साहित्यकार मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी की कविता, आइये गायें सभी मिल गान वंदे मातरम
वंदे मातरम
आइये गायें सभी मिल गान वंदे मातरम्।
है हमारी अस्मिता पहचान वंदे मातरम्।।
इस देश के गौरव भरे इतिहास की थामे कमान।
है हमारे हाथ में अब आन वंदे मातरम्।।
सिंधुनद से सिंधु तक औ द्वीप के धुर छोर तक।
द्वारका से पूर्व में म्यांमार के इस ओर तक।।
क्षेत्र पाकिस्तान का भी और बंगला देश का।
है हमारा पूज्य ही अभिमान वंदे मातरम्।।
हिमवंत विंध्याचल अजंता मलय सह्य अरावली।
नल्लामलाई नीलगिरि या मिकिर मिशमी नग बली।।
सतपुड़ा मेकल शिवालिक गन्धमर्दन आदि का।
है मिला भरपूर ही वरदान वंदे मातरम्।।
सिंधु गंगा ब्रह्मपुत्रा नर्मदा गोदावरी।
और उनकी हर सहायक नीरपूरित निर्झरी।।
पूर्व में है महासरिता नीरभरिता आपगा।
कृष्ण कावेरी करें जलदान वंदे मातरम्।।
यह देश है श्रीराम का है कृष्ण का या बुद्ध का।
है तपस्या साधना का और साधन शुद्ध का।।
भौतिक समुन्नति और आध्यात्मिक प्रगति का देश है।
था है रहेगा जगत गुरु का स्थान वंदे मातरम्।।
हिन्दू मुसलमाँ पारसी सिख बौद्ध जैन सखा सभी।
हों इसाई या यहूदी या कि नास्तिक मित्र भी।।
सबका सुहाना देश है सबका यही सन्देश है।
फहरायेगा ऊँचा तिरंगा गान वंदे मातरम्।।
कृषक शिक्षक वीर रक्षक वणिक औद्योगिक श्रमी।
अर्थविद औ न्यायविद या मंत्रविद सब संयमी।।
क्रीड़क तथा अभिनय निपुण नाना कलोपासक महान्।
विज्ञानवेत्ता कर रहे यशवान वंदे मातरम्।।
सब पढ़ें शिक्षित बनें औ सब बढ़ें उन्नत बनें।
देशहित के हेतु ही प्रतिबद्ध हो हम पथ चुनें।।
स्वार्थ का ही भाव हो पर स्वार्थ परिधि असीम हो।
राष्ट्र को हम दें बना सुखखान वंदे मातरम्।।
कवि का परिचय
नाम: मुकुन्द नीलकण्ठ जोशी
शिक्षा: एम.एससी., भूविज्ञान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय), पीएचडी. (हे.न.ब.गढ़वाल विश्वविद्यालय)
व्यावसायिक कार्य: डीबीएस. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, देहरादून में भूविज्ञान अध्यापन।
मेल— mukund13joshi@rediffmail.com
व्हॉट्सएप नंबर— 8859996565
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।