Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 6, 2025

मेरा रूप देखकर चंद्रमा, शरमा गया और छुप गया, सीता को हर ले गया रावण, स्टेज में घायल हुए रावण, फिर भी निभाया किरदार

रामलीला मंचन के दौरान एक हादसा भी हो गया। स्टेज में स्टूल पर संतुलन बिगड़ने पर रावण का किरदार निभा रहे दिनेश रावत के हाथ में फ्रैक्चर हो गया। इसके बावजूद उन्होंने पीड़ा सहते हुए किरदार को बखूबी निभाया।

देहरादून में श्री आदर्श रामलीला सभा राजपुर की ओर से वीरगिरवाली में आयोजित किए जा रहे 72वें रामलीला महोत्सव के सातवें दिन गुरुवार की रात सूपर्णखा लीला, खर दूषण वध, रावण मारीच संवाद, सीता हरण और जटायु उद्धार लीला दिखाई गई। रामलीला मंचन के दौरान एक हादसा भी हो गया। स्टेज में स्टूल पर संतुलन बिगड़ने पर रावण का किरदार निभा रहे दिनेश रावत के हाथ में फ्रैक्चर हो गया। इसके बावजूद उन्होंने पीड़ा सहते हुए किरदार को बखूबी निभाया। इसके बाद देर रात उनके हाथ में प्लास्टर चढ़ाया गया। जब लंका के राजा रावण की बहन सूपर्णखा स्वच्छंद भ्रमण रही थी तो पंचवटी में वनवासी वेश मे दो युवाओं राम और लक्ष्मण को देखकर वह मोहित हो गई और उन से प्रणय निवेदन करने लगी।

दोनों भाइयों को लुभाने का करती है प्रयास
राम ने उसे कई बार समझाया तो वह लक्ष्मण को लुभाने का प्रयास करती रही। सूपर्णखा कहती है कि-मेरा रूप देखकर चंद्रमा शरमा गया और छुप गया, मो पे इंद्र मोहित हो गया। इसके बावजूद दोनों भाइयों में उसका असर नहीं पड़ता। तो वह अपने असली रूप में आ जाती है। इस राक्षसी को देख कर सीता डरने लगती है। बिखरे बाल, काला रंग, लंबे दांत वाली सूपर्नखा को देख बच्चों में भी उत्साह देखा गया। बच्चों को भी वह डराती है। लक्ष्मण को मोहित करने के फिर भी वह प्रयास करती है। वह कहती है कि-मैं तो छोड़ आई लंका का राज, लक्ष्मण तेरे लिए। जब वह ज्यादा परेशान करने लगती है तो लक्ष्मण उसके नाक और कान काट देते हैं।

मारे गए खर दूषण
इस पर वह रोती हुई क्रोधित होकर अपने भाई खर और दूषण के पास गई। जो मदिरा की मस्ती लीन थे। दरबार में नृतकी का नृत्य चल रहा था। खर और दूषण मदिरा की मांग करते जा रहे थे और मस्त होते जा रहे थे। साथ ही गा रहे थे-तू ला ला ला, भर भर जाम पिला दे साखी, बना दे तू मतवाला। अचानक बहन सूपर्णखा की हालत देखकर वे राम और लक्ष्मण पर युद्ध के लिए निकल गए। जहां राम का खर दूषण से घनघोर युद्ध हुआ।राम ने खर दूषण दोनों का वध कर दिया।

मारीच भी समझाता है रावण को
इस समाचार लंकाधिपति रावण के पास गई और अपना दुखड़ा सुनाया। रावण ने अंतर्मन से जान लिया कि विष्णु के अवतार राम का जन्म हो चुका है। इस कसौटी को परखने के लिए रावण व्यू रचना की। अपने मामा मारीच को स्वर्ण मृग का रूप धारण करने का निर्देश दिया। यहां से रावण को समझाने का दौर भी शुरू होता है। मारीच उसे समझाता है। कहता है कि भगवान विष्णु से बैर मत ले, लेकिन रावण नहीं मानता। मारीच कहता है कि वह अब बूढ़ा हो गया है। उसने छल कपट छोड़ दिया। वह प्रभु भक्ति में लीन रहता है। वह कहता है कि-बूढ़ापा आ गया सरकार, अब हिम्मत हार बैठा हूं। रावण उसे धमकाता है। कहता है कि यदि वह कहना नहीं मानेगा तो वह मारीच को मार देगा। इस पर मारीज कहता है कि दुष्ट के हाथों मरने से अच्छा भगवान के हाथ मरना है। ऐसे में वह मान जाता है।

