अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस छड़े लड़कों की दुर्दशा पर गजल-क्यों इस तरह छड़े पे तमाचा जमा दिया
क्यों इस तरह छड़े पे तमाचा जमा दिया।
देकर पुलिस की धमकी उसे है डरा दिया।।
आराम करने देते छड़े को नहीं कभी।
निज काम के वास्ते उनींदा उठा दिया।।
पढ़ने के वास्ते कौन देता समय उसे।
बस अपना देख फ़ायदा लड़का लगा दिया।।
घर बैठ चैन से सेठ गप्पें लगा रहे।
दुश्मन से बदला लेने को लड़का लड़ा दिया।।
सरकार भी छड़ों की नहीं चिन्ता कर रही।
नेता ने बोल लड़कों को मजमा लगा दिया।।
उकसा छड़े को अपराध करवाते लोग हैं।
बस अपने लाभ के लिए उसको भिड़ा दिया।।
आतंकवादी ख़ुद नहीं बनता कोई कभी।
लड़कों को ललचा फुसला आतंकी बना दिया।।
घर हो चाहे बाहर जोतते लड़कों को सभी।
लड़के को बोला घर में तो पोचा लगा दिया।।
कम होश जोश ज्यादा छड़ों में बसा सदा।
अनुभव नहीं छड़ों को तो उल्लू बना दिया।।
सामान उठवाते हैं छड़ों से जहाँ तहाँ।
पढ़ने की उम्र में काम पर क्यों लगा दिया।।
क्यों बाल मजदूरी नहीं रुक पाई है अभी।
इसके ख़िलाफ़ क़ानून कब से बना दिया।।
कुल का चिराग़ कोई बनेगा कैसे भला।
हर काम करवा उससे नालायक बना दिया।।
हैं फालतू समझते छड़ों को क्यों लोग हैं।
रख ताक़ पर भविष्य छड़ों को लगा दिया।।
हैं मात खा रहे छड़े लड़के कहाँ-कहाँ।
ननमुन तज़ुर्बे ने उन्हें पिछड़ा बना दिया।।
लड़के छड़े रुपेला बड़े बेचारे लगे।
सब ने सहानुभूति खो बकरा बना दिया।।
कवि का परिचय
डॉ. सुभाष रुपेला
रोहिणी, दिल्ली
एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विश्वविद्यालय
जाकिर हुसैन कालेज दिल्ली (सांध्य)
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।