उत्तराखंड में ब्लैक फंगस से अब तक छह की मौत, अब तक मिल चुके हैं 60 से ज्यादा संक्रमित
ब्लैक फंगस का कहर अब उत्तराखंड में भी नजर आने लगा है। उत्तराखंड में अब तक इस बीमारी से छह लोगों की जान चली गई है। साथ ही अब तक 60 से ज्यादा लोगों में इसका संक्रमण मिला।
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ब्लैक फंगस का कहर अब उत्तराखंड में भी नजर आने लगा है। उत्तराखंड में अब तक इस बीमारी से छह लोगों की जान चली गई है। साथ ही अब तक 60 से ज्यादा लोगों में इसका संक्रमण मिला। साथ ही एम्स ऋषिकेश में ही कुल 61 मामले सामने आए हैं। यहां इस बीमारी से अब तक पांच लोगों की जान गई है। एक मरीज की मौत हल्द्वानी स्थित एक अस्पताल में हुई। इसके अलावा पिथौरागढ़, अल्मोड़ा में एक एक और हल्द्वानी में दो, देहरादून के अन्य अस्पतालों में भी कई लोगों में इस बीमारी की पुष्टि हो चुकी है।
शुक्रवार 21 मई को को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में ब्लैक फंगस संक्रमित मेरठ उत्तर प्रदेश निवासी 64 वर्षीय एक मरीज के साथ ही देहरादून निवासी मरीज की भी मौत हो गई। एम्स में ऐसे पांच मरीजों की अब तक मौत हो चुकी है। एम्स ऋषिकेश में ब्लैक फंगस (म्यूकोर माइकोसिस) के कुल 61 मरीज आ चुके हैं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से आने वाले ब्लैक फंगस संक्रमित मरीजों की संख्या प्रतिदिन बढ़ रही है। ब्लैक फंगस के उपचार के लिए गठित टीम के मुखिया व इएनटी सर्जन डॉ. अमित त्यागी ने बताया कि एम्स में आए अब तक कुल 61 मरीजों में तीन की मृत्यु पूर्व में हो चुकी है और ऋषिकेश निवासी 81 वर्षीय महिला मरीज को उपचार के डिस्चार्ज किया जा चुका है। शुक्रवार को उपचार के दौरान एक अन्य रोगी मेरठ निवासी 64 वर्षीय पुरुष की मृत्यु हो गई। वहीं, देर शाम म्यूकोर माइकोसिस से ग्रसित एक अन्य देहरादून निवासी 65 वर्षीय मरीज की मृत्यु हो गई। अब एम्स में म्यूकोर माइकोसिस के 56 रोगी भर्ती हैं।
एम्स निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने इस मामले में 15 चिकित्सकों की अलग से टीम गठित की है। वह प्रतिदिन टीम से अपडेट ले रहे हैं। अब तक यहां ब्लैक फंगस संक्रमित मरीजों के लिए दो वार्ड बनाए जा चुके हैं। जिसमें आइसीयू बेड की भी सुविधा उपलब्ध कराई गई है। भविष्य में यदि ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ती है तो एम्स प्रशासन वार्ड का भी विस्तार करेगा।
क्या है ब्लैक फंगस
म्यूकोरमाइकोसिस को काला कवक के नाम से भी पहचाना जाता है। संक्रमण नाक से शुरू होता है और आंखों से लेकर दिमाग तक फैल जाता है। इस बीमारी में में कुछ गंभीर मरीजों की जान बचाने के लिए उनकी आंखें निकालनी पड़ती है। इस फंगस को गले में ही शरीर की एक बड़ी धमनी कैरोटिड आर्टरी मिल जाती है। आर्टरी का एक हिस्सा आंख में रक्त पहुंचाता है। फंगस रक्त में मिलकर आंख तक पहुंचता है। इसी कारण ब्लैक फंगस या ब्लड फंगस से संक्रमित मरीजों की आंख निकालने के मामले सामने आ रहे हैं। अब हर दिन बढ़ रहे हैं मामले गंभीर मामलों में मस्तिष्क भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकता है।
ये हैं लक्षण
गंभीर फंगल इंफेक्शन से गाल की हड्डी में एक तरफ या दोनों दर्द हो सकता है। यह फंगल इंफेक्शन के शुरुआती लक्षण है। विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे-जैसे ब्लैक फंगल इंफेक्शन किसी व्यक्ति को अपनी चपेट में लेता है, तो उसकी आंखों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। इसके कारण आंखों में सूजन और रोशनी भी कमजोर पड़ सकती है। फंगल इंफेक्शन मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है, जिससे भूलने की समस्या, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं आ सकती हैं।
स्टेरॉयड का सही उपयोग करें चिकित्सक
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के मुताबिक कई अस्पताल इस दुर्लभ और घातक संक्रमण में वृद्धि की रिपोर्ट कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डायबिटीज से पीड़ित कोविड-19 रोगियों को जिन्हें इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया जा रहा है, उनमें म्यूकोर्मिकोसिस या “ब्लैक फंगस” से प्रभावित होने की आशंका अधिक होती है। सभी चिकित्सकों को सलाह दी कि वे केवल और केवल तभी स्टेरॉयड का उपयोग करें जब राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कोविड गाइडलाइन के अनुसार आवश्यक हो। उन्होंने सभी चिकित्सकों से जीवन रक्षक और जीवनदायी दवाओं का सही खुराक और सही अवधि और सही समय पर उपयोग करने की अपील की। उन्होंने बीमारी के शुरुआती पांच दिनों के दौरान स्टेरॉयड का उपयोग न करने की चेतावनी दी। इसके साथ ही उन्होंने ऑक्सीजन तथा पेयजल के सही उपयोग पर भी जोर दिया।
ये बरतें सावधानियां
-धूल भरे निर्माण स्थलों पर जाने पर मास्क का प्रयोग करें।
-मिट्टी (बागवानी), काई या खाद को संभालते समय जूते, लंबी पतलून, लंबी बांह की कमीज और दस्ताने पहनें।
-साफ-सफाई व व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखें।
-कोविड संक्रमित मरीज के डिस्चार्ज के बाद और मधुमेह रोगियों में भी रक्त शर्करा के स्तर की निगरानी करें।
-स्टेरॉयड का सही समय, सही खुराक और अवधि का विशेष ध्यान दें।
-ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान ह्यूमिडिफायर के लिए स्वच्छ, जीवाणु रहित पानी का उपयोग करें।
-फंगल का पता लगाने के लिए जांच कराने में संकोच न करें।
-नल के पानी और मिनरल वाटर का इस्तेमाल कभी भी बिना उबाले न करें।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।