रुंगा मांग रहे लोगों से किसका भला होता है, जनता से मांग रहे रुंगा, बदले में दे रहे…
कमाल के हैं भई रुंगा मांगने वाले। हो भी क्यों नहीं। अब तो पहले की तरह रुंगा मिलता नहीं। अब तो बड़ी चतुराई से ही रुंगा वसूला जाता है। कोई मांग कर लेता है, तो कोई धोखे से।
कमाल के हैं भई रुंगा मांगने वाले। हो भी क्यों नहीं। अब तो पहले की तरह रुंगा मिलता नहीं। अब तो बड़ी चतुराई से ही रुंगा वसूला जाता है। कोई मांग कर लेता है, तो कोई धोखे से। अब आप पूछोगे कि ये आखिर रुंगा क्या है। बचपन से ही मैं रुंगा मांगते हुए लोगों को देखता आया हूं। जब एक पाव दही खरीदते थे, तब दही वाले से रुंगा जरूर मांगते थे। इसी तरह दूध, सरसों का तेल आदि कोई भी सामग्री खरीदने पर विक्रेता वजन व माप करने के बाद थोड़ा सा अपनी तरफ से डाल देता है। इसी को रुंगा कहा जाता है।सब्जी खरीदी तो रुंगे में हरी मिर्च व धनिया भी दे दिया। ऐसे में ग्राहक भी विक्रेता से खुश रहता है। वो क्यों मुफ्त में बांटेगा। यह रुंगा ही ऐसी चीज है। भले ही विक्रेता कहीं न कहीं से रुंगे की लागत वसूल कर ही लेता है, पर ग्राहक तो फोकट का समझकर खुश रहता है। देहरादून में तो एक ऐसा बार है, जहां नियमित पीने वाले पूरे पैग लगाने के बाद अंत में काउंटर पर बैठे व्यक्ति से रुंगा मांगते थे। चाहे कितने भी पैसे की दारू पी लें, लेकिन जब तक रुंगे में मिली मुफ्त की नहीं पीते, तब तक उन्हें पीने का मजा ही नहीं आता।
अब बढ़ती महंगाई में रुंगा देना भी दुकानदारों ने बंद कर दिया। सब्जी वाला हरी मिर्च व धनिया भी रुंगे पर नहीं देता। वह हरी मिर्च के अलग से पैसे वसूलने लगा है। कहता है कि हर चीज महंगी हो गई है। नींबू भी तीन सौ रुपये किलो के भाव बिक रहा है। अब सब्जी वाला यदि रुंगा देता भी है तो उस ग्राहक को, जो कई सब्जी एक साथ खरीदता है। कई विक्रेता तो रुंगा देने की बजाय ले रहे हैं। यानी सामान में ही घटतौली कर अपने पास रुंगा बचा रहे हैं।
ऐसा रुंगा लेने में रसोई गैस ऐजेंसी वाले अव्वल हैं। हर सिलेंडर से एक सौ ग्राम गैस कम ही निकलती है। परेशान ग्राहक सौ ग्राम की कमी को चुपचाप सहन कर लेता है। वैसे तो घर में पहुंचने वाले सिलेंडर का वजन शायद ही कोई करे। फिर भी मैं तो करता हूं। तीन सौ ग्राम गैस कम मिलने पर चुप्पी साध जाता हूं। हां यदि इससे ज्यादा कम निकलती है तो सिलेंडर वापस करा देता हूं। एक कवि मित्र पहले अपनी एक कविता को सुनने का मुझसे आग्रह करते हैं। मेरे हां कहने पर जब वह सुनाने पर आते हैं तो रुंगे में दो-तीन से ज्यादा ही सुना जाते हैं।
अब तो अफसर हो या नेता सभी रुंगे पर ही तो काम कर रहे हैं। नेताजी किसी को काम दिलाते हैं, तो रुंगे में अपनी जेब भी भरना नहीं भूलते। कई रुंगा लेने के आरोप में पकड़े भी गए और जेल भी गए। ऐसे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करके अन्ना हजारे ने देशवासियों के मन में एक उम्मीद जगाई। लोकपाल बिल को लागू करने के लिए अनशन किए। यह सब उन्होंने इस देश की जनता के लिए किया। इसके बाद अन्ना की टीम से कुछ लोग अलग हुए और उन्होंने भी रुंगे में वोट मांगना शुरू कर दिया। हालांकि लोकपाल बिल कहां गया, ये किसी को मालूम नहीं है। रुंगे के रूप में हर दिन थौड़े थौड़े पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ रहे हैं। ये रुंगा उल्टा जनता से ही वसूला जा रहा है।
रुंगा मांगे भी क्यों नहीं। जब नेता जनता के लिए आंदोलन करते हैं तो तो क्या एक रुंगे की हकदार नहीं है। वह रुंगा है हर मतदाता का एक वोट, जिसे पाकर वे संसद में जाएंगे और देश की कायापलट कर देंगे। रुंगे ने अपनी शक्ल बदल ली है। अब वो दाल, तेल, सब्जी में नहीं नजर आता है। क्योंकि इनके दामों में आग लग चुकी है। रुंगे में वोट मांगने वाले विपक्षी दलों के नेता सरकार को कोसते हैं और दावा करते हैं कि वे ही महंगाई को नियंत्रित कर सकते हैं। उनकी इच्छा भी पूरी नहीं हो रही है। न ही उन्हें रुंगा मिल रहा है और न ही वे सरकार बना पा रहे हैं। सिर्फ पंजाब में आप के अपवाद को छोड़कर। अब देखना ये है कि पंजाब में भी वे इस रुंगे का कितना सदुपयोग करते हैं। अब जनता की बारी है। वे भी रुंगा मांग रही है। यानी कि अब कितना फ्री बांटते हैं, या फिर दोगुनी वसूली करते हैं। वैसे यह भी सच है कि- ये दुनियां बड़ी जालिम है, दिल तोड़कर हंसती है।….
भानु बंगवाल




