राज्य विश्वविद्यालयों के संबद्धता संबंधी अव्यवहारिक फरमान से अधिकांश कॉलेज बंदी की कगार परः डॉ सुनील अग्रवाल

डॉ. सुनील अग्रवाल
निजी कॉलेज एसोसिएशन उत्तराखंड के अध्यक्ष डॉ सुनील अग्रवाल ने कॉलेजों की संबद्धता विस्तारण संबंधित राज्य विश्वविद्यालयों के अव्यवहारिक फरमान पर आपत्ति उठाई है। इस फरमान से राज्य के अधिकांश निजी कॉलेज बंदी की कगार पर पहुंच जाएंगे। ऐसे में प्रदेश सरकार और राज्य के विश्वविद्यालयों को जल्द इस संबंध में निर्णय लेना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
एक विस्तृत बयान जारी कर डॉ सुनील अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में राज्य विश्वविद्यालयों से संबद्ध निजी कॉलेजों में जब कोई कोर्स शुरू किया जाता है, तो उसके लिए विश्वविद्यालय के प्रत्येक वर्ष के संबद्धता शुल्क दिया जाता है। साथ ही प्रत्येक कोर्स के लिए एक प्राभुत राशि की फिक्स्ड डिपॉजिट की मूल प्रति विश्वविद्यालय में जमा करने का प्रावधान है। जो ट्रेडिशनल कोर्सों के लिए रुपए दो लाख एवं व्यावसायिक कोर्सों हेतु रुपए चार लाख निर्धारित रुपये थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने बताया कि विगत 14 दिसंबर 2016 के एक शासनादेश संख्या 649 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम 2009 का हवाला देते हुए उक्त प्राभुत राशि को अव्यावहारिक रूप से बढ़ाकर सामान्य कोर्स के लिए 15 लाख एवं व्यावसायिक कोर्स के लिए 35 लाख निर्धारित कर दिया गया। उस समय पर कॉलेजों की ओर से आपत्ति उठाई जाने पर शासन की एक कमेटी का गठन भी किया गया था, लेकिन एक बैठक के बाद कमेटी की फिर कोई बैठक नहीं हो पाई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ. अग्रवाल के अनुसार, इस बीच में कॉलेजों में नए कोर्स भी खुलते रहे और स्टूडेंट के एग्जाम्स भी होते रहे। कई कॉलेजों में विश्वविद्यालय से संबद्धता विस्तारण तीन-चार साल से नहीं हो पाया था, लेकिन छात्रों की परीक्षाएं होती रही। संबद्धता विस्तारण न होने के कारण छात्रों को छात्रवृत्ति की समस्या पैदा हुई। अब वर्तमान में राज्यपाल द्वारा राज्य विश्वविद्यालयों को 1 अप्रैल 2024 को पत्र जारी किया गया कि कॉलेजों की पिछले वर्षों की संबद्धता के प्रकरण तुरंत अनुमोदन के करके राजभवन भेजे जाएं। साथ ही 2025- 26 से संबद्धता के नए नियमों का पालन करवाया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने बताया कि राज भवन के उक्त पत्र के आलोक में राज्य विश्वविद्यालयों ने सभी कॉलेजों का भौतिक निरीक्षण कर लिया है। इसके बावजूद 2024 तक की संवाददाता विस्तारण के पत्र भी अभी तक कॉलेजों को नहीं भेजे गए हैं। अब वर्तमान 2025 -26 के सत्र के लिए सभी कॉलेजों को प्राभुत राशि रुपए 15 लाख और रुपए 35 लाख जमा करने के आदेश जारी कर दिए हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि हमारे उत्तराखंड के पैरेंटल स्टेट उत्तर प्रदेश में सन 2002 से जो प्राभुत राशि निर्धारित की गई थी, वह अभी तक यथावत है। ये राशि विभिन्न कोर्सों के लिए 2 लाख से रुपए से लेकर 6 लाख तक निश्चित है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उन्होंने कहा कि यहां यह भी उल्लेखनीय है की विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम 2009 में जहां प्राभुत राशि का प्रावधान किया गया है, वहां स्पष्ट उल्लेख है कि इसका निर्धारण संबद्धता देने वाली अथॉरिटी की ओर से भी किया जा सकता है। यानी यह प्राभुत राशि बाध्यकारी नहीं है। कोविड के समय जब कॉलेज के समक्ष स्टाफ को सैलरी देने की समस्या हुई तो विश्वविद्यालय से स्टाफ को सैलरी देने के लिए उक्त प्राभुत राशि के इस्तेमाल के लिए अनुरोध किया गया था, लेकिन इसकी अनुमति नहीं मिली। इससे साफ है कि इस प्राभुत राशि का कॉलेज संकट काल में भी कोई इस्तेमाल नहीं कर सकते। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ अग्रवाल ने कहा कि मेरी जानकारी में यह भी आया है कि अभी तक किसी अन्य प्रदेश ने प्राभुत राशि को इस तरह से अव्यवहारिक रूप से नहीं बढ़ाया है। हमारी प्रदेश सरकार में तो किसी भी नीति को बिना उसके गुण दोष समझे सबसे पहले लागू करने की जैसे होड़ सी लगी रहती है। वैसे ही छोटे से उत्तराखंड में निजी विश्वविद्यालयों की भरमार राज्य सरकार द्वारा कर दिए जाने से कॉलेजों में छात्रों का अभाव हो चुका है। ऐसे में राज्य विश्वविद्यालयों के इस फरमान से कॉलेजों के सामने अपने कोर्सों को बंद करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डॉ. सुनील अग्रवाल ने बताया कि इस संबंध में निजी कॉलेज एसोसिएशन की पिछले दिनों वर्तमान उच्च शिक्षा सचिव डॉ रणजीत सिंहा से सकारात्मक वार्ता हुई है। अभी तक कोई राहत नहीं मिलने के कारण और विश्वविद्यालयों के ताजा फरमान से अधिकांश कॉलेज अपने कोर्स सरेंडर करने का मन बना चुके हैं।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।