पढ़िए दीनदयाल बन्दूणी की गढ़वाली रचना-रोज जीवन में नए अध्याय
रोज जीवनम , नै अध्या जुड़द.
रोज नैं- नैं , सिखड़ा कु मिलद.
रोजा हिसाब- निसाब , रोज ह्वे-
रोज ! हर रोजा , भाग खिलद..
नैं दिन – नैं बात , नैं सोच राखा.
अगोड़ि-पछोड़ि, ज्य हूंणूं द्याखा.
ज्यूकी पीड़ा , भोगी – जॉड़ीं –
लिख साका , जरूर ल्याखा..
ज्यूं भितरा- ज्यूं भितर , रै जांद.
भैरा बोल्यूं , जै – कै काम आंद.
भलि हो – बुरि हो , कनिबि हो –
हर बात-रात , क्वी पाठ पढांद..
जो आयी – रायी , वीं त गाई.
खटु- मिठु जनु पै , वी त खाई.
नैं दगड़ि , नैं- पुरणु रऴै- मिसै-
अपड़ ल्याखन , नैं-नवेलु बड़ॉई..
सीखा त , किरमोऴु बि सिखांद.
जाॅड़ा त , परलोक बि जड़ि जांद.
बाजि बाजि , जनि ऐं – उनि गैं-
न अफ च्याता , न हैंका चितांद..
कुछ छन , बरसौं- अरसौं बटी.
रैं इकसर , इकसर ह्वे घटी-बढी.
ये खेला भितर बि , चलणूं खेल-
कबि दिन घटी , कबि दिन बढी..
‘दीन’ घट- बढ , जीवन सार च.
यीं त ! परमेसुरा , मार च.
येक भितर छन , परॉण बस्यां-
यींत हमरि , जीत – हार च..
कवि का परिचय
नाम .. दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन
गाँव.. माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य
सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।