पूर्व सीएम स्व. एनडी तिवारी सहित पांच हस्तियों को उत्तराखंड गौरव सम्मान, हमेशा की तरह इस बार भी पत्रकार उपेक्षित
उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के मौके पर इस बार भी उत्तराखंड गौरव सम्मान वर्ष 2021 की सूची जारी कर दी गई है। इस बार ये सम्मान पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को मरणोपरांत प्रदान किया जा रहा है।

सीएम ने दी शुभकामनाएं
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर उत्तराखंड गौरव सम्मान वर्ष 2021 प्रदान किये जाने के लिए गठित की गयी समिति की संस्तुति के आधार पर सम्मान के लिए चयनित अनिल जोशी, रस्किन बॉण्ड, बछेन्द्री पाल व नरेन्द्र सिंह नेगी को बधाई एवं शुभकामनाएं दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. नारायण दत्त तिवारी को यह सम्मान प्रदेश के विकास में उनके द्वारा दिये गये योगदान का राज्य की ओर से दिया गया सम्मान है। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड महोत्सव के अंतर्गत प्रतिवर्ष 5 व्यक्तियों को दिये जाने वाला उत्तराखंड गौरव सम्मान विभिन्न क्षेत्रों में राज्य को पहचान दिलाने वालों का सम्मान है। यह सम्मान प्रेरणा का कार्य भी करेगा।
राज्य स्थापन दिवस में हर बार उपेक्षित रहते हैं पत्रकार
राज्य आंदोलन में स्थानीय पत्रकारों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद आज तक वे उपेक्षित होते रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड गौरव सम्मान में सभी नाम ऐसे हैं, जो इस सम्मान को पाने के हकदार हैं। इसमें कोई विवाद नहीं है। फिर भी एक सवाल उठता रहेगा कि क्या पत्रकारों की राज्य आंदोलन में कोई भूमिका नहीं थी। कम से कम राज्य स्थापना दिवस पर पत्रकारों को एक शॉल ओढ़ाकर सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए? आंदोलन के दौरान पत्रकारों पर आंदोलनकारियों का ठप्पा लग गया था। ऐसे में तत्कालीन सपा नेता एवं यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने दो प्रमुख अखबारों पर तो हल्ला बोल की घोषणा कर दी थी। इसके बाद तो समाचार पत्रों के हाकरों से लेकर तक की पिटाई का सिलसिला चला। समाचार पत्र तक जला दिए गए। हालांकि ऐसी घटनाएं ज्यादा यूपी में हुई। उत्तराखंड में भी पुलिस और प्रशासन पत्रकारों को आंदोलनकारियों का सहयोगी मानकर किसी भी लाठीचार्च के मौके पर उन्हें खासतौर से निशाना बनाता था। कई पत्रकार घायल हुए। तब किसी का हाथ टूटा तो किसी का सिर फूटा। सुबह से लेकर देर रात तक वे फील्ड में देखे गए। यही नहीं, जब बंद का आह्वान होता था तो उस दिन होटल और ढाबे भी पूरी तरह बंद रहते थे। ऐसे में घर से बाहर रहने वाले कई पत्रकार जो होटलों में खाना खाते थे, उन्हें भूखे ही रहना पड़ता था। ये उत्तराखंड के मीडिया की सक्रियता को देखकर ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आंदोलन की कवरेज होने लगी। आंदोलनकारियों को आपस में जोड़ने, लोगों को जागरूक करने में भी पत्रकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वे सुबह प्रभातफेरी में भी दिखे और देर रात को भी सड़कों पर रहे। यही नहीं, स्कूली बच्चों को उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जरूरत के प्रति जागरूक करने के लिए वहां के पत्रकारों ने छात्रों की एक निबंध प्रतियोगिता भी कराई। इसमें हजारों स्कूली बच्चों ने प्रतिभाग किया। इसका विषय उत्तराखंड राज्य आंदोलन की जरूरत और उसकी सार्थकता रखा गया था। इसी पूरे राज्य में पत्रकार सक्रिय रहे और कई बार पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच घिरकर दो तरफा पथराव से खुद को बचाते नजर आए। राज्य बना और राजनीतिक संगठनों की तो सरकार को याद रही, लेकिन पत्रकारों को 21 साल से सरकारें भूलती आ रही हैं। यही नहीं, पत्रकारों के लिए कोई घोषणाएं करने से भी सरकारें हिचकती आ रही हैं।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।