कहानीः शराबी का तगमा, लेखक-सोमवारी लाल सकलानी
शराबी का तगमा
साथियों की तसल्ली तब होती है, जब मैं शराब पी लेता हूं। इसके लिए चाहे उन्हें कितना भी खर्च क्यों ना करना पड़े। शुरुआत में वह इसे “टीका लगाना” कहते थे। बाद में शुकून और फिर सामाजिकता का नाम देते थे। संपूर्ण जीवन काल में तथा प्रौढ़ावस्था तक केवल एक ही व्यक्ति ऐसे थे, जो स्पष्ट सुझाव देते थे तथा शराब न पीने के लिए विनय पूर्वक अनुरोध तक कर लेते थे। कुछ साथी ऐसे भी थे, जिन्होंने कभी शराब छुई तक नहीं, लेकिन शराब पिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते थे। उन्होंने भले ही कभी 05 रुपये की चाय पी हो या पिलाई हो, लेकिन 100 रुपये की शराब पिलाने के लिए बहुत उत्सुक रहते थे।
सहजपाल गरीब घर में पैदा हुआ। घर में खाने के लाले पड़े रहते थे। खाने के लिए परिवार जनों के बीच प्रतिस्पर्धा होती थी। पेट भर जाने के पर भी नियत नहीं भरती थी। स्वान प्रवृत्ति मन मस्तिष्क में भर चुकी थी ।इसलिए बच्चों को संस्कारवान शिक्षा सुलभ नहीं थी ।
सहजपाल के पिता भी घुट्टी लगाने के शौकीन थे। भले ही कोई आर्थिक मदद न करें पर तीज त्योहार में उन्हें भी घुट्टी पिलाकर बहुत बड़ा उपकार समझते थे। सहजपाल और उसके भाई पिता की भाव भंगिमा के अंदाज देखकर खुश हो जाते थे।
वीरू ‘बड़े लोगों द्वारा दिया गया मान’ इसे कहता था और दो घूंट दारू के लिए अपने को आजीवन के लिए गिरवी रख लेता था। इसका कुछ असर उम्र के साथ-साथ सहजपाल पर भी आने लगा। “मां पर पूत पिता का घोड़ा बहुत नहीं तो थोड़ा-थोड़ा ” वाली कहावत चरितार्थ होने लगी ।
वीरू को तो लोग स्वार्थ व शराब पिलाते थे, लेकिन सहजपाल को उसका नैतिक पतन करने के लिए पिलाते थे। सहजपाल की मां बहुत धार्मिक महिला थी। अनपढ़ अवश्य थी, लेकिन सहजपाल के प्रति सजग रहती थी। आखिर बेटा था, पैदा किया था। पाला था । उसकी भावुकता को तो मां ही समझती थी। वह चाहती थी कि सहजपाल पढ़ लिख कर एक नेक इंसान बने। शराब ,नशा, धूम्रपान, शिकार, मांस भक्षण से दूर रहे। यद्दपि गरीबी ,भूख ,परेशानी ,सामाजिक और पारिवारिक प्रताड़ना से वह क्रूर भी बन जाती थी और छोटी-छोटी बातों के लिए झगड़ा भी कर दी थी। इसलिए परिवार और गांव में उसे झगड़ालू महिला भी कहते थे, फिर भी कुछ उसकी यह आदतन कमजोरी कहते थे और अच्छा व्यवहार भी करते थे ।
” सहजपाल ! बेटा तू दारू मत पीना। दारु पीने वाले को लोग नफरत करते हैं। उसे रोग हो जाता है। कभी-कभी तो उसका पतन भी हो जाता है। जुआ और शराब से पाप लगता है”, सहजपाल की मां ने बेटे को समझाते हुए कहा। “हां मां , तो ठीक ही कहती है। मैंने भी सुना है। गुरुजी भी एक बार हमें समझा रहे थे। किंतु मां गुरु जी भी तो दिवाली में दारू पीते हैं” सरल अंदाज में सहजपाल ने मां से कहा। “बेटा गुरुजी और मां-बाप की निंदा नहीं करते”। वह गलती कर सकते हैं पर बड़े होने पर बड़े होने के कारण समझदार भी होते हैं। भूल हो गई होगी। पर तू ऐसे कभी भूल मत करना “, सहजपाल की मां ने बेटे को समझाते हुए कहा।
