रायपुर विधानसभाः राजनीति में खिलाड़ी हैं कांग्रेस प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट, रुठों को किया साथ, उमेश काऊ पर पड़ सकते हैं भारी
उत्तराखंड में विधानसभा चुनावों में देहरादून में इस समय रायपुर विधानसभा सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखा जा रहा है। एक तरफ कांग्रेस के बुजुर्ग नेता हीरा सिंह बिष्ट हैं, तो दूसरी तरफ बीजेपी के प्रत्याशी उमेश शर्मा काऊ हैं। दोनों को ही राजनीति का मास्टर माना जाता है। हीरा सिंह बिष्ट ने चुनावी जंग में पहली लड़ाई अपनी ही पार्टी के रुठों को मनाने के साथ जीत ली। वहीं, काऊ पूरे पांच साल विधायक रहते हुए इस क्षेत्र से अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का विरोध झेलते आए हैं। ऐसे में ये कहना भी गलत नहीं होगा कि कहीं हीरा सिंह बिष्ट काऊ पर भारी न पड़ जाएं। इन दिनों बिष्ट चुनाव प्रचार में जुटे हैं। घर घर जाकर लोगों से संपर्क कर रहे हैं। साथ ही लोगों को कांग्रेस की नीतियां बता रहे हैं। वह अपने काम गिना रहे हैं। साथ ही लोगों से अपील कर रहे हैं कि मेरे काम का आंकलन कीजिए और मुझे काम के आधार पर वोट दीजिए।
छात्र जीवन से ही की सक्रिय राजनीति
हीरा सिंह बिष्ट का राजनीतिक करियर में छात्र जीवन से लेकर ब्लॉक प्रमुख समेत उत्तर प्रदेश के समय से पूरे देहरादून शहर के विधायक के रूप में उपलब्धि है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हीरा सिंह बिष्ट अपने दौर के छात्र नेताओं में सबसे तेजतर्रार और प्रभावशाली नेता रह चुके हैं। उनके बारे में बताया जाता है कि वह देहरादून डीएवी कॉलेज के ऐसे छात्र नेता थे, जिनकी सीधे इंदिरा गांधी से बातचीत थी। हीरा सिंह बिष्ट बताते हैं कि वह इंदिरा गांधी के आशीर्वाद से ही चुनावी मैदान में उतरे थे और जीत हासिल की थी।
राजनीति के खिलाड़ी
हीरा सिंह बिष्ट उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के दौर से ही राजनीति में माहिर खिलाड़ी रहे हैं और उन्होंने अब तक कभी भी किसी भी तरह की विषम परिस्थितियों में कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा है। वह इंदिरा गांधी के दौर में राजनीति में आए। उस समय वह छात्र जीवन में थे और छात्र नेता के रूप में खुद इंदिरा गांधी के आशीर्वाद से उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत की थी।
हरबंश कपूर को दी थी मात
1977 में अपना राजनीतिक डेब्यू किया। 1977 में उन्होंने टिहरी गढ़वाल की लोकसभा सीट से सांसद चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद हीरा सिंह बिष्ट ने 1985 में देहरादून शहर की विधानसभा सीट से कांग्रेस के निशान पर चुनाव लड़ा और भाजपा के हरबंस कपूर को हराया। गौरतलब है कि हरबंस कपूर आज तक केवल एक बार चुनाव हारे हैं।
राजनीतिक सफर
कांग्रेस की लिस्ट में हीरा सिंह बिष्ट सबसे बुजुर्ग प्रत्याशी हैं। वह 11 बार चुनाव लड़े। इनमें तीन बार जीत का स्वाद चखा। वर्ष 1977 और 1998 में टिहरी सीट से एमपी की चुनाव लड़े और हार गए। इसके बाद 1985 में देहरादून विधानसबा सीट से विधायक बने, 2002 में रायपुर विधानसभा से चुनाव जीते। इसके बाद राजपुर सीट से 2007 का चुनाव हारने के बाद 2012 में डोईवाला विधानसभा से चुनाव लड़े और हार गए। इस सीट से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक चुनाव जीते और इसके बाद उन्होंने लोकसभा का चुनाव जीता तो इस्तीफा दिया। फिर 2014 में डोईवाला सीट पर उपचुनाव में हीरा सिंह बिष्ट ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हराया। वर्ष 2017 का चुनाव हीरा सिंह बिष्ट त्रिवेंद्र सिंह रावत से हार गए थे।
बीजेपी प्रत्याशी के कार्यकर्ताओं से विवाद हुए सार्वजनिक
वहीं, बीजेपी प्रत्याशी उमेश शर्मा काऊ के रायपुर क्षेत्र के ही कार्यकर्ताओं से कई बार विवाद होता रहा है। ये विवाद सार्वजनिक भी हुए। इसमें ये भी गौर करने वाली बात है कि रायपुर विधानसभा से विधायक उमेश शर्मा काऊ का पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से 36 का आंकड़ा रहा। गाहे बगाहे रावत के समर्थकों के गुट की ओर से काऊ के कार्यक्रमों की खिलाफत की जाती रही है। हर बार काऊ विरोधियों के सामने भारी पड़ते रहे हैं।
कांग्रेस से बगावत कर बीजेपी में शामिल हुए थे काऊ
हरीश रावत के कार्यकाल में उमेश शर्मा काऊ कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में शामिल हुए थे। ऐसे में बीजेपी के पुराने कार्यकर्ता उन्हें पचा नहीं पा रहे हैं। गाहे बगाहे बीजेपी के कार्यकर्ता काऊ के खिलाफ मोर्चा खोलकर रखते हैं। नगर निगम के चुनाव में कुछ बीजेपी कार्यकर्ता बगावत कर पार्षद का चुनाव निर्दलीय लड़े तो आरोप काऊ पर लगे कि उनके इशारे पर वे चुनाव मैदान में उतरे। उनका पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के भी 36 का आंकड़ा रहा है। ऐसे में रायपुर विधानसभा में भाजपा कार्यकर्ता त्रिवेंद्र और काऊ गुट में विभाजित हो रखे हैं।
