कोविड कर्फ्यू में आनलाइन मनाई हिमपुत्र बहुगुणा की जयंती, कांग्रेस उपाध्यक्ष धस्माना के लाइव से जुड़े लोग

फाइल फोटो-प्रतीकात्मक
कोरोनाकाल ने आयोजनों के तरीके भी बदल दिए हैं। हिमपुत्र एवं पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की जयंती को कांग्रेसियों ने घर पर बैठकर ही मनाया। उनके राजनीतिक शिष्य एवं कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने फेसबुक लाइव के जरिये लोगों को बहुगुणाजी की यादों को ताजा किया। उनके किस्से सुनाए। साथ ही उनके पदचिह्नों पर चलने का आह्वान भी किया। गौरतलब है कि उत्तराखंड में हर रविरार को कोविड कर्फ्यू लगाया जा रहा है, ऐसे में बहुगुणाजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने की बजाय कार्यकर्ताओं ने घरों पर ही बैठकर उनके चित्र पर माल्यार्पण किया।
हिमपुत्र हेमवतीनंदन बहुगुणा 102 वीं जयंती पर बहुगुणा जी के अनुयायी रहे उत्तराखंड में प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने फेस बुक लाइव के माध्यम से बहुगुणा जी के बहुआयामी व्यक्तित्व के ऊपर अपने विचार रखे व उनको श्राद्धाजंलि अर्पित की। 50 मिनट के अपने फेस बुक लाइव में धस्माना ने कहा कि गांधी जी के व्यक्तित्व में दरिद्र नारायण के कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता एवं धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर अटूट आस्था, नेहरू जी के विकासोमुखी सोच व नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व में संघर्ष के जज्बे की झलक और इन तीनों के व्यक्तित्वों के मिश्रण के सबसे नजदीक अगर किसी नेता के व्यक्तित्व को ढूंढेंगे तो उस खांचे में सबसे ज्यादा फिट हिमालय पुत्र हेमवतीनंदन बहुगुणा के व्यक्तित्व को पाएंगे।
1919 में तत्कालीन उत्तरप्रदेश के पौड़ी गढ़वाल जिले के बुघाणी गांव में रेवती नंदन बहुगुणा के घर पैदा हुए सुपुत्र हेमवतीनंदन प्राथमिक शिक्षा के बाद माध्यमिक शिक्षा के लिए देहरादून आये और देहरादून के प्रसिद्ध डीएवी इंटर कालेज से पढ़कर उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विवि पहुंच गए। जहां छात्र राजनीति में पदार्पण किया और वहीं से स्वतंत्रता संग्राम के सैनानियों से संपर्क में आये। इस दौरान वह देश की आजादी के आंदोलन में कूद गए। उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर दस हजार रुपये इनाम घोषित हुआ और उन्होंने जेल यात्रा की ।
1942 के अंग्रजों भारत छोड़ो आंदोलन में युवा हेमवती की एक अलग जुझारु पहचान बनी और वहीं से पंडित नेहरू, लाल बहादुर जैसे नेताओं के संपर्क में आये और देश की आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनावों में उत्तर प्रदेश की विधानसभा में इलाहाबाद से विधायक चुने गए। फिर उत्तरप्रदेश में संसदीय सचिव से शुरुआत कर 1973 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने व 1977 में कांग्रेस छोड़ बाबू जगजीवन राम के साथ मिल कर कांग्रेस फार डेमोक्रेसी बनाई। जो बाद में जनता पार्टी में विलय हो गयी।
1977 में बहुगुणा जी लोक सभा में पहुंचे और केंद्र में मोरारजी देसाई की जनता सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बने और बाद में जनता पार्टी के विभाजन के बाद चौधरी चरण सिंह के अल्प कार्यकाल वाली सरकार में देश के वित्त मंत्री बने। 1980 में इंदिरा जी स्वयं बहुगुणा जी के घर गईं। उनको न केवल कांग्रेस में वापस शामिल करवाया, बल्कि उनके लिए पार्टी के संविधान में संशोधन करवा कर मुख्य महासचिव के पद बनवा कर उन्हें उस पर नियुक्त किया। 1980 में कांग्रेस सत्ता में वापस आयी, लेकिन कुछ ही दिनों में बहुगुणा जी व इंदिरा जी के मध्य संजय गांधी को लेकर मतभेद हो गए। औउन्होंने एक बार फिर कांग्रेस को अलविदा कह दिया, लेकिन उन्होंने इस बार एक इतिहास बनाया। जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तो उन्होंने साथ ही संसद की सदस्यता से यह कहते हुए त्यागपत्र दे दिया कि जिस पार्टी के टिकट पर चुन कर आया हूँ, जब उस पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूँ तो संसद की सदस्यता से भी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे रहा हूँ।
वे देश में ऐसा करने वाले पहले सांसद बन गए, क्योंकि उस वक्त दल बदल कानून नहीं था और ऐसा करना बाध्यकारी नहीं था। बहुगुणा जी के इस्तीफे के बाद ऐतिहासिक उप चुनाव हुआ, जिसकी अपनी अलग कहानी है। इस चुनाव में बहुगुणा जीते और विपक्षी राजनीति के केंद्र में आ गए। 80 के पूरे दशक में जब तक बहुगुणा जीवित रहे तब तक विपक्ष की पहली कतार के अग्रणीय नेता बने रहे और 1988 में जब जनता दल बनने की प्रक्रिया में उनका सैद्धांतिक स्टैंड जनता दल में लोक दल के विलय में बाधक बन गया। बहुगुणा जी चाहते थे कि जो नया दल बने उसकी एक स्पष्ट नीति यह हो कि उस दल का भविष्य में किसी प्रकार का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कोई भी संबंध या गठबंधन चुनाव पूर्व या चुनाव बाद आरएसएस और भाजापा से न हो।
बहुगुणा जी की इस शर्त को सत्ता येन केन प्रकारेण प्राप्त करने की चाहत रखने वाले नेताओं ने नहीं मानी। लोक दल के अधिकांश नेता जिनमें देवी लाल, बीजू पटनायक, मुलायम सिंह, शरद यादव, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, मोहन प्रकाश जैसे दिगज्ज शामिल थे, वे बहुगुणा जी का साथ छोड़ कर नए दल जनता दल में शामिल हो गए। तब भी बहुगुणा जी ने धर्म धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर समझौता नहीं किया। लोक दल का अस्तित्व कायम रख फरवरी 1989 में लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में विशाल रैली कर अपनी ताकत का एहसास सब को करवाया। वही रैली उनकि सेहत बिगड़ने का कारण बनी और 17 मार्च 89 को अमरीका में बायपास सर्जरी के बाद उनका देहावसान हो गया।
सूर्यकांत धस्माना ने 1986 में देहरादून में बहुगुणा जी की एक प्रेस कांफ्रेंस के संस्मरण सुनाते हुए बताया कि किस तरह उस वक्त जब केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत वाली कांग्रेस सरकार थी तब बहुगुणा जी ने घोषणा कर दी थी कि आने वाला समय गठबंधन सरकारों का युग होगा। केंद्र में भी और राज्यों में भी। मात्र तीन साल बाद बहुगुणा जी की वह भविष्यवाणी सच साबित हुई। केंद्र में 1989 से ले कर 20014 तक व यूपी, बिहार, हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों में गठबंधन सरकारें बननी शुरू हुई। जो आज भी जारी है। धस्माना के लगभग पचास मिनट के फेस बुक लाइव से करीब डेढ़ हजार लोगों ने जुड़ कर हिमालय पुत्र बहुगुणा जी को श्राद्धाजंलि अर्पित की।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।