शिक्षिका हेमलता बहुगुणा की कविता-पिता हैं मेरे
पिता हैं मेरे
उंगली पकड़कर चलना सिखा दर
बाहों का झूला बनाकर झूलाया
बाहर की नजरों से हमें बचाया
मेहनत कर के हमें है खिलाया
वो कोई और नहीं पिता हैं मेरे।
पढ़ाई में जो हमारे संग में खड़े हैं
धोखा न दे वो सबसे लड़ें है
हर कदम में वह मजबूत खड़े हैं
दुःख दर्द और चिन्ता में मेरे
वो कोई और नहीं पिता हैं मेरे।
दिखाया हैं हमको दुनिया की राहें
हर राह को है फूलों से सजाया
कांटो में चलकर हमें सुख दिलाया
कुबेर का खजाना हम पर बरसाया
गरम हो ठंड़ा हो चलना सिखाया
पड़े इनपर दुखों के घेरे
वो कोई और नहीं पिता हैं मेरे।
मां मेरी उनके पीछे है बलशाली
अपने घर को कभी रखती न खाली
नजर गांड़ दरवाजे पर खड़ी है वो
आयेंगे अब वो अपनी बात पर अड़ी है
बोलूंगी अब सब कारनामे तेरे
वो कोई और नहीं पिता हैं मेरे।
हमारे लिए अपना सुख चैन छोड़ा
हमारे लिए अपनों से मुहं मोड़ा
अपना बनाया हमी को है सौपा
कोई नहीं है सब तुम ही हो मेरे
वो कोई और नहीं पिता हैं मेरे।
कवयित्री का परिचय
नाम-हेमलता बहुगुणा
पूर्व प्रधानाध्यापिका राजकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय सुरसिहधार टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।