राम के राजा बनने की तैयारी पर मंथरा ने फेरा पानी, दशरथ हुए मुर्छित, राम पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ गए वन
राम के दुख के साथ ही दर्शकों की आंखे भी नम होती चली गई। चारों तरफ खुशियों का आलम था, क्योंकि राजा दशरथ ने राम को अयोध्या का राजा बनाने की घोषणा की। लक्ष्मण ने तो राम को राजा के रूप में देखने की खुशियों उत्सुकता को इस गीत के जरिये बयां किया-देखेंगे रामराज आज ये धन्यभाग है, हंस हंस कर गीत गाएंगे-ये प्रेम राग है।
जिस अयोध्या में खुशियां मनाई जाने लगी, दीपमालाएं सजाई जाने लगी, वहीं इस समाचार को सुनकर मंझली रानी कैकई की दासी मंथरा ने सारी खुशियों में पानी फेर दिया। वह राजा दशरथ की मंजली पत्नी केकई के पास जाती है और उसके कान भरने लगती है। कहती है कि बड़ी महारानी कौशल्या ने महाराज के साथ मिलकर आपके विरुद्ध षड्यंत्र रचा है। तुम्हारे बेटे भरत को नौनिहाल भेजकर राम को राजा अयोध्या का बनाया जा रहा है। ऐसे में तुम जीवन पर्यंत कौशल्या की दासी बनी रहोगी। यह सब बातें कैकयी की समझ में आ गई और कैकई ने रुष्ट होकर कोप भवन में जाने का निर्णय लिया।
कैकई काले वस्त्र पहन कर कोप भवन में चली गई। जहां महाराज दशरथ को बहुत बुरा लगा और उन्होंने कैकेई को समझाने का, प्रेम बरसाने का भरपूर प्रयास किया, किंतु वो नहीं मानी। कैकेई ने देवासुर संग्राम का वास्ता देकर राजन को दोनों वचन देने का वादा याद दिलाया।एक वचन में भरत को अयोध्या का राज और दूसरे वरदान मे राम को 14 वर्ष का वनवास मांग लिया। राम को 14 वर्ष का वनवास सुनते ही राजा दशरथ मूर्छित हो गए। इसका फायदा उठाकर केकई ने राम को पिता की आज्ञा का वास्ता देकर बनवास का आदेश दिया।
पत्नी सीता भी राम के साथ जाने की जिद करने लगी और लक्ष्मण ने भी राम के साथ जाने का ही संकल्प लिया। इस प्रकार राम के साथ लक्ष्मण और सीता भी वनगमन के लिए तैयार हुए। राम और लक्ष्मण ने राजा के वस्त्र त्यागे और ऋषियों का वेश धारण किया। सोमवार 11 अक्टूबर की रात नौ बजे से करीब एक बजे तक हुए रामलीला मंचन में संरक्षक जय भगवान साहू, प्रधान योगेश अग्रवाल, कोषाध्यक्ष नरेंद्र अग्रवाल, मंत्री अजय गोयल, स्टोर कीपर वेद साहू, ऑडिटर प्रकाश विद्वान, मंत्री अमर अग्रवाल, विभु वेदवाल विद्वान आदि ने भरपूर सहयोग दिया।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।