युवा कवयित्री अंजली चंद की कविता- मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाती हैं

मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाती हैं,
मैं अगर थोड़ा सा दूर हो जाऊं ख़ुद से,
तन्हाई उसी मोड़ पर रुके रहती है,
फ़िर पास खुद के आऊ तो तन्हाई हाल मेरा मुझसे पूछती है,
भीड़ में खो जाऊ तो गायब हो जाती है,
पड़ जाऊं अकेली तो फिर से साथ आ जाती है,
इतनी वफादारी से साथ निभाती है
साझा कहीं कुछ करूं तो इजाज़त देकर चली जाती है
साझा न कर पाऊं तो घंटों पास बैठकर भी बस सुनते जाती है,
पिरोते हैं हिम्मत की डोर, संभालते हैं,
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में जब साथ आ जाते हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिन के उजाले के चकाचौंध से जब मन एकांत ढूंढ़ता है
तब रात के पहर तन्हाई सुकून की चादर ओढ़े बस सुनता है,
जब जब भीड़ से असफलताओं का ताना मिलता है
तब अकेले में तन्हाई और एक प्रयास का साहस देता है,
जब कभी राह में भटकाव टकरा जाए,
मन इस भटकाव को समझ ना पाए,
तब मन में वास्तविकता लाकर
ये तन्हाई ही सही राह दिखाती है
जब कभी दिन का उजाला,
रात का अंधेरा डराने लगे
अकेलेपन का एहसास कराने लगे,
तब तन्हाई एक रोज़ फुर्सत से समझाती है
कराती है रूबरू अकेलेपन और एकांत मन से,
ये तन्हाई अंतर बतलाती है काल्पनिक और वास्तविकता का
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाते हैं, (कविता जारी, अगले पैरे में देखिए)
कहीं से बिखरकर, उम्मीदों से टूटकर,
अपने क़िरदार को अपने में ही खोकर
अज़ीज़ का साथ छोड़कर,
ग़म को अपने नाम करकर
छल को पाकर,खुद को खोकर
होठों को सिलकर, ख़ामोशी को सीखकर
सपनों को कुचलकर,
हर दर्द को पाकर, हर ख़ुशी खोकर,
इच्छाओं को त्यागकर,
दिखावटी हंसी सीखकर ,
मैं और मेरी तन्हाई आख़िर में साथ आ ही जाते हैं।
कवयित्री का परिचय
नाम – अंजली चंद
खटीमा, उधमसिंह नगर, उत्तराखंड। पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हैं।
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Bhanu Bangwal
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।