कोरोना के नियमों का संदेश देती शिक्षक श्याम लाल भारती की कविता- वतन को राख न होने दो

वतन को राख न होने दो
रुक जाओ अभी भी घरों में,
वतन को राख मत होने दो।
मौतें जो हो गई हज़ारों में,
उसको अब लाख मत होने दो।।
क्यों बेवजह निकलते घरों से तुम,
वतन को खाक मत होने दो।
ठहर जा घर पर इस घड़ी,
अब घर को मत खाक होने दो।।
मास्क पहन सफाई रख दूरी बना,
आंख में आंसू तो मत आने दो।
इसी में सबकी भलाई छुपी है,
इन बुरे पलों को तो बीत जाने दो।
विनती कर रहा, आज वतन तुझसे
मुझे शमशान घाट मत बनने दो।
आज की जंग लड़े, सब साथ में मिलकर,
इस जंग को अब खाक मत होने दो।।
थाम ले पैर, वतन और अपनों की खातिर,
बेवजह जान खाई में मत गिरने दो।
बीत जाएंगे जरूर ये बुरे पल अब,
जान को अपनी राख मत होने दो।
रुक”””””””””‘”””””””””””””””””””‘ दो।
मौतें”””””””””””””””””””””””””” दो।।
कवि का परिचय
नाम- श्याम लाल भारती
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय देवनगर चोपड़ा में अध्यापक हैं और गांव कोठगी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड के निवासी हैं। श्यामलाल भारती जी की विशेषता ये है कि वे उत्तराखंड की महान विभूतियों पर कविता लिखते हैं। कविता के माध्यम से ही वे ऐसी लोगों की जीवनी लोगों को पढ़ा देते हैं।
Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
भारती जी मौत लाख क्या कयी लाख हो गई है.