यहां गुप्त स्थान पर खुले आसमान में रहते हैं भोले शंकर, एक बार ग्रामीणों ने छत बनाने की ठानी तो हुआ ऐसा
उत्तराखंड में एक स्थान ऐसा भी है, जहां महादेव खुले स्थान पर रहते हैं। साथ ही इस स्थान का कोई प्रचार प्रसार भी नहीं है। वीरान जंगल में पेड़ की छांव के नीचे स्थापित शिवलिंग के कारण इस स्थान को गुप्त कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। यहां विराजमान हैं दियूड़ी महादेव। गुप्त कैलाश अर्थात ऐसा तीर्थ जहां स्वयंभू भगवान शिव स्वयं विराजते हों। कैलाश मानसरोवर के अतिरिक्त मेरी जानकारी में यह एकमात्र ऐसा स्वयंभू शिवक्षेत्र है जहां भगवान शिव एक मंदिर में रहने की अपेक्षा स्वेच्छा से खुले आसमान के नीचे केवल एक वृक्ष की छाया में विराजमान हैं।
दियूड़ी का अर्थ
इस अद्भुत और गुप्त तीर्थ का नाम दियूडी महादेव है। संस्कृत में द्यौ शब्द आकाश, गगन के लिए प्रयुक्त किया जाता है और यह स्थान एक गगनचुंबी पर्वत चोटी पर स्थित है। इस कारण यह स्थानीय भाषा में दियूड़ी महादेव कहलाता है।
ऐसे पहुंचते हैं यहां
दियूडी महादेव के दर्शन के लिए आपको उत्तराखंड में ऋषिकेश बदरीनाथ राजमार्ग पर चमोली जिले के कर्णप्रयाग से बद्रीनाथ राजमार्ग पर कालेश्वर की दिशा में उमट्टा तक आना होगा। यहां से कच्ची सड़क से बरसाली होते हुए रैखाल से दियूडी गांव तक पहुंचा जा सकता है। यहां से आधा किलोमीटर ऊपर पैदल चलकर महादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त सिमरी क्षेत्र से डिम्मर होते हुए रेखाल और दियूड़ी पहुंचा जा सकता है और नाकोट होकर भी जाया जा सकता है। पैदल मार्ग से जाने वाले कर्णप्रयाग से ऊपर बरसाली के वनों के रास्तों से जा सकते हैं। कर्णप्रयाग यहां का मुख्य बाजार है।
प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा
इस शिवभूमि में पहुंचकर चारों ओर प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। खड़ी हिमालय की कई ऊंची चोटियों के दर्शन होते हैं। स्वयंभू शिवलिंग के ठीक उत्तर दिशा में वसुकेदार (खाल), उसके पीछे क्रौंच पर्वत के शिखर पर श्री कार्तिक स्वामी के मंगल दर्शन होते हैं। दक्षिण में नीचे पिंडर तट पर स्थित सिमली मां चण्डिका देवी का पावन मंदिर है, पूर्व में कनखुल गांव और पश्चिम में गौचर क्षेत्र दिखाई देता है ।
दो नदियों के संगम की पहाड़ी पर है मंदिर
सबसे रोचक बात रह है कि जिस पर्वत पर यह तीर्थ स्थित है, उसकी दाएं ओर अलकनंदा नदी बहती है और बाएं ओर पिंडर नदी बहती हैं। दोनों पवित्र नदियों का संगम इसी पर्वत की तलहटी पर होता है जहां कर्णप्रयाग स्थित है। यहीं उमा देवी का प्रसिद्ध सिद्ध तीर्थ है। मान्यता है कि देवी पार्वती ने इसी स्थान पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या की थी। पत्तों का भोजन भी त्याग दिया था, जिस कारण उनका नाम यहां अर्पणा भी पड़ा । यहां वे उमा देवी के नाम से जानी जाती हैं और उमा देवी का विश्व में एकमात्र मंदिर यहीं पर स्थित है ।
ये है धार्मिक व पौराणिक मान्यता
इस गुप्त कैलाश क्षेत्र के बारे में स्थानीय जनश्रुति है कि महादेव जी यहां स्वयंभू लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे। यह बात किसी को पता नहीं थी, किंतु पास के डिम्मर गांव की एक गो माता यहां सदैव आती थी। वह अपने दूध से शिवलिंग का अभिषेक करती थी। जब गाय पालने वाली को इसके बारे में पता चला तो उसने गौमाता का पीछा किया और वह इस तीर्थ तक पहुंची, जहां उसे इस स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन हुए। उसकी गो उस समय शिवलिंग का दुग्ध अभिषेक कर रही थी। तब ग्रामवासियों को इस स्वयंभू लिंग का पता चला और पूजन प्रारंभ हुआ।
ग्रामीणों ने बनाई थी मंदिर बनाने की योजना
दियूडी के महादेव जी मंदिर में बंद रहना पसंद नहीं करते, बल्कि नीले खुले आकाश के तले वृक्ष की छाया में विराजमान हैं। जहां शिवलिंग है, वहां चीड़ और क्वीराल का वृक्ष है। इनकी एक रोचक कथा है कि करीब 25 वर्ष पूर्व आसपास के ग्रामवासियों को इनके विषय में बोध हुआ तो उन्होंने यहां मंदिर बनाने का कार्य शुरू किया। उन्होंने महादेव के ऊपर छत डालनी चाही तो महादेव जी ने ग्रामवासियों को स्वप्न में आकर ऐसा करने से रोका। इसके बाद इस योजना का मुखिया बीमार पड़ गया। तब ग्रामवासियों नें महादेव का गर्भगृह बनाने का विचार त्याग दिया और पास ही में एक हवन कुण्ड बनाया ।
बारिश की कामना को करते हैं पूजा
बुजुर्ग बताते हैं कि जब गांव में वर्षा नहीं होती थी तो ग्रामवासी यहां आकर महादेव जी की पूजा करते थे। इसके बाद तुरंत वर्षा होती थी। उनके द्वारा यहां सत्तू का भोग चढाया जाता था। आस्था और विश्वास है कि जब भी कोई पवित्र भाव से यहां महादेव जी की अर्चना करता है तो दियूड़ी महादेव उसे मनवांछित वर देते हैं ।
लोगों को बहुत कम है यहां की जानकारी
दियूडी महादेव जी के मंदिर के विषय में इंटरनेट पर अत्यंत कम सामग्री उपलब्ध है। क्योंकि यह क्षेत्र अत्यंत गुप्त है। फिर भी इसे तीर्थ एवं पर्यटन मानचित्र पर लाकर अधिक से अधिक भक्तों भगवान के दर्शनों का पुण्य अर्जित कर सकते हैं।
लेखिका का परिचय
नाम – किरन पुरोहित “हिमपुत्री”
पिता -दीपेंद्र पुरोहित
माता -दीपा पुरोहित
जन्म – 21 अप्रैल 2003
अध्ययनरत – हेमवती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय श्रीनगर मे बीए प्रथम वर्ष की छात्रा।
निवास-कर्णप्रयाग चमोली उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।