युवा कवयित्री प्रीति चौहान की कविता-तुम लड़की नहीं हो न
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तुम लड़की नहीं हो न
तुम लड़की नहीं हो न, फिर
हमारे दर्द को क्या समझोगे ..!!
वो सुनसान रास्तों पर चलने का डर
और कुछ गलत हुआ तो ‘तुम ही दोषी हो’
ये सुनने का डर….
वो अपने घर को छोड़ जाने का डर
वो अपनो को पराया कहने का दर्द
और फिर परायों में अपनों को खोजने का संघर्ष
क्या समझोगे …!!
अपने सजाए घर मे अपने सजाए कमरे मे फिर यूँ मेहमानों की तरह आना
और फिर वो कमरा उस तरीके से न पाना
कमरे के पर्दे बदले जाएंगे, उस कमरे का रंग बदल जाएगा
और तमाम चीज़े इधर से उधर हो जाएगी।
तुम लड़की तो हो ही नहीं , फिर
हमारे जज़्बात को क्या समझोगे ..
वो रोज होती छेड़खानियों की परेशानी
वो नजरों से बालात्कार होने की कहानी
वो आए दिन अखबारों में छपती सनसनी
लड़की को जलाया जाना, बलात्कार की वारदात,
एक नन्ही सी जान को दुनिया मे आने से पहले मार देना…
ये सुन कर भी कुछ न कर पाना
तुम लड़की तो हो ही नहीं , फिऱ
हमारी इस बेबसी को क्या समझोगे ..!!
वो बड़ो की हर बात मान लेना
वो पिता के इज़्ज़त की बात
वो दुपट्टे से ढकी लाज ..!!
इस दोहरे समाज में खुद को मजबूत दिखाने की जदोजहद,
तमाम रिश्तों को बचाए रखने की कोशिशें…
वो दहेज ना देने पर उन तानों का दर्द
क्या पहनू , क्या खाऊँ , किसके साथ मैं बाहर जाऊँ..
वो दुनिया भर की बंदिशों में जीने की लाचारी
तुम क्या समझोगे ..
इन सबके बीच यू ख़ुद को बचाना
अपनी आबरू को इस तरह संभाल पाना
क्या इन बातों को समझोगे तुम ??
लड़की नही हो मगर किसी के भाई या बाप तो जरूर होंगे तुम ,
अब तो कह दो …की इन बातों को समझोगे तुम ..
समझोगे तुम……..
कवयित्री का परिचय
नाम-प्रीति चौहान
निवास-जाखन कैनाल रोड देहरादून, उत्तराखंड
छात्रा- बीए (तृतीय वर्ष) एमकेपी पीजी कॉलेज देहरादून उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।