शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-नारी सशक्तीकरण

नारी सशक्तीकरण
नारी को अपना मान चाहिए
दया नहीं अधिकार चाहिए
नहीं प्रेम की भीख माँगती
उसको सच्चा प्यार चाहिए।
ईश्वर का ही प्रतिरूप है नारी
सृष्टि का सर्वोत्तम रूप है नारी
सृष्टि की सृष्टा है खुद नारी
फूलों सी है नाज़ुक दिखती
पर इरादे फ़ौलादी रखती नारी
ऐवरेस्ट के भी ऊपर चढ़ जाती
चोटी पर ध्वज लहराती नारी।
हर अभियान की जान है नारी
अन्तरिक्ष और विज्ञान है नारी॥
घर भर को तो वो चला रही थी,
अब ऑटो रिक्शा रेल चलाती।
विमान हो या फाइटर विमान
क्या – क्या नहीं उड़ाती नारी॥
नारी को अपना मान चाहिए,
दया नहीं अधिकार चाहिए।
नहीं प्रेम की भीख माँगती,
उसको सच्चा प्यार चाहिए॥
सृष्टि की सृष्टा खुद नारी,
पुरुषों की भी जननी माता है।
आफिस में वह बॉस बन रही,
पर घर भर में भोजन माता है॥
नारी का सम्मान सदा ही,
ईश्वर के भी मन भाता है॥
नारी को अपना मान चाहिए,
दया नहीं अधिकार चाहिए।
नहीं प्रेम की भीख मांगती,
उसको सच्चा प्यार चाहिए॥
महिला दिवस या महिला
सशक्तीकरण वर्ष मनाने से ही
क्या नारी की दशा सुधरती ?
नारी ही कभी नारी की दुश्मन
नारी ही न समझे जब नारी -मन
नारी ही करती जब नारी -शोषन,
सास कभी तो कभी ननद बन।
कभी बॉस तो कभी बहू बन॥
जब नारी ही खुद जागृत होगी।
दूजी नारी का दुख समझेगी
तब ही थोड़ी सी बात बनेगी॥
यदि नारी को मान चाहिए,
दया नहीं अधिकार चाहिए।
नहीं प्रेम की भीख चाहिए,
जो उसको सच्चा प्यार चाहिए॥
पहले खुद नारी को ही नारी
की हिफ़ाज़त में रहना होगा,
निर्बल की बाँह पकड़नी होगी।
नारी को नारी का मरहम बनना होगा।
इक दूजे संग चलना,
भटके को राह दिखानी होगी।
तब ही अबला भी सबला होगी॥
नर – नारी में कोई जंग नहीं है,
नारी कभी पुरुष से तंग नहीं है।
आगे पीछे का प्रश्न कहाँ फिर,
ये एक सिक्के के दो पहलू है,
एक गाड़ी के ही दो पहिए हैं॥
साथ – साथ जब दोनों होंगे,
पथ में ये आगे सदा बढ़ेंगें।
होड़ नहीं ये दौड़ साथ की,
बात कहाँ आगे पीछे की।
ये दोनों जब संग -संग चलेंगे,
सुख दुःख इक दूजे के लेकर।
सृष्टि के परचम संग निश्चित
ही ये मंजिल को पा जाएंगे॥
आसमान से चाँद तोड़ कर,
सागर से मोती लाऐंगे॥
धरती ही जन्नत बन जाऐगी।
नारी जब सम्मानित होगी॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून उत्तराखंड।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।