मंगसीर के महीने गांव जब गुलजार रहते थे। लोग डांडो से अपने मवेशियों के साथ गांव उतर आते थे। 06 माह के लिए सूखी सब्जी, अन्न,बर्फ के समय के लिए लकड़ियां, पशुओं के लिए सूखी घास, इकट्ठे कर रखते थे। दिवाली के ठीक एक माह बाद उसी तिथि को रीख बग्वाल धूमधाम से मनाई जाती थी। कहते हैं कि जामवंत जी के लंका से वापस लौटने पर यह बगवाल मनाई गई थी। नौकरी पेशे वाले लोग गांव आते थे। खूब मंडान लगता था। बगवाल के ऐसे ही मौके पर एक बार सहजपाल के एक परिजन ने शराब पीनी शुरू कर दी। सुकमा ने पूछा कि वह क्या पी रहा है, बताया कि पकड़ो को पचाने वाली दवा है ।
सहजपाल 14 वर्ष का था उसके परिजन भाई ने भूल से शराब का गिलास सहजपाल के समीप रख दिया। भूल बस या उत्सुकता से सहजपाल उसे गटक गया। कुछ देर बाद उसे नशा महसूस होने लगा। फिर वह साथियों के साथ मंडान देखने चला गया। मंडाण में कई लोगों पर देवता नाच रहे थे। सहजपाल भी दारू के नशे में मंडान नाचने लगा। उसने ढोल को पकड़ लिया। लोगों ने समझा कि उस पर देवता आ गया है। धूंपाण दिया गया। सहजपाल को पूछा गया। सहजपाल ने नशे में कहा ,” बटुकनाथ भैरव”! “भैरव! ” आ रहा है। फिर क्या था जागर लगने लगे। गांव वालों ने समझा कि अवश्य उस पर भैरव आया होगा। क्योंकि 14 वर्ष के लड़के को शराबी के रूप में आज तक किसी ने नहीं देखा था। सुकमा और वीरु बहुत खुश थे कि अब उनके घर कभी भूत प्रेत नहीं आ सकता, क्योंकि बेटे पर भैरवनाथ आते हैं।
रात समाप्त होने को थी। मंडाण बंद हो गया। सब लोग अपने घरों को चले गए। सहजपाल भी घर आकर सो गया। सुबह उठा तो जी मिचल रहा था। उल्टी आ रही थी। दर्द से सिर फटा जा रहा था। रोज की तरह पानी लेने चला गया। रास्ते में उल्टियां करता रहा। धारे में पहुंचकर बंटा को पानी के नीचे लगाया। हाथों में असह्य दर्द हो रहा था। उंगलियां नीली पड़ गई थी। रात को जब उसने “दारू देवता ” के बस मे ढोल पकड़ा तो बाजगी ने ढोल पीटने की छड़ी से उसके हाथों को खूब मारा था। हाथों में अदृश्य दर्द हो रहा था। शायद दर्द हो रहा था अंगुलिया नीली पड़ गई थी। कई दिन तक हाथ दुखते रहे। सहजपाल का यह दुखद अनुभव था।
उसके बाद सहजपाल ने उम्रदराज होने तक शराब नहीं पी। स्कूली शिक्षा के बाद उच्च शिक्षा ही पढ़ने गया। एक नई दुनिया और किशोरावस्था भी थी। कई ऐसे सहपाठी मिल गई जो बीड़ी ,सिगरेट, भांग का नशा करते थे । सहजपाल बहुत सतर्क रहता था। बुराइयों से बचने का भरसक प्रयास करता था फिर भी शैतान ने पीछा नहीं छोड़ा।
गांव के एक पुराने साथी का विवाह था। पैदल की बरात थी। 14 मील पैदल एक तरफ से मार्ग था। मूसलाधार बारिश लगी थी। बिरादरी की बात थी। इसलिए बारात में तो जाना ही था। 4 मील पैदल चलने के बाद कच्ची शराब के भट्टियां मिलने लगी।
अधिकांश बराती शराब पी रहे थे। सहजपाल एक फौजी के साथ बातें करता चल रहा था। अचानक फौजी एक झोपड़ी में गया और एक लोटा कच्ची शराब गटक गया। फिर एक ढाबे जैसी दुकान मिली। वहां पर भी शराब का दौर चल रहा था। फौजी वहां भी एक लोटा पी गया। बस! फिर क्या था वह लड़खड़ाने लग गया। छुट्टी में घर आया था। शादी के समय का थ्री पीस सूट पहन रखा था। आकर्षक लग रहा था। पूरी बारात की शोभा था। 06 फुट का लंबा चौड़ा जवान। सुंदर शरीर। हीरो लग रहा था। अचानक पैर फिसला और रोपाई के लिए तैयार धान की क्यारी में जा गिरा। कीचड़ में डूब गया। शराब के नशे मे चूर था। उठ नहीं सका।
” सहजपाल बेटा ! मुझको बाहर निकाल। मुझे मत छोड़ना। बाघ खा जाएगा “,उसने कातर स्वर में कहा। सहजपाल कीचड़ युक्त खेत में गया। फौजी लड़खड़ा रहा था। उसने जकड़ कर पकड़ लिया। सहजपाल के वस्त्र भी कीचड़ में खराब हो गए। फौजी तो कीचड़ से भरा हुआ था। बमुश्किल सहजपाल उसे रास्ते पर लाया। फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।
बारात गांव के निकट पहुंच गई होगी। ढोल तक नहीं सुनाई दे रहे थे। कुछ दूर चलकर फौजी नीचे गिर गया। एक दूसरे गांव के लोग भी उसी गांव में कन्या पक्ष की तरफ से बरात समारोह में जा रहे थे। “अरे! यह तो बरात के मेहमान है। कैसे छूट गए “, एक ने कहा। “शराबी हैं साले। बहुत ही पी गए होंगे। चलो, छोड़ो इन सालों को”, दूसरे ने धीरे से कहा । “अरे भाई ! चाहे कुछ भी हो, लेकिन आज तो यह मेहमान हैं। ले चलो नीचे किसी गांव में टीका देंगे। यहां तो इन्हे बाघ खा जाएगा ” तीसरे व्यक्ति ने कहा। इसी तरह फौजी को दो आदमियों ने पकड़ कर एक गांव में पहुंचाया और टिकाया ।
सहजपाल चुपचाप उन्हीं के साथ चलने लगा। कन्या पक्ष वाले गांव में चिंता बढ़ गई। “कुछ बराती शराब पीकर रास्ते में छूट गए” उन्होंने सुना। दो-तीन लड़के पेट्रोमैक्स के साथ ढूंढने आ रहे थे, लेकिन जब पता चला कि शराबी फौजी को सायाणा के घर टिका दिया है तो वह भी वापस लौट चले।
