फर्जी आरटी-पीसीआर, निजी अस्पतालों की मनमानी सहित कई मामलों का हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, सरकार से मांगा जवाब
हाई कोर्ट नैनीताल ने सीमाओं पर फर्जी आरटी-पीसीआर टेस्ट, कोविडकाल में निजी अस्पतालों की ओर से सीटी स्कैन व एमआरआइ का मनमाना चार्ज वसूलने, ऑक्सीजन कन्संट्रेटर को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में नहीं रखने आदि जनहित याचिका पर सुनवाई की।

अधिवक्ता आदित्य प्रताप सिंह की ओर से इस संबंध में चीफ जस्टिस को पत्र भेजा गया था। इसका स्वत: संज्ञान लेते हुए पत्र को जनहित याचिका के रूप में सुनवाई के लिए शामिल किया गया। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता की ओर से बताया गया कि राज्य सरकार ने कोर्ट के पहले के आदेश के क्रम में सीटी स्कैन का रेट 2800 से 3200 रुपया निर्धारित कर दिया है। भारत सरकार के मिनिस्ट्री ऑफ कैमिकल्स ने तीन जून को देश के ऑक्सीजन कन्संट्रेटर निर्माताओं से एमआरपी मंगवाकर उसका भी मूल्य तय कर दिया है। केंद्र ने अब इसे अति आवश्यक श्रेणी में रख लिया है।
उन्होंने कोर्ट से यह भी प्रार्थना की है कि बॉर्डर पर आरटीपीसीआर रिपोर्ट चेकिंग की जा रही है, मगर कई लोग फर्जी रिपोर्ट लेकर आ रहे हैं। इसी रिपोर्ट के आधार पर उनको आने-जाने दिया जा रहा है। सुझाव दिया कि आरटीपीसीआर रिपोर्ट में एक बारकोड होता है, उसके आधार पर रिपोर्ट की चेकिंग की जाए। या फिर टेस्ट कराते समय जो मैसेज आता है उसे दिखाया जाए। अगर दोनों सही मेल खाती हैं तो ही रिपोर्ट को ठीक माना जाए। इस बिंदु पर कोर्ट ने सरकार को जवाब दाखिल करने को कहा है।
विद्युत परियोजना से संबंधित याचिका रद्द
हाई कोर्ट ने उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से आई बाढ़ के बाद ऋषिगंगा व तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी रद्द करने की मांग करती जनहित याचिका खारिज कर सख्त संदेश दिया है। साथ ही अदालत का समय बर्बाद करने पर पांच याचिकाकर्ताओं पर दस-दस हजार जुर्माना लगाकर पीआइएल के बहाने धमकाने वालों को कार्रवाई की चेतावनी दे डाली है।
दरअसल, हाई कोर्ट में जनहित याचिकाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। निजी के साथ ही राजनीतिक व अन्य मकसदों से भी जनहित याचिकाएं दायर हो रही हैं। जिसका मकसद कुछ और होता है, मगर उन्हें जनहित याचिका का रूप दे दिया जाता है। बुधवार को चमोली जिले के रैणी गांव निवासी संग्राम सिंह समेत पांच अन्य की जनहित याचिका खारिज करने के दौरान कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी भी की। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग हो रहा है। अब अदालत यह नजर रखेगी कि जनहित याचिका दायर करने वालों का असली मकसद वास्तव में जनहित है या कोई और मकसद है।
इस प्रकरण का दिया हवाला
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान राजस्थान का खासतौर पर जिक्र किया, जहां चंद अधिवक्ताओं की ओर से बिल्डरों को जनहित याचिका की धमकी देकर वसूली के मामले भी सामने आए। कोर्ट ने कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जाएगा कि किसी और मकसद के लिए किसी को पीआइएल करने वाले के रूप में खड़ा कर दिया जाए। कोर्ट पीआइएल करने वाले के बारे में भी जानकारी जुटाएगी।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।