राजनीतिक दलों से गुहार, पुरानी पेंशन को लेकर शिक्षकों और कर्मचारियों की भी सुन लीजिए पुकारः नरेंद्र बंगवाल
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उत्तराखंड में 14 तारीख को होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य की 80000 एनपीएस से आच्छादित शिक्षक एवं कर्मचारियों की नजर राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों पर टिकी हुई है।
विदित हो कि राज्य में एनपीएस से लगभग 80 हजार शिक्षक कर्मचारी नई पेंशन योजना के अंतर्गत रखा गया है। उत्तराखंड राज्य में एक 10 अक्टूबर 2005 से नई पेंशन योजना लागू की गई। यह योजना मार्केट आधारित है कर्मचारी का 10 फीसद अनुदान तथा राज्य सरकार का इतना ही अंशदान काटकर कर्मचारी के खाते में जमा किया जाता है। बिना कर्मचारियों की अनुमति के सरकार ने जमा धनराशि को शेयर मार्केट में लगाया है। इसका विरोध लंबे समय से किया जा रहा है। आंदोलनरत शिक्षक कर्मचारियों ने विभिन्न मंचों और आंदोलनों के माध्यम से सरकार से पुरानी पेंशन योजना को यथावत रखने की मांग की है।
वर्तमान में चुनाव को मद्देनजर कर्मचारियों ने फैसला किया है कि कर्मचारी उसे ही अपना समर्थन देंगे जो कर्मचारियों को उनका पुरानी पेंशन को ही लागू करेगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कोई राजनीतिक व्यक्ति (पार्षद, विधायक, सांसद) यदि 1 दिन के लिए भी चुनाव जीता है, तो उसको आजीवन पुरानी पेंशन दी जाती है। वहीं, कर्मचारी 60 वर्ष की आयु तक सरकार की नीतियों को जनमानस तक फैलाता है। उसे (नवीन पेंशन योजना) एन पी एस क्यों ? इसको लेकर के कर्मचारीयों में भारी आक्रोश है।
कांग्रेस सरकार की ओर से अपने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन योजना दिया जाने का कर्मचारियों ने स्वागत किया है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि यह मामला राज्य सूची का विषय है। इस को लेकर केंद्र का कोई दखल नहीं है। राजनीतिक दल को स्पष्ट घोषणा पत्र में कर देना चाहिए कि वह अपनी सरकार बनते ही पुरानी पेंशन योजना को लागू कर देंगे। केंद्र का हवाला देकर मुद्दे को दोराहे पर खड़ा कर देना गलत है।
कर्मचारियों ने विभिन्न प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों के दरवाजे खटखटाने शुरू कर दिए हैं। इसका असर निश्चित रूप से आने वाले चुनाव पर जरूर पड़ेगा। क्योंकि कर्मचारी एक मुख्य रीड़ होती है। देखना यह है कि सरकारें व राजनीतिक दल इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लेते हैं। विदित हो कि पुरानी पेंशन योजना को 1 अप्रैल 2004 में अटल बिहारी सरकार के द्वारा लागू करवाया गया था। यह योजना भिन्न भिन्न राज्यों में 2008, 2011, 2018 में लागू किया गया, जबकि पश्चिम बंगाल में आज तक पुरानी पेंशन योजना यथावत रखी गई है। इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने भी आगामी चुनाव में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की है।
इसी तर्ज पर उत्तराखंड राज्य में होने वाले चुनाव के मद्देनजर कर्मचारियों ने भी उत्तराखंड में पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग को पुरजोर ढंग से रखा है। यदि नवीन पेंशन योजना इतनी ही लाभदायक है तो नेताओं ने इसे क्यों नहीं अपनाया ? अपने लिए नेताओं ने पुरानी पेंशन ही रखी है। जबकि कर्मचारी को शेयर मार्केट आधारित पेंशन दी गई है। वर्तमान में एक शिक्षक व कर्मचारी जो ₹80000 वेतन ले रहा है यदि वह रिटायर होता है तो उसको ढाई हजार से लेकर 3000 तक पेंशन मिलेगी, जबकि वर्तमान में 5 साल से पहले ही सरकार गिर जाने अथवा 1 दिन का पार्षद सांसद विधायक बन जाने पर उसको लगभग ₹ 60000 से ₹85000 पेंशन दी जा रही है। यह कहां का न्याय है।
इसीलिए कर्मचारियों के साथ हो रहे अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और सरकार को चेताया कि यह आंदोलन जन आंदोलन बन जाएगा सरकार को समझना चाहिए कि उत्तराखंड राज्य बनाने में कर्मचारियों का योगदान भूला नहीं जा सकता यहां की बेरोजगारों और नौजवानों ने उत्तराखंड राज्य को बड़े संघर्ष से प्राप्त किया है किंतु यही के लोगों के साथ सरकार के द्वारा किए जा रहे धोखे को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। आने वाले समय में यह आंदोलन विकराल रूप धारण करेगा।
लेखक का परिचय
नरेंद्र बंगवाल
पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष राजकीय तदर्थ शिक्षक संघ एवं पूर्व मंडलीय प्रवक्ता गढवाल मंडल , उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।