अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’ की गढ़वाली गजल

ब्यटलौं क भोऽर चल़णू , हमरु घर- संसार च.
ब्यटलौं मीलु ऊं कु अधिकार, आज दरकार च..
ब्यटलौं न दे-लाड-प्यार, सैंति-पाऴी बड़ैं मनखी.
आज हमथैं- ब्यटलौं कि , हर-बात स्वीकार च..
किलै नि सुणे जांदि – मने जांदि, ब्यटलौं बात.
पैड़ि – लेखि बि, किलै- ब्यटलु बण्यूं लाचार च..
उनत बोल़णां कू , बड़ि- बड़ी बात बोलदा छवां.
दुन्यम आजबि, ब्यटलौं फरि हूंणूं अत्याचार च..
बस ! बातौं- ज्यू भ्वरैं – रस्म पुरैं, हूंण लगीं आज.
इन-उना, दिन-दिवस-बार मनांणा हुईं भरमार च..
नारि थैं ! मनखि माना, द्याखा- ब्वाला- बच्यावा.
दगड़्या सी बड़ैं राखा, समै की- इनी पुकार च..
चखुलि सी-उडड़ि द्यावा-फूल सी खिल़ड़ि द्यावा.
बाटौं का बंधन हटावा-मिटावा, इनि मनुहार च..
‘दीन’ ! ब्यटलौं थैं जांणा, कम करि नि द्याखा..
ब्यटलौं की- आस्था भोऽर, जीवन उद्दधार च.
कवि का परिचय
नाम-दीनदयाल बन्दूणी ‘दीन’
गाँव-माला भैंसोड़ा, पट्टी सावली, जोगीमढ़ी, पौड़ी गढ़वाल।
वर्तमान निवास-शशिगार्डन, मयूर बिहार, दिल्ली।
दिल्ली सरकार की नौकरी से वर्ष 2016 में हुए सेवानिवृत।
साहित्य-सन् 1973 से कविता लेखन। कई कविता संग्रह प्रकाशित।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. नारी का सम्मान हो- मान हो- पहचान हो.