सोने का हिरन देख सीता के मन में जागा लोभ
कहते हैं कि जब लोभ, मोह किसी के जीवन में आए तो वही दुख का कारण होते हैं। सीता माता को भी सोने का हिरन देककर लोभ होने लगा। वह सोने का हिरन पकड़कर लाने के लिए राम से कहती है। राम उसे समझाते हैं, लेकिन नारी हठ के आगे उनकी नहीं चलती। श्रीराम से इस प्रकार सीता और लक्ष्मण का बड़ा ही मार्मिक हृदयस्पर्शी संवाद दर्शकों को बहुत भाया। राम लक्ष्मण को सीता के पास छोड़कर हिरन को पकड़ने जाते हैं। इसी बीच आवाज आती है कि-भैया लक्ष्मण मुझे बचा लो। सीता समझती है कि राम किसी संकट में पड़ गए। वह लक्ष्मण को मदद के लिए जाने को कहती है। लक्ष्मण मना करते हैं, वह कहते हैं कि राम की आज्ञा के बगैर वह कहीं नहीं जाएंगे। इस पर सीता लक्ष्मण को भी भला बुरा कहने लगती है। सीता और लक्ष्मण के बीच संवाद और गीतमय अंदाज में दर्शकों को भाव विभौर कर देते हैं। सीता जब लक्ष्मण को पापी तक बोल देती है, तो वह कुटिया में लक्ष्मण रेखा खींच कर राम की मदद को चले जाते हैं।
छल कपट से रावण हर ले गया सीता
वहीं साधु वेश में रावण ने आकर सीता से भिक्षा मांगने का उपक्रम किया। पहले उसका परिचय लिया। वह सीता को उठाने के लिए कुटिया की तरफ जाता है तो लक्ष्मण रेखा से आग निकलने लगती है। रावण का पांव पड़ते ही अग्नि जलने लगी। इस प्रकार रावण तब बहाना बनाकर बंधी हुई भिक्षा लेने से इंकार करता है और सीता को कुटिया से बाहर आने को कहता है। भिक्षा के बहाने सीता के बाहर आते ही रावण ने सीता का हरण कर लिया। इस प्रकार रोती बिलखती सीता राम और लक्ष्मण को पुकारने लगी। वहां सीता की पुकार सुनने वाला कोई नहीं था।

पक्षी जटायु करता है छुड़ाने का प्रयास, रावण ने काट दिए पंख
तभी जटायु नाम के पक्षी ने दुखी और आहत स्त्री का विलाप सुनकर रावण पर प्रहार कर दिया। अकस्मात हमले से रावण गिर गया। किंतु तत्काल ही संभल कर रावण ने जटायु को मूर्छित कर सीता को रथ पर बैठा कर लंका ले गया। सीता विलाप करती रही और रावण अट्टहास। इस दौरान सीता अपने आभूषण आदि भी रथ से नीचे फेंकती रही। ताकी राम व लक्षमण उसे तलाशें तो पता चल सके कि किस तरफ उसे ले जाया गया है।
सीता बिन तड़पे राम
इधर वन में हिरण के आखेट के पास पहुंचे राम जब लक्ष्मण को देखते हैं तो आश्चर्यचकित हो जाते हैं। वस्तुस्थिति जान कर दोनों भाई तुरंत आशंका से पंचवटी पहुंचें जहां सीता को ना पाकर राम विचलित हो जाते हैं। लक्ष्मण उन्हें संभालने का प्रयास करते हैं। पंचवटी की अस्त व्यस्त दशा देखकर दोनों भाई दुखी होकर सीता की खोज करने लगे। वहीं घायल पक्षी जटायु को वे देखते हैं। वह सारा वर्णन बताकर प्राण त्याग देता है। मृत हुए जटायु का अंतिम संस्कार राम और लक्ष्मण ने किया और सीता की खोज के लिए वनों में आगे बढ़ने ‌लगे।
रात नौ बजे से आरंभ हुई रामलीला का मंचन देर रात एक बजे तक चला। मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री डॉ बीके संजय, उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध अस्थि रोग विशेषज्ञ विजयलक्ष्मी शर्मा तथा पार्षद विशाल का श्री आदर्श रामलीला सभा राजपुर के पदाधिकारियों की ओर से स्वागत किया गया। अपने संबोधन में पद्मश्री डॉ बीके संजय ने कहा राजपुर क्षेत्र में होने वाली लीला बहुत ही सुंदर और प्रभावी है। इसके संवर्द्धन और संरक्षण की आवश्यकता है। इसमें सभी को मिलकर सहयोग करना चाहिए। श्री आदर्श रामलीला सभा राजपुर के पदाधिकारियों में संरक्षक जय भगवान साहू, प्रधान योगेश अग्रवाल, उपप्रधान शिवदत्त अग्रवाल ने अतिथियों का स्वागत और सम्मान किया।

Bhanu Bangwal

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *