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April 23, 2025

दावे बढ़े, हकीकत शून्यः एवरेस्ट फतह कर बढ़ाया प्रदेश का मान, सरकार ने की उपेक्षा, छलक पड़ा दिल का दर्द

दावे बड़े बड़े। धरातल पर हकीकत शून्य। खेल को लेकर भले ही सरकार ने खेल नीति बना दी, लेकिन जो होनकार कुछ कर दिखा रहे हैं, उन्हें उपेक्षित किया जा रहा है। ये हाल देवभूमि उत्तराखंड का है।

दावे बड़े बड़े। धरातल पर हकीकत शून्य। खेल को लेकर भले ही सरकार ने खेल नीति बना दी, लेकिन जो होनकार कुछ कर दिखा रहे हैं, उन्हें उपेक्षित किया जा रहा है। ये हाल देवभूमि उत्तराखंड का है। एवरेस्ट फतह करने वाले पिथौरागढ़ के मनीष कसनियाल को दो सरकार ने कोई आर्थिक सहयोग तक नहीं दिया। ऐसे में इस पर्वतारोही का दर्द छलक पड़ा। मनीष ने अपनी भावनाएं विभिन्न प्लेटफार्म के जरिये उजागर की हैं। इससे तो यही लगता है कि वह सरकार की उपेक्षा से नाराज हैं।
पिथौरागढ़ के मनीष कसनियाल ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह किया था। इसके बावजूद राज्य सरकार की ओर से मनीष को सम्मान स्वरूप कोई आर्थिक सहयोग तक नहीं दिया गया। इससे मनीष निराश हैं। मनीष का कहना है कि एवरेस्ट फतह करना काफी चुनौतियों भरा रहा। उन्होंने सरकार से अन्य खिलाड़ियों की तरह उन्हें भी प्रोत्साहित किए जाने की मांग की है। ताकि साहसिक खेल सिर्फ एक मजाक या फिर मनोरंजन बनकर न रह जाएं।
बता दें कि, मनीष ने इंडियन एवरेस्ट मैसिफ अभियान के तहत पर्वतारोहण दल में चयनित होने पर भारत के दल का नेतृत्व किया और टीम लीडर की भूमिका निभाईय़ उन्होंने विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट 8848.86 मीटर पर सफल आरोहण कर उत्तराखंड का मान बढ़ाया। राज्य का प्रथम छात्र व सबसे कम उम्र का युवा एवरेस्ट विजेता बनने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय चयन प्रक्रिया से चयन होकर भारतीय पर्वतारोहण टीम में चयनित हुए।
मनीष का दर्द
मनीष ने अपने दर्द को कुछ इस तरह बयां किया। इण्डियन एवेरेस्ट मैसिफ अभियान में राष्ट्रीय चयन प्रक्रिया से देश भर मे मेरा चयन हो कर मुझे भारतीय पर्वतारोहण दल में चयनित हो कर भारती दल का नेतृत्व करते हुए टीम लीडर की भूमिका निभाते हुए विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवेरेस्ट 8848.86 मीटर पर सफल आरोहण कर उत्तराखंड का मान बढ़ाया। उत्तराखंड का प्रथम छात्र व सबसे कम उम्र का युवा बना जो राष्ट्रीय चयन प्रक्रिया से चयन हो कर भारतीय पर्वतारोहण टीम में चयनित हुआ।
इस से पहले राष्ट्रीय चयन प्रक्रिया से एवेरेस्ट अभियान 1993 में हुआ था। इसके अतिरिक्त भी मै उत्तराखंड के समस्त विश्वविद्यालयों का प्रथम छात्र एवेरेस्ट विजेता हूँ। विश्व की सबसे बड़े मानवता के लिए कार्यरत्त विश्व रेड क्रॉस का प्रथम स्वयंसेवक/लेक्चरर भी हूँ इस के लिए मुझे रेड क्रॉस भारत ने एम्बेसडर बनाया, लेकिन इन सब बड़ी उपलब्धियों के लिये भी मुझे सरकार ने अब तक कोई भी आर्थिक सहयोग या प्रोत्साहित नही किया। जैसे कि अन्य खिलाड़ियों को किया गया है।
उत्तराखंड के युवा सरकार के माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा भी मुझे आसवासन दिया गया और 6 महीने बीत जाने पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया गया है। मैं एक गरीब परिवार से हूँ इस के बावजूद कड़ी मेहनत व लगन से भारतीय दल में चयनित हो कर एवेरेस्ट तक गया। उत्तराखंड सरकार द्वारा खिलाड़ियों को कम से कम 15 से 20 लाख दिए है साथ मशरूम बेचने वालों को भी ब्रांड एम्बेसडर बनाए गए हैं। मेने इस बड़ी उपलब्धि के बल पर जो उत्तराखंड का मान बढ़ाया, इस उपलब्धि के लिए मुझे अनदेखा किया गया है।

