कोरोना से स्वस्थ हो चुके लोग फिर हो रहे आइसीयू में भर्ती, साइटोकाइन स्टॉर्म का खतरा, बढ़ रहे मौत के आंकड़े
महाराष्ट्र में महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में सिंगल डिजिट तक पहुंचीं कोविड से होने वाली मौतें फिर डबल डिजिट हो गई हैं। कोरोना से ठीक हो चुके मरीज भी मौत का शिकार हो रहे हैं। जानकार बताते हैं कि इसकी एक अहम वजह लंबे कोविड के अलावा साइटोकाइन स्टॉर्म दिख रहा है।

ये है साइटोकाइन स्टॉर्म
कोविड मरीजों का जब इम्यून सिस्टम वायरस से लड़ने में जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो जाता है और शरीर के दूसरे हिस्सों को नुकसान पहुंचाने लगता है। तब इस घातक रूप को साइटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में इसने भी रूप बदला है।
इस बीमारी में भी दिख रहा बदलाव
लायंज क्लब हॉस्पिटल के डॉक्टर सुहास देसाई ने कहा कि पहली वेव में ऐसा था कि गम्भीर मरीज साइटोकाइन स्टॉर्म फेज में ही अस्पताल आते थे, वे केस क्रिटिकल होते थे और रिकवर होने के बाद बीमारी के दोबारा लौटने का चांस नहीं रहता था। अब दिख रहा है की मरीज जब इंफेक्शन से सेटल होने लगता है, तब उस फेज में अचानक ब्रेथलेस होता है या फिर से हालत बिगड़ती है। ये पेशेंट पहले पॉजिटिव हुए थे, पर जब हमारे पास आए तो साइटोकाइन स्टॉर्म में थे। साथ ही मरीज को एक साइड फेशियल स्वेलिंग थी।
Wockhardt अस्पताल का कहना है कि इस बार कोविड से ठीक होकर ICU से नॉर्मल वॉर्ड में जाने वाले करीब 5 फीसदी मरीज फिर कुछ दिनों बाद ICU लाए गए। इनमें से 2 प्रतिशत मरीजों की मौत सम्भव है। अस्पताल के ICU डायरेक्टर डॉक्टर बिपिन जिभकाटे ने कहा कि बहुत सारे मरीज ICU से ठीक होकर कोविड वॉर्ड में शिफ्ट होते हैं। इनमें से हमने देखा है कि 3-5 फीसदी मरीजों में फिर सिम्प्टम बढ़ते हैं। उनको वापस ICU में भर्ती करना पड़ता है. 1-2 फीसदी मामलों में मौत भी हो जाती है। 40 प्रतिशत तक ऐसे मरीज हैं, जो लॉन्ग टर्म वेंटिलेटर पर हैं। यानी एक महीने से ऊपर उनको वेंटिलेटर पर हो गया है।
बढ़ा मौत का आंकड़ा
गौरतलब है कि 8 जून को सिंगल डिजिट 7 मौतों के बाद 9 जून को 27 और 10 जून को 22 मौतें मुंबई शहर ने देखीं। शहर के 70 फीसदी वेंटिलेटर और 60 फीसदी ICU बेड अभी भी फुल हैं। शहर में 1100 क्रिटिकल कोविड मरीजों का इलाज चल रहा है। एक्स्पर्ट्स कहते हैं कि अस्पताल से छुट्टी के बाद करीब तीन महीने की सेल्फ मॉनिटरिंग जरूरी है। इस बीच कोई भी लक्षण नजरअंदाज न करें।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।