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February 7, 2025

देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को, योग निद्रा से जागेंगे भगवान विष्णु, जानिए पूजन की विधि और कथाएं

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बेहद महत्वपूर्ण होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। इस साल देवउठनी एकादशी 25 नवंबर को मनाई जाएगी। एक साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं, जबकि एक माह में 2 एकादशी तिथियां होती हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। देवउठनी एकादशी के संबंध में यहां बता रहे हैं डॉक्टर आचार्य सुशांत राज।
शुरू हो जाते हैं शादी विवाह के काज
मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह के काज शुरू हो जाते हैं।
ये है मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रीहरि विष्णु इसी दिन राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा करके बैकुंठ लौटे थे। इस एकादशी को कई नामों से जाना जाता है। इनमें देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी प्रमुख हैं। इस दिन से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। इस एकादशी तिथि को तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन कई स्थानों पर शालिग्राम तुलसी विवाह का भी प्रावधान है।
ये है कथा
शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक स्वरूप है। मान्यता है कि जलंधर नाम का एक असुर था। उसकी पत्नी का नाम वृंदा था जो बेहद पवित्र व सती थी। उनके सतीत्व को भंग किये बगैर उस राक्षस को हरा पाना नामुमकिन था। ऐसे में भगवान विष्णु ने छलावा करके वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और राक्षस का संहार किया। इस धोखे से कुपित होकर वृंदा ने श्री नारायण को श्राप दिया। इसके प्रभाव से वो शिला में परिवर्तित हो गए। इस कारण उन्हें शालिग्राम कहा जाता है। वहीं, वृंदा भी जलंधर के समीप ही सती हो गईं।
कराया जाता है तुलसी विवाह
अगले जन्म में तुलसी रूप में वृंदा ने पुनः जन्म लिया। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि बगैर तुलसी दल के वो किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करेंगे। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा कि कालांतर में शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा। देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। इसलिए प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है।
पापमुक्त एकादशी
प्रबोधिनी एकादशी को पापमुक्त एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राजसूय यज्ञ करने से भक्तों को जिस पुण्य की प्राप्ति होती है। उससे भी अधिक फल इस दिन व्रत करने पर मिलता है। भक्त ऐसा मानते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अराधना करने से मोक्ष को प्राप्त करते हैं और मृत्युोपरांत विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
देवउठनी एकादशी 25 नवंबर, बुधवार को पड़ रही है। एकादशी तिथि प्रारम्भ- नवंबर 25, 2020 को 02:42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त- नवंबर 26, 2020 को 05:10 बजे तक
इस तरह करें पूजा
-इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन विष्णु जी को जगाने का आह्वान किया जाता है।
-इस दिन सुबह उठकर साफ कपड़े पहने जाते हैं। फिर विष्णु जी के व्रत का संकल्प लिया जाता है।
-फिर घर के आंगन में विष्णु जी के चरणों का आकार बनाया जाता है। अगर आंगन में धूप हो तो चरणों को ढक दिया जाता है। के चरणों की आकृति बनाएं. लेकिन धूप में चरणों को ढक दें।
-फिर ओखली में गेरू से चित्र बनाया जाता है और फल, मिठाई, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया को ढक दिया जाता है।
-रात के समय घर के बाहर और जहां पूजा की जाती है वहां दिए जलाए जाते हैं।
-रात के समय विष्णु जी की पूजा की जाती है। साथ ही अन्य देवी-देवताओं की पूजा भी की जाती है।
-पूजा के दौरान सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का पाठ किया जाता है। साथ ही भजन भी गाए जाते हैं।
4 महीने पाताल में रहते हैं भगवान विष्णु
वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पग बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर रखने को कहा। इस तरह दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति देखते हुए चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं।


आचार्य का परिचय
नाम डॉ. आचार्य सुशांत राज
इंद्रेश्वर शिव मंदिर व नवग्रह शनि मंदिर
डांडी गढ़ी कैंट, निकट पोस्ट आफिस, देहरादून, उत्तराखंड।
मो. 9412950046

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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