क्या मैं खिलाड़ी नही, जबकि साहसिक खेलों में आगे बढ़ना अन्य खेलों से काफी महँगा, कड़ा, मुश्किल व जान जाने तक के खतरों से घिरा है। मैं इस लायक़ भी नही कि सरकार मुझे भी अन्य खिलाड़ियों की तरह प्रोत्साहित करें या सरकारी तंत्र को साहसिक खेल सिर्फ एक मज़ाक या फिर मनोरंजन लगता है ।
क्या मेरी उपलब्धि सरकार को आसान लगती हैं? या सरकार ग़रीब के बच्चों के लिए कोई कार्य नही करती?
या ये दुर्भाग्य है कि मैने उत्तराखंड में जन्म लिया और आज अपनी उपलब्धियों से उत्तराखंड का मान बढ़ाया?
पर्वतारोहण में राष्ट्रीय स्तर में अब तक उत्तराखंड के जो पर्वतारोही है, उन्होंने 1993 में एवेरेस्ट फतह की। उसके बाद अब तक कोई नही थे, जिनका राष्ट्रीय पर्वतारोहण दल में चयन हुआ। यह गौरव मेरे द्वारा राष्ट्रीय चयन प्रक्रिया से चयनित हो कर उत्तराखंड को दिया गया, लेकिन अन्य पर्वतारोहियों को सरकार ने आगे बढ़ाया है, लेकिन मुझे सरकार अनदेखा कर रही है।
मनीष कसनियाल पर्वतारोही
युवा एवेरेस्ट विजेता
2021
जनपद पिथौरागढ़, उत्तराखंड।
एक जून 2021 को किया था एवरेस्ट फतह
1 जून 2021 को युवा पर्वतारोही मनीष कसनियाल ने 26 वर्ष की उम्र में विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। उन्होंने अपनी महिला साथी सिक्किम की मनीता प्रधान के साथ विषम परिस्थिति में ये उपलब्धि हासिल की। इससे पहले वर्ष 2018 में मनीष और ब्रिटिश पर्वतारोही जॉन जेम्स कुक ने 5782 मीटर ऊंची मुनस्यारी की चोटी नंदा लपाक को पश्चिमी छोर से फतह किया था। इस अभियान में उन्हें एक सप्ताह लगा था। वह गढ़वाल में त्रिशूल और लद्दाख में स्टोक कांगड़ी तक गए। इसके लिए मनीष को दो बार राज्यपाल पुरस्कार और राज्य स्वच्छता गौरव सम्मान भी मिल चुका है। मनीष की पहल पर ही आइस संस्था ने भुरमुनी में पहली बार वॉटर फॉल रैपलिंग की शुरुआत की थी। मनीष बिर्थी में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड के लिए हुई आइस संस्था की वॉटरफॉल रैपलिंग में भी शामिल रहे हैं।

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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