उत्तराखंड के पहले सीएम नित्यानंद स्वामी की 97वीं जयंती आज, किसी सरकार ने आज तक नहीं ली सुध

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री ब्रह्मलीन नित्यानंद स्वामी की आज 97वीं जयंती है। वह देवभूमि उत्तराखंड (तब उत्तरांचल) राज्य के पहले मुख्यमंत्री रहे। सादगी, कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के कारण वह विशिष्टता से जाने जाते रहे। बीजेपी के इस नेता की मृत्यु के बाद ना तो कांग्रेस की सरकार ने और ना ही बीजेपी की सरकार ने उनकी सुध ली। उनके नाम पर किसी स्कूल या सड़क आदि का नाम नहीं रखा गया। ना ही उनकी प्रतिमा ही कहीं लगाई गई। ऐसे में स्वामी की अंतिम सांस तक उनके साथ सेवारत रहे उनके विशेष कार्याधिकारी योगेश अग्रवाल ने दुख प्रकट किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सरकारी आवास को त्यागा
डॉ. योगेश अग्रवाल दिवंगत मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के बारे में बताते हैं कि देवभूमि उत्तरांचल में ईमानदारी, निष्ठा से काम करने वाले, प्रथम मास से राज्य कर्मियों को वेतन प्रदान करवाने वाले मुख्यमंत्री रहे हैं। मात्र छः माह में ही उनके प्रयास से राज्य को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा प्रदान किया गया। मुख्यमंत्री पद की शपथ के बाद उन्होंने सरकारी आवास का त्याग कर दिया और देहरादून में कांवली रोड स्थित मात्र अपने दो कमरों के आवास पर ही रहे। वे ऐसे मुख्यमंत्री रहे कि कोई भी उनसे आसानी से मुलाकात कर सकता था। वह किसी भी संस्था या संगठन के आमंत्रण के बाद कार्यक्रम में पहुंचने का हर भरसक प्रयास करते थे। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मित्र पुलिस की अवधारणा
अपने मात्र 11 माह 20 दिन के कार्यकाल में ही नित्यानंद स्वामी ने देवभूमि उत्तरांचल में मित्र पुलिस की अवधारणा को राज्य में धरातल पर उतारने का ऐतिहासिक कार्य किया। पर्वतीय क्षेत्रों से पेयजल, स्वास्थ्य और शिक्षा का कार्य प्रारंभ करने तथा 15 नये डिग्री कालेज खोलने का कार्य किया। साथ ही 50 से भी अधिक स्कूलों का उच्चीकरण का कार्य किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नहीं दिया उन्हें कोई सम्मान
योगेश अग्रवाल के मुताबिक, भरसक प्रयासों के बावजूद देवभूमि उत्तराखंड राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. नित्यानंद स्वामी की स्मृति में उनके नाम पर किसी शिक्षण संस्थान, महाविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, पॉलिटेकनिक केन्द्र, सड़क, चौक का नाम नहीं किया गया। ना ही, उनकी आदमकद प्रतिमा अथवा भव्य स्मारक आदि बनवाने में किसी भी सरकार ने कोई रूचि नहीं दिखाई। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
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पूर्वजों को याद करने की प्रथा में परिवर्तन की प्रथा शुरू
योगेश अग्रवाल कहते हैं कि ऐसा लगता है कि अब शायद अपने पूर्वजों को सम्मान या स्मरण करने की परम्पराओं में अब परिवर्तन की प्रथा प्रारम्भ हो गयी है। देवभूमि उत्तराखंड राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री ईमानदारी, निष्ठावान समर्पित समाज सेवी, प्रख्यात विधि विशेषज्ञ सर्व सुलभ नित्यानंद स्वामी को शासन और प्रशासन की ओर से यूं भूला पाना किसी भी प्रकार से राज्य वासियों के गले नहीं उतरता। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

नित्यानंद स्वामी का जन्म 27 दिसंबर 1927 में हरियाणा राज्य में हुआ था, लेकिन उन्होनें अपना लगभग सारा जीवन देहरादून में बिताया। जहाँ पर उनके पिता भारतीय वानिकी संस्थान में कार्यरत थे। उनका विवाह चन्द्रकान्ता स्वामी से हुआ और उनकी चार बेटियाँ हैं। कम आयु में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ गए और देहरादून में उन्होंने स्थानीय विरोधों में भागीदारी की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पेशे से रहे वकील, यूपी विधानपरिषद में रहे अध्यक्ष
व्यावसायिक रूप से वकील, स्वामी ने जनसंघ के अन्तर्गत सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। नित्यानन्द पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गए और बाद में भारतीय जनता पार्टी में पहुँचे हैं। राजनीति की सीढ़ी चढ़कर वह गढ़वाल और कुमाऊँ के सबसे बड़े (क्षेत्र-वार) स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद में चुने गए। वह 1991 में उत्तर प्रदेश विधान परिषद के उपाध्यक्ष बने और 1992 में सर्वसम्मति से उसी के अध्यक्ष चुने गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिया था त्यागपत्र
वर्ष 2000 में उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) के पृथक राज्य बनने पर, भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें नए राज्य के मुख्यमन्त्री का पदभार सम्भालने के लिए कहा। उन्होने नौ नवम्बर 2000 से 29 अक्टूबर 2001 तक मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। फिर भाजपा के कहने पर भगत सिंह कोश्यारी के पक्ष में पद त्याग दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
लगातार हारे दो चुनाव
यह उत्तराखंड में राज्य के पहली बार चुनाव हुए तो अपने निवास चुनावक्षेत्र लक्ष्मण चौक (देहरादून नगर) से नित्यानंद स्वामी राज्य विधानसभा के लिए दो चुनाव लड़े। वर्ष 2002 और 2007 के दोनों ही चुनाव में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल से हार गए। 12 दिसम्बर 2012 को 84 वर्ष की आयु में संयुक्त आयुर्विज्ञान संस्थान (सीएमआई), देहरादून में उनका निधन हो गया था।
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