Loksaakshya Social

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

Social menu is not set. You need to create menu and assign it to Social Menu on Menu Settings.

December 19, 2024

कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा कितनी प्रभावीः सोमवारी लाल सकलानी

विकास के लिए विद्यालय परिसर में प्राप्त शिक्षा जरूरी है। इसी से बच्चे का चहुंमुखी विकास होता है और बच्चे के मन, शरीर और आत्मा का विकास भी होता है।

पिछले वर्ष की स्थिति
मार्च 2020 से कोरोना के कारण संपूर्ण विश्व प्रभावित हुआ है। उद्योग, व्यापार रोजगार, अर्थव्यवस्था आदि निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं। रोजी-रोटी के संकट के साथ-साथ बच्चे और बुजुर्ग घर में सर्वाधिक बेचैन अवसाद ग्रस्त और चिडपिड़े हो गए हैं । लॉक डाउन 01 से 03 तक लोगों की बेचैनी, डर और असुरक्षा की भावना बढ़ती गई । सरकार से लेकर जनता तक किंकर्तव्यविमूढ़ रही। क्या किया जाए ? क्या न किया जाए ? यद्यपि केस बढ़ते जा रहे हैं लेकिन धीरे-धीरे लोग कोरोना में जीवन जीना सीख रहे हैं।
शिक्षा व्यवस्था पर प्रभाव
शिक्षा व्यवस्था पर कोरोना का बुरा प्रभाव पड़ा। 23 मार्च 2020 को बोर्ड परीक्षाएं स्थगित हो गई थी। स्कूल कॉलेज बंद हो गए जो कि कमोबेश (1 से 5 तक) आज भी बंद हैं। विद्यालय बच्चे के चहुंमुखी विकास के स्रोत हैं। बच्चा विद्यालय में केवल पाठ्यक्रम पूरा करने ही नहीं जाता बल्कि वह विद्यालय के स्वस्थ वातावरण में अध्यापकों और सहपाठियों के हाव-भाव, व्यवहार, पहनावे, ज्ञान और कौशल सी भी सीखता है। परस्पर बच्चे खेल-खेल में ही बहुत कुछ सीख जाते हैं। उनकी क्षमताओं, ज्ञान और कौशल का विकास भी विद्यालय में ही संभव है। खेल और अनुशासन विद्यार्थी विद्यालय में सीखते हैं । उनके अंदर परस्पर सहयोग तथा सामाजिकता की भावना भी विकसित होती है। कुल मिलाकर विद्यालय छात्रों के भावी जीवन के आधार हैं।
कोरोना एक संक्रामक बीमारी
कोरोना संक्रामक बीमारी है। शिक्षा से पहले जीवन का महत्व है। चाहे कोई भी जीव या प्राणी क्यों ना हो। मनुष्य हो या प्राणी मृत्यु से सभी डरते हैं। इसलिए कोरोना काल में विद्यालयों को छात्र सुरक्षा दृष्टि से बंद रखना लाजमी था और है । यह ठीक उसी तरह है ,जैसे भोजन को सम्मान से ज्यादा रोटी की आवश्कता होती है।
जीवन और कुदरत की प्रक्रिया स्थिर नहीं रह सकती है। यह गतिमान प्रक्रिया है। मृत्यु के भय से जीवन भर घर में कैद बनकर नहीं रहा जा सकता है ।लंबे समय तक घर बैठे रहना असंभव है। सरकारों की भी मजबूरी है।
आनलाइन पढ़ाई
कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षण कार्य देश और प्रदेश में शुरू हुआ है ।ब्लॉक स्तर पर कुछ केंद्र चिन्हित किए गए। जहां बेहतर कंप्यूटर ,इंटरनेट आदि की सुविधाएं हैं। इसके लिए पहले शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया और फिर व्हाट्सएप आदि के माध्यम से बच्चों को कार्य दिया गया है। खेद की बात यह है कि ग्रामीण तथा पर्वतीय क्षेत्रों में 50 फीसद छात्र छात्राओं के पास एंड्रॉयड फोन नहीं है। नेटवर्क की कमी दूसरा कारण है। कनेक्टिविटी न होने के कारण समाज के सीमित वर्ग तक की इस व्यवस्था का लाभ मिल पा रहा है । वह भी अभीजात्य वर्ग को ही। सर्वहारा वर्ग आज भी वंचित है ।कहने को तो वर्चुअल क्लासेस गतिमान हैं, लेकिन ग्राउंड लेवल पर ‘ढाक के तीन पात’ हैं ।
मन की बात
बरसों से प्रधानमंत्री जी की ‘मन की बात’ होती आई है। विद्यालयों को निर्देश दिए जाते हैं कि टीवी, कंप्यूटर और रेडियो का प्रबंध कर लिया जाए। दिखाने के लिए सब कुछ होता है, क्योंकि तुरंत बात भी होती है। बच्चे अधिगम स्तर क्या रहा, इस बात का अनुश्रवण करने पर पाया गया कि असेवित पर्वतीय क्षेत्रों मे केवल यह रस्म अदायगी मात्र तक सीमित है। कोई कुछ भी कहे या दुनिया कितनी भी आगे बढ़ जाए, बिना भी विद्यालय की शिक्षा के कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। घर में व्यक्ति की सृजनात्मक शक्ति उत्पन्न हो सकती है। वैज्ञानिक विचार जन्म ले सकता है, लेकिन जब तक उस शक्ति और विचार को प्रकाश में नहीं आएगा, जब तक उनका प्रयोग नहीं होगा, तब तक वह पोथी पर लिखा हुआ ज्ञान या दूसरे की जेब में रखे हुए पैसे के समान है।
