शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कविता-अकेले रह गये हम
अकेले रह गये हम
जिन्दगी की डगर में
आगे बढ़ते बढ़ते
बैठ गया जरा नीचे
सोचा अपने बारे में
पीछे मुड़कर कर देखा
कितने अकेले रह गये हम
जिनके लिए किया कुछ
वह घोंसला छोड़ चले अब
हम लाचार हो करके
इधर उधर देखते हैं
उदासी के शिवा कुछ हाथ न आया
देखा तो हम अकेले खड़े हैं।
मां-बाप ने जिसे साथी कहा था
वो भी अकेला छोड़ चलें हैं
उदास हो गई जिन्दगी
अब अकेले हों गये हैं।
देखती हूं इधर उधर कि
क्या क्या भूले हैं हम
जिन्हे अपना कहा था
इस घर में रह गये हम ।
उन नन्हें मुन्नों के संग
कब ज़िन्दगी गुजरी
वह जवान हो गये और
हम बच्चें बन गये हैं।
जिन्हें हाथ पकड़ कर चलाया
वो अब हाथ पकड़कर चलाने लगें हैं
अब सब वो अपनी जिम्मेदारियों में
और हम अकेले रह गये हैं।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।