युवा कवि एवं बीएचयू के छात्र गोलेन्द्र पटेल की कविता-मुसहरिन माँ
मुसहरिन माँ
धूप में सूप से
धूल फटकारती मुसहरिन माँ को देखते
महसूस किया है भूख की भयानक पीड़ा
और सूँघा मूसकइल मिट्टी में गेहूँ की गंध
जिसमें जिंदगी का स्वाद है
चूहा बड़ी मशक्कत से चुराया है
जिसे चुराने के चक्कर में
अनेक चूहों को खाना पड़ा जहर
अपने और अपनों के लिए
आह! न उसका गेह रहा न गेहूँ
अब उसकी भूख का क्या होगा?
उस माँ का आँसू पूछ रहा है स्वात्मा से
यह मैंने क्या किया?
मैं कितना निष्ठुर हूँ
दूसरे के भूखे बच्चों का अन्न खा रही हूँ
और खिला रही हूँ अपने चारों बच्चियों को
सर पर सूर्य खड़ा है
सामने कंकाल पड़ा है
उन चूहों का
जो विष युक्त स्वाद चखे हैं
बिल के बाहर
अपने बच्चों से पहले
आज मेरी बारी है साहब!
कवि का परिचय
नाम-गोलेन्द्र पटेल
ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश,
शिक्षा-काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र (हिंदी आनर्स)।
मोबाइल-8429249326, ईमेल : corojivi@gmail.com
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
बहुत मार्मिक रचना