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April 19, 2025

हरीश रावत की चेहरा घोषित करने की मुहिम जारी, तेज किया भ्रमण, सीएम के तलबगार, तलाश रहे भाजपा का तोड़

जिस तरह से उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत लगातार सक्रिय हैं, उससे साफ है कि वे अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दोबारा से दावेदारी को खुद को तैयार कर रहे हैं।

जिस तरह से उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत लगातार सक्रिय हैं, उससे साफ है कि वे अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दोबारा से दावेदारी को खुद को तैयार कर रहे हैं। फिलहाल कांग्रेस में सोशल मीडिया और भ्रमण अभियान के तहत ही वे अन्य नेताओं की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं। गढ़वाल और कुमाऊं के साथ ही हरिद्वार का दौरा कर रहे हैं। आए दिन सोशल मीडिया में मुद्दे उठा रहे हैं। सरकार को कई मुद्दों में घेर रहे हैं। साथ ही कांग्रेस में चेहरा घोषित करने की अपनी मांग को भी दोहरा रहे हैं। साथ ही चुनाव में मिली हार वोट प्रतिशत का आकलन कर भाजपा का तोड़ भी तलाश रहे हैं।
उनके हर दिन किसी न किसी जनपद में कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। हो सकता है कि कांग्रेस के दूसरे नेता भी सक्रिय हों, लेकिन जंगल में मोर नाचा किसने देखा वाली बात उन पर फिट हो रही है। क्योंकि हरीश रावत अपनी सक्रियता को सोशल मीडिया के जरिये भी लोगों के सामने ला रहे हैं। वहीं, कांग्रेस के कई सीएम के तलबगार नेताओं की सोशल मीडिया में उतनी सक्रियता तक नहीं नजर आती।
कल वह काशीपुर में थे और आज चंपावत में। इन स्थानों पर पहुंचकर वह सोशल मीडिया में पोस्ट डालना नहीं भूले। दौरे के दौरान वह पिछली हार का आंकलन कर रहे हैं। साथ ही चेहरा घोषित करने की मांग को लेकर कांग्रेस में भीतर ही भीतर समर्थन जुटाने में भी जुटे हैं। जिस गति से के सक्रिय हैं, उससे नहीं लगता कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के पद के लिए दावेदारी नहीं ठोकेंगे। कल ही उन्होंने काशीपुर, खटीमा दौरे को लेकर सोशल मीडिया में पोस्ट डाली जो इस प्रकार है-
आज काशीपुर में, फिर खटीमा में लोगों ने मुझसे कहा कि आपने हमको जिला नहीं दिया, बड़ी उम्मीदें थी। मैं, उनको कैसे समझाता कि मैं 9 नये जिले खोलने की पूरी तैयारी कर चुका था। 100 करोड़ रुपये का बजट का प्राविधान भी किया था। ज्यों ही 1 जिले को खोलने का प्रस्ताव आया तो सरकार डगमगाने लग गई।
उन्होंने आगे लिखा कि- उत्तराखंड में मुझसे बहुधा लोग सवाल करते हैं कि हमारी आशाओं का उत्तराखंड नहीं बना। लोग मुझसे और भी कुछ बड़े प्रश्नों पर कहते हैं कि आपने क्यों नहीं कर दिया? मैं कैसे उनसे विनती करूं कि मुझे तो बागडोर ही ऐसे समय में मिली, जब आपदा से ग्रस्त राज्य था और केंद्र में हमारी न सुनने वाली सरकार आ चुकी थी। इसके बावजूद भी मैंने सभी चुनौतियों को छूने की कोशिश की।
चेहरे को लेकर दिया ये तर्क
