इस बार भी दीपावली में दिल्ली में पटाखों के बेचने और इस्तेमाल पर रहेगा प्रतिबंध
दिल्ली में वायु प्रदूषण के साथ ही कोरोना के मद्देनजर पिछले साल की तरह इस बार भी सभी तरह के पटाखों के भंडारण, पटाखे बेचने और इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
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पिछले साल व्यापारियों की ओर से पटाखों के भंडारण के पश्चात प्रदूषण की गंभीरता को देखत हुए देर से पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया गया। पिछले साल कोरोना की पहली लहर भी थी। कोरोना मरीजों को सांस लेने में दिक्कत को देखते हुए प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से अमूमन देश के कई राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया था। उत्तराखंड में भी कई शहरों में सिर्फ ग्रीन पटाखों के इस्तेमाल की छूट दी गई थी। साथ दी दीपावली, छठ पूजन आदि में आतिशबाजी के लिए समय निर्धारित किया गया था।
दिल्ली में तो व्यापारियों को बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ था। इस बार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि- सभी व्यापारियों से अपील है कि इस बार पूर्ण प्रतिबंध को देखते हुए किसी भी तरह का भंडारण न करें। बता दें कि अक्टूबर नवंबर में पराली जलने के चलते भी काफी प्रदूषण हो जाता है।
बता दें कि सीएम केजरीवाल ने पराली जलाने और प्रदूषण को लेकर कुछ दिन पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी। उन्होंने पराली जलाने के बजाये बायो डिकम्पोजर के इस्तेमाल पर जोर दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अब अक्टूबर-नवम्बर आने वाला है। 10 अक्टूबर के आस पास से दिल्ली की हवा फिर से खराब होने लगेगी। इसका बड़ा कारण है आस-पास के राज्यों में पराली जलाने से आने वाला धुआं। अभी तक सभी राज्य सरकारें एक-दूसरे पर छींटाकशी करती रही हैं, लेकिन दिल्ली सरकार समाधान निकाल लिया है।
पिछले साल दिल्ली सरकार ने एक समाधान निकाला। पूसा इंस्टीट्यूट ने एक बायो डिकम्पोज़र घोल बनाया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि किसान धान की फसल अक्टूबर के महीने में काटता है, जो डंठल ज़मीन पर रह जाता है उसे पराली कहते हैं। किसान को गेहूं की फसल की बुआई करनी होती है इसलिए किसान पराली जला देता है। अभी तक हमने किसानों को जिम्मेदार ठहराया। सरकारों ने क्या किया। सरकारों ने समाधान नहीं दिया। सरकारें दोषी हैं। पूसा का बायो डी कम्पोज़र, जो बहुत सस्ता है। उसका हमने दिल्ली के 39 गांवों में 1935 एकड़ जमीन पर छिड़काव किया। जिससे डंठल गल जाता है और ज़मीन बुआई के लिए तैयार हो जाती है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।