डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-निर्बल के बल श्याम
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सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम,
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम
इक पलड़े में सब जग धर लो
इक पलड़े में रख लो श्याम
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम
दुर्योधन की सभा लगी जब
भरी .सभा में मौन भये सब
द्रुपद सुता इक -इक को
दीन पुकारत प्रजापति को
कोऊ नहीं उठ लाज बचाई
कुलवधु तहाँ हुई निसहाई।
तब वसन रूप भये श्याम
सखी रे मेरी निर्बल के बल श्याम
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम
जब लग गज बल अपनो परख्यो
नैकु सरयो नहीं काम।
निज बल तजि जब श्याम पुकारयो।
तजि आऐ निज धाम।
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम,
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम।
जनम -जनम की तिरछी कुब्जा
पल में कीन्हीं अभिराम॥
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम,
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम।
कौरव संग अक्षुहिणी बल था
पाण्डवों का बल केवल श्याम॥
कौरव वीर निपट लिए सारे
पाण्डव जीत भई जग नाम॥
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम ,
सखी री मेरी निर्बल के बल श्याम॥
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।