जेम्स वाट के विचार केतली और न्यूटन के विचार पेड़ के नीचे तक ही सीमित रहते यदि इन विचारों पर प्रयोग नहीं होता, इनका प्रैक्टिकल न होता तो ये निरर्थक हो जाते। व्हाटमैन की रचनात्मकता अमेरिका के किसी कोने में ही दफन होती, तो आज इनका प्रभाव ना होता।
विद्यालय में प्राप्त ज्ञान
विकास के लिए विद्यालय परिसर में प्राप्त शिक्षा जरूरी है। इसी से बच्चे का चहुंमुखी विकास होता है और बच्चे के मन, शरीर और आत्मा का विकास भी होता है। अनुशासन, संयम और सहयोग की भावना बढ़ती रहती है और बच्चा एक प्रैक्टिकल मैन की ओर आगे बढ़ता है ।
कामचलाऊ व्यवस्था
ऑनलाइन पढ़ाई केवल कामचलाऊ व्यवस्था है। यह व्यवस्था सामाजिकता से दूर है । केवल प्रयोजनार्थ है। ऐसा मेरा मानना है। मैंने लंबे समय तक शिक्षण कार्य किया है। पाठ्यक्रमों, पाठ्यवस्तु विषय वस्तु, पाठ्यचर्या के अलावा सतत बच्चों को संस्कारी शिक्षा भी प्रदान की है। ऑनलाइन शिक्षा केवल सवाल को हल करना सिखा सकती है लेकिन ज्ञान की आत्मा नहीं छू सकती है। न जगा सकती है। यह बच्चों को सिखा सकती है लेकिन संस्कारित नहीं बना सकती है। उसका नैसर्गिक विकास भी नहीं कर सकती है ।
बिना संस्कारित शिक्षा के भावी पीढ़ी का जीवन कैसा होगा ? कल्पना कीजिए अभी 19 जुलाई 2020 को नई शिक्षा नीति- 2020 को भारत के कैबिनेट के द्वारा मंजूरी दी गई थी। यह कितनी कारगर होती है यह तो समय ही बताएगा। फिर भी प्रयास जारी है। कुछ बातें बहुत ठीक है। उस पर मंथन की बहुत जरूरत है।
सिद्धांत और व्यवहार में बहुत फर्क होता है । प्रजातांत्रिक देश का नागरिक खूब समझता है । यही बात शिक्षा पर भी लागू होती है। आदि काल से शिक्षा व्यवस्था चलती आई है। गुरुकुल से लेकर तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय और मैकाले की नीति से नई शिक्षा नीति 2020 तक का सफर। कुछ नीतियां भविष्य में भी बनेंगी।
मिशन आधारित हो शिक्षा
सवाल यह है कि व्यवस्था मिशन पर आधारित हो । कारपोरेटीकरण के दोष से बचे रहें तथा वर्तमान समय में रोजगार मूलक शिक्षा अत्यंत आवश्यक है। इतना तो सब जानते हैं कि जहां विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हुई है वहां के लोग कितने आगे बढ़ जाते हैं। हमारे उत्तराखंड में अल्मोड़ा, नैनीताल या पौड़ी गढ़वाल इसका उदाहरण है । व्याख्या करनी अनावश्यक है। ऑनलाइन शिक्षण कोरोना काल में लाजमी है लेकिन यह कामचलाऊ व्यवस्था है। यह व्यवस्था सिखा सकती है। संस्कारित नहीं बना सकती है।
बच्चों का उत्साह बनाएं रखें
शिक्षक और शिक्षार्थीयों को जोड़े रखने का यह एक माध्यम मात्र है। आंशिक रूप से विद्यालयों को बड़ी कक्षाओं से खोला जाना चाहिए जो कि लगभग जारी है। सोशल डिस्टेंसिंग मास्क, सुरक्षा उपाय पहले से ही सुनिश्चित किए गए हैं जो कि अच्छी बात है।
कुछ समय दो शिफ्ट में विद्यालय संचालित हुए हैं। जैसे 8:00 से 12:00 और 1:00 से 5:00 तक जिसके अच्छे परिणाम मिलें है। यह साल कोरोना की दूसरी लहर गतिमान है। ऐसे में लापरवाही बिल्कुल ना बरतें, अवश्य मास्क पहने ,सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखें, भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचें और बच्चों का धैर्य बनवा कर रखें । उन्हें हतोत्साहित करने के बजाए हर समय प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। क्योंकि इस महामारी का प्रभाव बच्चों पर आने वाले कई दशकों तक दिखाई देगा । इसलिए उनके प्रति सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखें ताकि वह किसी भी प्रकार की कुंठा, अवसाद से मुक्त रहें।
इसी के साथ ही शुभकामनाएं। कोरोना खत्म हो। जीवन का चरखा चले। लेख मैंने कुछ समय पूर्व लिखा था और काफी हद तक, इस लेख के अनुसार जैसे मेरे विचार थे उन पर अमल भी हुआ है। मैं आशा करता हूं कि देश में लॉकडाउन जैसी समस्या ना आए। कोरोना काल से जल्दी से जल्दी निपट जाए। विद्यालय सुचारू रूप से खुले और बच्चों का चहुंमुखी विकास हो सके। यह विद्यालय के अंदर हो विद्यालय की चारदीवारी के बाहर हो। खुले प्रांगण से लेकर घर तक, बच्चे की चहल कदमी, किलकारियां,पठन-पाठन ,आवाज सुनाई दे । इन्हीं शब्दों के साथ, एक बार पुनः धन्यवाद ।
लेखक का परिचय
कवि सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।

Website | + posts

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page