ललित मोहन गहतोड़ी की कलम से लोकगीत-फागुन आई गयो हो
फागुन आई गयो हो…
फागुन आई गयो हो…
फागुन आई गयो होली छाय रही… फागुन आई…
चैत्र मास तुम घर से गये थे।।1।।
फागुन ऊंनू कहि गयो हो… फागुन आई…
मास बैशाख मोहे विरही लागै।।2।।
बिसरी बात भुलाई गयो हो… फागुन आई…
जेठ असाड़ में गर्मी सतावै।।3।।
घर घर पंख झुलाय गयो हो… फागुन आई…
सावन मास में झूला झूलै।।4।।
घर घर मंगल गाये गयो हो… फागुन आई…
भादों घने घने मेघा गरजै।।5।।
बिजुरी चमक डराय गयो हो… फागुन आई…
आशिवन फिर आशा जग गयी।।6।।
बाटो तुम्हारो चाई गयो हो… फागुन आई…
कार्तिक मास में शीतल चंदा।।7।।
विरही बात सताई गयो हो… फागुन आई…
मंगसिर मास में शीत है बढ़ रही।।8।।
तुम बिन रात बिताई गयो हो… फागुन आई…
पूस माह ठंड़ो अति लागे।।9।।
लकड़ी खूब जलाई गयो हो… फागुन आई…
माघ महात्मा घर में पधारे।।10।।
कुशल बाद सुनाई गयो हो… फागुन आई…
फागुन में तुम आऊनू कह गये।।11।।
झूठी बात बताई गयो हो… फागुन आई…
कवि का परिचय
नाम-ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।