कवयित्री स्वाती खण्डूरी डिमरी की कविता-लोकतंत्र है यह कैसा

लोकतंत्र है यह कैसा?
जहां चले बस तानाशाही और पैसा,
मांगते जो चुनाव में वोट…
छापते फिर उसपर नोट।
लोकमत तो फेक है,
हुकूमत बस एक है…
अरे एक कुर्सी पर कितनी लड़ाई?
खुश रखने को सबको बस,
पाँच वर्ष ही तो मिले थे भाई।
साल बचा इसमें बस एक…
पर करना है इसमें इन्हें जाने
कितनों का फ्यूचर सेफ?
काट काट देवभूमि वासियों का पेट,
कब तक पालोगे
अपनी आस्तीनों में स्नेक…
लोगों की आजीवन कमाई
तनख्वाह क्या?
पेंशन तक रोक ली भाई…
गुरुजन, कंपाउंडर या हो क्लीनर
इन से इनको क्या है लेना…?
हक सब अपना मांग रहे हैं,
पर नए-नए कानून भी तो
यह लोग छाप रहे हैं।
अब ना हम अनुरोध करेंग…
आजाद बन विरोध करेंगे…
अंग्रेज तो फिर भी भाग चले थे,
तुम सब कहां जाकर छुपोगे?…
आम आदमी रह गया बेचारा,
लोकतंत्र हर हाल में हारा।
मतदाता यूं ही पिसता रहा सदैव हमारा,
हैरान हैं, देखकर सत्ता का उतरता-चढ़ता पारा।
हाँ सच है यह, सच ही तो है,
लोकतंत्र हर हाल में हारा…
हर हाल में हारा…
कवयित्री का परिचय
नाम-स्वाती खण्डूरी डिमरी
कवियित्री डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून की पूर्व छात्रा हैं। एमकाम, यूजीसी नेट पास तथा एकाउंट्स में शिक्षण कार्य में कार्यरत हैं। इनके कैलिफोर्निया कनाडा आदि से काव्य संबंधित साक्षात्कारों का 184 देशों से लाइव प्रसारण दूरदर्शन और रेडियो पर भी हो चुके हैं। देहरादून में जन्मी स्वाति फिलहाल हैदराबाद में रह रही हैं, किन्तु उत्तराखंड के प्रति इनका प्रेम जागरूकता इनकी कविताओं में और साक्षात्कारों में स्पष्ट झलकती है।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।