युवा कवि सूरज रावत की कविता- लोग पहाड़ मैदान करते रहे, यहाँ मैदान पहाड़ दोनों सूख गये

लोग पहाड़ मैदान करते रहे,
यहाँ मैदान पहाड़ दोनों सूख गये,
लोग राजनीति के गीत गाते रहे,
यहाँ लाखों लोग रोजगार से चूक गये,
अरे पहाड़ी मैदानी लड़ाई बंद करो,
राजनीति की आग सुलगाई बंद करो,
क्या होगा हमारे नौजवानों का
कोई इसका तो जरा प्रबंध करो, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
आये दिन बेरोजगार पलायन कर रहे हैं,
आये दिन तंगी महंगाई के दिन बढ़ रहे हैं,
कैसे होगा उत्तराखंड का विकास
जरा इसका अब विचार करो,
ये पहाड़ मैदान की लड़ाई अब बंद करो,
यहाँ की नदियाँ खेत खलियांन, बंजर होते जा रहे हैं,
नौजवान बेरोजगारी का बोझ ढोते जा रहे हैं,
खुद की तानाशाही, खुद की बड़ाई अब बंद करो,
ये पहाड़ मैदान की लड़ाई अब बंद करो, (कविता जारी अगले पैरे में देखिए)
पर्यटन के नाम पर उत्तराखंदी गंदगी के आगोश में है,
हर नवयुवक, हर जनमानस अफ़सोस में है,
उत्तराखंड को बचाने का अब प्रयत्न करो,
ये पहाड़ मैदान की लड़ाई अब बंद करो,
अरे सुनो पहाड़ भी अपना है, मैदान भी अपना है,
बस इन नेताओं को तो अपनी कुर्सी का सपना है,
तुम पहाड़ी, हम मैदानी कहना अब बंद करो,
अब एकजुट होकर, उत्तराखंड की मजबूती का संकल्प करो,
ये पहाड़ मैदान की लड़ाई अब बंद करो।
कवि का परिचय
सूरज रावत, मूल निवासी लोहाघाट, चंपावत, उत्तराखंड। वर्तमान में देहरादून में निजी कंपनी में कार्यरत।
नोटः सच का साथ देने में हमारा साथी बनिए। यदि आप लोकसाक्ष्य की खबरों को नियमित रूप से पढ़ना चाहते हैं तो नीचे दिए गए आप्शन से हमारे फेसबुक पेज या व्हाट्सएप ग्रुप से जुड़ सकते हैं, बस आपको एक क्लिक करना है। यदि खबर अच्छी लगे तो आप फेसबुक या व्हाट्सएप में शेयर भी कर सकते हो।

लोकसाक्ष्य पोर्टल पाठकों के सहयोग से चलाया जा रहा है। इसमें लेख, रचनाएं आमंत्रित हैं। शर्त है कि आपकी भेजी सामग्री पहले किसी सोशल मीडिया में न लगी हो। आप विज्ञापन व अन्य आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं।
वाट्सएप नंबर-9412055165
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।