रात का घुप अंधेरा था। पेट्रोमैक्स के रोशनी में जब सहजपाल को देखा तो कीचड़ से सना हुआ, कपड़े भी चूं रहे थे। गालों से भी कीचड़ टपक रहा था। बरात गांव पहुंच गई थी। गांव के लोग शराबियों को देखने के लिए उत्सुक थे। बेचारा सहजपाल बिना शराब पिए भी आज रजिस्टर शराबी के रूप में चर्चित हो गया। उस गांव के अधिकांश लोग उस के रिश्तेदार थे। शाही मेहमान को देखने के लिए लोग छज्जों के ऊपर खड़े हो गए। सहजपाल को देखकर ठहाके मारने लगे। सहजपाल बरात का मेहमान आज अपनी वेशभूषा पर आत्मग्लानि से भर गया। उसका पक्ष सुनने वाला आज कोई नहीं था। वह आज निर्लज्ज शराबी के रूप में जाना गया था। गांव के लड़के लड़कियां खूब उपहास कर रही थी। सहजपाल आज शराबी की संगत के कारण बिना शराब पिए शराबी घोषित हो गया। चुप चाप सोने चला गया ।
बारिश थम गई थी। सब लोग विवाह उत्सव में लीन थे। सहजपाल को उजाले के समीप जाने से डर लग रहा था। रात भर कमरे से बाहर नहीं आया। शराबी का ताम्रपत्र उसे मिल चुका था। अतः कोई समीप नहीं आया। बुजुर्ग महिलाएं घूर घूर कर देख रही थी। लड़कियों को उपहास कर रही थी। लड़के खिल्ली उतार रहे थे। भूखा प्यासा वह कमरे में पड़ा रहा। सुबह जब रात खुली तो उजाले में वह अपनी दशा देखकर दंग रह गया। कमीज के कालर तक कीचड़ से सने थे। जूतों के अंदर कीचड़ भरा था। बालों पर तक सूखा कीचड़ झड़ रहा था। सोचा ,”क्या नेक कार्य करने का यही दंड है”! धारे में गया जहां तक हो सके, सफाई की, लेकिन मिट्टी के दाग और चमकने लगे। वह रंगवा सियार जैसे लगने लगा।
अचानक उसे एक अधेड़ महिला का शोर सुनाई दिया। “छोरी कु गलू काट्याली। शराबी का मत्था मांर्याली “। महिला सहजपाल की पत्नी की करीबी थी। अपनी किसी देवरानी से कह रही थी , “देख माचू ! क्या प्रेत छ लगण लग्यूं। हमून त सुणी थौ, बीड़ी सिगरेट तक नि पेंदू पर यू त दरवालु छ” उन्होंने गुस्से में आकर अपनी सहेली से कहा। (लड़की का गला काट दिया, शराबी, देखो क्या प्रेत लग रहा है, हमने तो सुना था कि बीड़ी सिगरेट तक नहीं पीता, ये तो शराबी है) सहजपाल साफ-सफाई भी क्या देता।
” दीदी क्या बोल रही है! अगर यह न होते तो आज फौजी को बाघ खा जाता। यह बेचारा तो न शराबी है, न खराबी है। अच्छा इंसान है। अपने फौजी दादा को बड़ी मुश्किल से सेरों से निकाला। जिन्होंने फौजी के साथ शराब पी वह उसे छोड़ कर के भाग गए। जमकर दावत खाकर अपने घर वापस आ गए। इन्हे तो किसी ने पूछा तक नहीं। यह शराबी नहीं बल्कि इंसान है, इंसान। बरात में मेहमान इसीलिए होते हैं कि जाने-अनजाने कोई घटना घट जाए तो सहयोग करें। यह नहीं कि साथ खाएं और खिसक जाएं। वैसे भी इनके बारे में कौन नहीं जानता है। “धन्यवाद बेटी। तेरा गिच्चा घ्यू शक्कर। यन्नी हो (तेरे मुंह में शक्कर हो, ऐसा ही हुआ हो) “अधेड़ महिला ने कहा। लेकिन इलाके में तो सहजपाल को शराबी का ताम्रपत्र मिल चुका था ।
लेखक का परिचय
कहानीकार: सोमवारी लाल सकलानी
सुमन कॉलोनी चंबा टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
भौत सुंदर प्रेरणादायी कहानी, सुंदर??