिचय देने में नाम के साथ समाचार पत्र का नाम बोलने की आदत होती है। जानकारी के लिए किसी विभाग में फोन मिलाने के बाद जब दूसरी तरफ से फोन उठता है, तो वह अपने नाम के साथ अखबार का नाम बोलकर परिचय देते हैं। जैसे-हेलो मैं (अपना नाम, फिर अखबार का नाम) से बोल रहा हूं। देहरादून के नेशविला रोड स्थित मित्र के घर पार्टी समाप्त होने में रात के 12 बज गए।
उस मोहल्ले के कुत्ते भी किसी को पहचानते नहीं थे। रात के समय घर से बाहर निकलते दस-बारह व्यक्ति को देखकर तो कुत्तों की मौज बन आई। उन्होंने चारों तरफ से सभी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। एक-एक कर सभी घर जाने व कुत्तों की नजर से बचने का रास्ता तलाश कर रहे थे। कुत्ते पत्रकारों के स्कूटर और बाइक तक पहुंचने के रास्ते में मोर्चा संभाले हुए थे। हमारे बीच एक मित्र की मोटर साइकिल के पास ही कई कुत्ते खड़े थे। कुछ मित्रों ने तो दीवार फांदकर दूसरा रास्ता चुन लिया। लेकिन, एक मित्र की मजबूरी ही कुत्तों के निकट जाकर मोटर साइकिल तक पहुंचने की थी। उन्होंने कुत्तों को पुचकारा, लेकिन वे नहीं माने। फिर डराने का प्रयास किया, कुत्ते और खतरनाक मूड में आ गए। इस पर मित्र जोर से झल्लाकर बोले- शटअप, यू डांट नो, आईएम- पत्रकार- ( फिर अपना नाम फिर अखबार का नाम)।
मित्र का इतना बोलना था कि उनके निकट भौंक रहा कुत्ता अचनाक वहां से भाग निकला। उसे देख सभी कुत्ते नो दो ग्यारह हो गए और मैदान साफ। यह घटना आज भी देहरादून में पत्रकारों के बीच चर्चा का विषय रहती है। उस मित्र की चर्चा के दौरान यह भी जुड़ जाता है- शटअप, यू डॉंट नो, आई एम…
भानु बंगवाल

Bhanu Bangwal

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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