सोशल मीडिया में जीती जंग, पर्यावरणविद स्व. बहुगुणा की पत्नी को पेंशन जारी, जानिए पूरा प्रकरण
एक तरफ भारत रत्न की पैरवी, दूसरी तरफ उत्तराखंड सरकार ने की उपेक्षा
दो माह पहले सुंदरलाल बहुगुणा का निधन हो गया था। तब नेताओं में श्रद्धांजलि देने की होड़ सी मच गई थी। उनके बताए मार्गों पर चलने के उदाहरण दिए गए। सिर्फ ये बातें भाषणों में होती रही। खासकर उत्तराखंड में। वहीं, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सरकार ने विधानसभा में समारोह आयोजित कर स्व. बहुगुणा के दो चित्रों का लोकार्पण किया। इस दौरान उनके परिवार के लोगों को सम्मानित किया। फिर उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि बहुगुणाजी के समाज को दिए गए योगदान को देखते हुए उन्हें भारत रत्न प्रदान किया जाए। इसके बाद गुरुवार 29 जुलाई को दिल्ली विधानसभा में इस मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया। उधर, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी सोशल मीडिया में स्व. बहुगुणा को मरणोपरांत भारत रत्न देने की पैरवी की। वहीं, पेंशन के मामले में सरकार की ओर से उपेक्षा की गई। मामले को लंबा लटकाया गया। विशेष परिस्थितियों में तकनीकी दिक्कतों को ऐसे लोगों से संपर्क कर ठीक किया जा सकता था। पेंशन के कागज घर पहुंचकर दिए जा सकते थे। क्योंकि बहुगुणा उन हस्तियों में शुमार रहे, जिन्हें उनके आश्रम में देश की बड़ी हस्तियां खुद मिलने पहुंच जाती थी।
पेंशन को लेकर राजीव नयन ने डाली थी पोस्ट
शुक्रवार को इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट लिखकर स्वर्गीय बहुगुणा के पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने नाराजगी जताई थी कि आश्रित पेंशन के उनके आवेदन पत्र मुख्य कोषाधिकारी कार्यालय ने गुम कर दिए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि दोबारा आवेदन पत्र जमा करने के बाद भी उनकी सुध नहीं ली जा रही है। हालांकि, इसके बाद शनिवार को मुख्य कोषाधिकारी कार्यालय ने पेंशन की कार्रवाई पूरी कर दी।
अधिकारियों ने दी ये सफाई
इस मामले में मुख्य कोषाधिकारी रोमिल चौधरी का कहना है कि पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा की मृत्यु 21 मई 2021 को हुई थी। जब इसकी सूचना मिली तो पेंशन रोक दी गई। उनके स्वजन ने आश्रित पेंशन के लिए आवेदन किया और उसके तत्काल बाद से पेंशन हस्तांतरित करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई थी। पेंशन प्रपत्र में पद्मविभूषण बहुगुणा की पत्नी का नाम नहीं था। लिहाजा, इस स्थिति में विभिन्न शासनादेशों का अवलोकन कर समाधान निकाला गया।
इसके बाद 24 जुलाई को आश्रित पेंशन के रूप में बहुगुणा की पत्नी का सत्यापन भी कर दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पेंशन मिलने में आ रही अड़चन या आवेदन पत्र गायब होने की शिकायत उनके समक्ष नहीं आई। अन्यथा किसी भी असुविधा पर पहले ही स्थिति स्पष्ट कर दी जाती।
राजीव नयन बहुगुणा की पोस्ट
बेशर्मी की हद
कुछ शर्म बाक़ी है ? मेरे स्वर्गीय पिता सुंदर लाल बहुगुणा की स्वाधीनता सेनानी पेंशन उनकी मृत्यु के ढाई महीने बाद भी मेरी मां के नाम स्थानांतरित न हो सकी। यह उत्तराखंड प्रदेश का मामला है। केंद्रीय पेंशन में कोई समस्या नहीं आयी। एक बार ज़िला ट्रेज़री ऑफिस ने हमारे दिए कागज़ात खो दिए। दुबारा दिए तो कोई उत्तर नहीं ।
कल से 18 बार कलेक्टर ऑफिस फोन कर चुका। कभी साहब इंस्पेक्शन में हैं, कभी मीटिंग में हैं।
भाई कलेक्टर, मीटिंग में हो, या ईटिंग और चीटिंग में हो, जो एक स्वाधीनता सेनानी के प्रकरण पर बात करने के लिए आधा मिनट नही निकाल सकते। क्या यह किसी के इशारे पर जान बूझ कर किया जा रहा ? अब हमे पेंशन नहीं चाहिए। कितना बेइज़्ज़त करोगे? शेयर करना भाइयों। ताकि चेहरा सामने आए।
21 मई को हुआ था निधन
गौरतलब है कि 21 मई 2021 को 94 वर्ष की उम्र में कोरोना के चलते सुंदरलाल बहुगुणा का एम्स ऋषिकेश में निधन हो गया था। वे काफी समय से बीमार थे।
चिपको आंदोलन के हैं प्रणेता
चिपको आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी सन 1927 को देवभूमि उत्तराखंड के मरोडा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बीए किया। सन 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए। उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया।
अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना भी की। सन 1971 में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उत्तराखंड में बड़े बांधों के विरोध में उन्होंने काफी समय तक आंदोलन भी किया। सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में उन्हें पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज ‘पर्यावरण गाँधी’ बन गया है।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।