कवि एवं साहित्यकार दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली गजल-सिपै-दादा
सिपै-दादा
हमरि सान-ईमान-गुमान, तुम छवा सिपै-दादा.
बग्त हो-या कुबग्त, देसा-काम अवा सिपै-दादा..
छाति नि झुकि-न झुकलि, कैक अगोड़ि कबि,
देश सेवम सदनि, अग्नै-अग्नै रवा सिपै-दादा..
फींति फरि- फींति लगीं, छाति- मैडल सजीं,
हम खुड़ी त सदनि, सिपै ही छवा- सिपै-दादा..
हमकु रैबार- तुमकु तार ऐ, चम्म ड्यूटि लौटा,
सब छोड़ि- छाड़ी, बैरंग लौटि गवा सिपै-दादा..
नेफा- लद्दाख, पाक- चैना बौडर हो कखि बि,
दौड़िक – चलि ग्यवा, बड़ि – हवा सिपै-दादा..
सुदि नि हूंदू , ब्वे-बाब भै-भैंड़ौं भेटणु-छोड़णुं,
जिकुड़िका- यूँ ऑसूं, सरर् पेग्यवा सिपै-दादा..
‘दीन’ जबबि घार अवा, रम-ब्रांडि दगड़ ल्यवा,
अफ हैंसदै गवा, झांज्यूं-रुलै ग्यवा सिपै-दादा..
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।