हरीश रावत ने लिखा कि- हाँ 2002 में मैं जानता हूं कि लोगों ने मेरे चेहरे पर वोट दिया। मैं जानता हूं वर्ष 2002 में लोगों ने यह मानकर के वोट किया कि हरीश रावत मुख्यमंत्री होगा। वर्ष 2012 में भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी, मगर बागडोर मेरे हाथ में नहीं आयी। मेरे हाथ में तो केवल अपेक्षाएं आयी। अब मैं एक ऐसे पड़ाव पर हूं कि जिनमें अपेक्षाओं के बोझ के साथ निवृत होना बहुत कठिन हो जायेगा! लोगों को हमारे जैसे राज्य में यह मालूम होना चाहिये कि जिस व्यक्ति को हम वोट दे रहे हैं उसका एजेंडा क्या है? ताकि पार्टी और लोग भी अपनी सोच को उसी के अनुसार ढाल सकें। इसलिये मैं मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने पर जोर दे रहा हूँ।
चुनाव में हार को लेकर किया आंकलन, सीमांत क्षेत्र में करेंगे दौरा
हरीश रावत ने आज सोशल मीडिया में पोस्ट के माध्यम से कहा कि वे फरवरी माह के आखिर तक सीमांत क्षेत्र का दौरा करते रहेंगे। उन्होंने लिखा कि-मैं आज ग्वैल देवता की धरती से जो हमारा उत्तराखंड का पुराना बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट कहलाते हैं, उस क्षेत्र में प्रवेश कर रहा हूं। मैंने तय किया है कि मैं फरवरी के आखिर तक जो हमारा चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी का सीमांत क्षेत्र है, वहां भी भ्रमण करूँगा। मैं इन क्षेत्रों में 2017 में कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले मतों का जब संख्यावार आकलन कर रहा हूं तो एक-दो स्थानों को छोड़कर कांग्रेस के उम्मीदवार 2012 में जितने मत उनको प्राप्त हुये थे, उन मतों को बचाए रखने में सफल हुये हैं।
हरीश रावत ने कहा कि चंपावत में जितने मत पाकर 2012 में हमारे उम्मीदवार 7000 वोटों से जीते थे, उतने ही मत पाकर हमारे उम्मीदवार बड़े अंतर से हार गये। विपक्ष को जो मत जाते थे, उन मतों का एकमुश्त ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में होने के कारण हम इन सीमांत क्षेत्रों में पराजित हुये। मेरे लिये यह बड़ा आघात था।
काम किया, लेकिन नहीं मिल पाया फायदा
उन्होंने आगे लिखा कि- मैंने अपनी डेवलपमेंटल स्ट्रेटेजी में इन पूर्व सीमांत क्षेत्रों और अब पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर और उधर चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी के जिले हैं, यहां के लिये योजनाबद्ध तरीके से असंभव कार्यों को संभव करवाया। मैंने यहां के मानवीय व डेवलपमेंटल पहलू को, दोनों के लिये योजनाबद्ध तरीके से काम किया। यह अलग बात है उसका जो फायदा मैं उम्मीद कर रहा था, चुनाव में वो नहीं मिल पाया।
वोट बैंक बचाने में रहे सफल
उन्होंने लिखा कि-यह तो सत्यता है कि इन क्षेत्रों में हमारा मत प्रतिशत 2012 का जब हम सरकार बनाने में सफल हुये थे, वो यथावत बना रहा। यह अलग बात है कि मेरी पार्टी में किसी ने इस तथ्य को एक्नॉलेज नहीं किया कि मोदी के प्रचंड वेग के खिलाफ भी हम 2017 में अपना 2012 का आधार वोट बचाये रखने में सफल हुए और मेरे इस भ्रमण का उद्देश्य वो गैप, जिस गैप ने भाजपा को विजयी बनाया है, उसका तोड़ ढूंढना है। देखता हूं, कुछ तोड़ ढूंढ पाया तो इन क्षेत्रों व कांग्रेस के लिये हो सकता है। शायद यह मेरी आखरी सेवा हो। मेरे इन क्षेत्रों के विशेष उल्लेख करने से यह आश्रय न लगाया जाय कि हमारी सरकार ने मध्य उत्तराखंड के जिलों भाभर, तराई, देहरादून व हरिद्वार के लिये पृथक-पृथक व समन्वित योजना बनाई। इन क्षेत्रों के लिये बनाई गई योजनाओं का मैं पृथक से उल्लेख करूँगा।

 

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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।

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