रुठों को मनाया, प्रचार में साथ जोड़ा
जहां एक तरफ बीजेपी प्रत्याशी को अपनों से ही दो चार होना पड़ रहा है। वहीं, हीरा सिंह बिष्ट 75 से अधिक उम्र के बावजूद राजनीति के महारथी साबित हो रहे हैं। रायपुर सीट से कांग्रेस से टिकट की दावेदारी करने वालों को उन्होंने बाद में मना लिया। इनमें प्रधान संगठन के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूरत सिंह नेगी ने नामांकन पर्चा भर दिया था। उन्होंने भी नाम वापस लिया और हीरा सिंह बिष्ट के चुनाव प्रचार में जुट गए। यही नहीं इस पर कांग्रेस ने नेगी को कांग्रेस में बड़ी जिम्मेदारी दी गई। उन्हें टिहरी की सभी विधानसभा क्षेत्र से मीडिया की जिम्मेदारी से नवाजा गया।
इनको भी लिया साथ
टिकट के अन्य दावेदारों में पूर्व में रायपुर से चुनाव लड़ने वाले एवं पूर्व ब्लॉक प्रमुख प्रभुलाल बहुगुणा, महेंद्र सिंह नेगी, भूपेंद्र नेगी, डॉ. आरपी रतूड़ी आदि भी थे। टिकट मिलने के बाद इन सब को मनाने में हीरा सिंह बिष्ट कामयाब हुए। इन सभी को चुनाव प्रचार में अपने साथ जोड़ा हुआ है। ऐसे में हीरा सिंह बिष्ट को अब कांग्रेस में भीतरघात का भय नहीं है। वहीं, दूसरी ओर बीजेपी में यदि भीतरघात होता है तो उमेश शर्मा काऊ के लिए भारी पड़ सकता है।
काऊ का राजनीतिक सफर
उमेश शर्मा काऊ ने भी राजनीतिक जीवन की शुरुआत पंचायत सदस्य से की। वह उप प्रधान बने, फिर प्रधान, बीडीसी सदस्य, ब्लॉक प्रमुख, दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे। जिला पंचायत उपाध्यक्ष का उन्होंने चुनाव लड़ा और एक वोट से हारे। इसके बाद जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी हार गए। देहरादून नगर निगम का गठन होने के बाद पहली बार पार्षद का चुनाव लड़ा और वह जीत गए। इसके बाद डिप्टी मेयर का निर्दलीय चुनाव लड़कर उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही मात दे दी। डोईवाला विधानसभा से दो बार वह निर्दलीय चुनाव लड़े और पराजित हुए। इसके बाद 2012 में वह कांग्रेस के टिकट से रायपुर विधानसभा का चुनाव जीते। फिर भाजपा के टिकट से 2017 में वह जीते। अभी तक प्रचारित ये किया गया है कि रायपुर विधानसभा काऊ का किला है।
रायपुर क्षेत्र रही कर्मभूमि
हीरा सिंह बिष्ट की कर्मभूमि रायपुर विधानसभा ही रही है। हीरा सिंह बिष्ट ने बताया कि छात्र जीवन से लेकर अब तक रायपुर क्षेत्र में काफी काम किया है। उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा रायपुर क्षेत्र के विकास में लगा है। ऐसी कई बड़ी उपलब्धियां हैं जो आज रायपुर क्षेत्र में उनके कार्यकाल के दौरान मिली हैं। चाहे वह रायपुर को अलग ब्लॉक बनाने की बात हो या उत्तराखंड के पहले इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडियम की बात हो।
रायपुर क्षेत्र में ही बीता बचपन
हीरा सिंह बिष्ट का जन्म ग्राम ननूरखेडा, आमवाला नालापानी के स्व. खेम सिंह बिष्ट जी के घर में हुआ है। वह इसी मिट्टी में खेले और बड़े हुए। कृषि कार्य के साथ-साथ अध्ययन किया। इसके बाद अध्यापन और सरकारी नौकरी की। इसी अवधि में वे डीएवी कालेज का वर्ष 1972 से 1973 तथा 1973 से 1974 दो बार छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए।
छात्र जीवन में ही सीखा संघर्ष
उन्होंने छात्र जीवन से संघर्ष करना सीखा है। इसका उदाहरण 1974-75 में चकराता के लाखा मण्डल मे बलि प्रथा के विरोध के रूप में देखा जा सकता है। इसे उन्होंने आंदोलन के जरिये बंद कराया। मसूरी में अंधाधुन्ध पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाने के विरोध में उन्होंने अनेक धरने व प्रर्दशन किये। वृक्षारोपण का वृहद अभियान चलाया। कालेजों में गरीब छात्रों की पढाई की सुविधा दिलाई जाती रही है। अन्याय व शोषण के विरोध में सदैव आवाज उठाते रहे। इस कारण वह कर्मचारी व मजदूर हितों के लिए सतत संघर्ष करते हुए राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस इण्टक का प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। यही नहीं, उत्तराखंड के पहले इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम राजीव गांधी क्रिकेट स्टेडिय का निर्माण कराकर उन्होंने पूरे प्रदेश के साथ-साथ रायपुर क्षेत्र को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने को ऐतिहासिक काम किए।





