ना ई़डी और ना सीबीआई, फिर भी पूर्व मंत्री दिनेश ने छोड़ी कांग्रेस, कहीं क्रशर और रिसोर्ट का मामला तो नहीं?

इन दिनों कांग्रेस के कई दिग्गज पार्टी छोड़ रहे हैं। पार्टी छोड़ने के कुछ ही दिन में वे बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे मामलों में बीजेपी पर आरोप लगते रहे हैं कि ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों की जांच के चलते ही लोग बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। ऐसे उदाहरण पूरे देश भर में मिल जाएंगे। इसी तरह उत्तराखंड में भी कई पुराने कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़ी और बीजेपी में शामिल हुए। इनमें ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं है, जो राजनीति के साथ ही व्यावसायिक पृष्ठभूमि के हैं। ऐसे में लोगों का मानना है कि जब कारोबार ही चौपट हो जाएगा, तो वे कब तक बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस में रहकर लड़ाई लड़ेंगे। ऐसे में पार्टी में उपेक्षा, नेतृत्व से नाराजगी को आधार बनाकर पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी है। इनमें ऐसे लोग हैं, जो पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। साथ ही पूर्व में विधायक भी रह चुके हैं। हालांकि, इनमें ज्यादातर ये भी जानते हैं कि बीजेपी में जा रहे नेताओं की भीड़ में वह गुमनाम हो जाएंगे। इसके बावजूद ऐसे मौके पर पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी है, जब लोकसभा चुनाव के लिए मतदान की तिथि निकट आ रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं में शनिवार को एक नाम और शामिल हो गया है। पूर्व कैबिनेट मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिनेश अग्रवाल ने शनिवार को पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने अपना त्यागपत्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा को भेजा है। इसके एक दिन बाद ही वह आज रविवार सात अप्रैल को भाजपा में शामिल हो गए हैं। दिनेश अग्रवाल की गिनती कांग्रेस की विचारधारा से गहरे जुड़े नेताओं में होती रही है। वह तीन बार विधायक तो रहे। साथ ही कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार और हरीश रावत सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। गत दिन पार्टी की ओर से जारी 40 स्टार प्रचारकों की सूची में उन्हें भी स्थान दिया गया। यह सूची जारी होने के एक दिन बाद ही दिनेश अग्रवाल ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिनेश अग्रवाल एक वकील हैं और उनके परिवार के सदस्य व्यवसायी हैं। उनके भाई के पहले शराब के ठेके हुआ करते थे। वहीं दिनेश अग्रवाल का हरिद्वार में क्रशर है और देहरादून में रिसोर्ट भी है। हालांकि, कई दूसरे नेताओं की तरह उन पर ईडी और सीबीआई का दवाब नहीं था। ऐसे में उनके कांग्रेस को छोड़ने के पीछे पार्टी में उपेक्षा को माना जा रहा है। वहीं, सवाल ये भी उठता है कि जो व्यक्ति तीस साल से ज्यादा समय कांग्रेस को दे चुका हो, वह स्थानीय स्तर से नेताओं की उपेक्षा से इतना नाराज नहीं हो सकता है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्रशर और रिसोर्ट को लेकर दबाव के चलते ही कहीं उन्होंने कांग्रेस का साथ तो नहीं छोड़ा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
उनके अब बीजेपी में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं। हो सकता है कि हम इस मामले में गलत हों कि उन पर दबाव बनाया गया। वहीं, देखा जाए तो महाराष्ट्र में अजीत पवार, बंगाल में सुवेंदु अधिकारी, असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा, बंगाल में सारदा चिटफंड घोटाले के आरोपी मुकुल रॉय के साथ ही नारायण राणे, पेमा खांडू, प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल सहित ऐसे देश में बड़े नेताओं के साथ ही छोटे नेताओं की लंबी लिस्ट है, जो अपने अपने दलों को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए। ऐसे नेताओं के खिलाफ एजेंसियो ने शिकंजा कसा हुआ था। बीजेपी में जाते ही इनमें कई पर जांच बंद हो गई। या ठंडे बस्ते में डाल दी गई। यही नहीं, कारोबारियों की भी ऐसी लंबी सूची है, जिनकी जांच चल रही थी और उन्होंने इलेक्टोरल बांड के जरिये बीजेपी को करोड़ों का चंदा दिया। कई ने जेल में जाने के बाद चंदा दिया तो कुछ ने पहले। ऐसे में ईडी ने भी उनकी जमानत का विरोध नहीं किया। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
दिनेश अग्रवाल देहरादून बार एसोसिएशन में भी लंबे समय तक पदाधिकारी रहे। वह शहर जिला और कांग्रेस के लंबे समय तक अध्यक्ष कभी रहे। 1993 और 1996 में उत्तर प्रदेश के समय देहरादून विधानसभा सीट से चुनाव लड़े, लेकिन हरबंस कपूर से हार गए। राज्य बनने के बाद 2002 व 2007 में लगातार दो चुनाव में उन्होंने लक्ष्मण चौक सीट पर नित्यानंद स्वामी को हराया। फिर 2012 में धर्मपुर विधानसभा सीट पर प्रकाश ध्यानी को हराकर विधायक बने। 2017 के चुनाव में वह भाजपा के विनोद चमोली से हार गए। इसके बाद 2018 में मेयर नगर निगम का चुनाव भी हार गए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
नेताओं ने की मनाने की कोशिश
इन दो हार के बाद से दिनेश अग्रवाल पार्टी में तो रहे, लेकिन उनकी भूमिका ज्यादा प्रभावशाली नहीं थी। पिछले कुछ दिनों से उनके बगावती सुर सुनने को मिलने लगे थे। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पार्टी प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने उन्हें मनाने की पुरजोर कोशिश की। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
लंबे समय से पार्टी से चल रहे थे नाराज
बताया तो ये जा रहा है कि दिनेश अग्रवाल प्रदेश कांग्रेस संगठन से लंबे समय से नाराज चल रहे थे। संगठन में जिला व महानगर स्तर पर की गई नियुक्तियों को लेकर उन्होंने कुछ दिन पहले भी नाराजगी जताई थी। इसके बाद पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने उनके आवास पहुंचकर लगभग तीन घंटे तक वार्ता की। इसके बाद अग्रवाल की नाराजगी दूर हुई, लेकिन इस मामले में प्रदेश संगठन और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जिस प्रकार दूरी बनाए रखी, उससे अग्रवाल ने पार्टी से अलग राह लेने का निर्णय किया। दिनेश अग्रवाल ने प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा को संक्षिप्त पत्र में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देने का उल्लेख किया है। वह बीजेपी में शामिल तो हो गए, लेकिन उन्हें उस विचारधारा वाली पार्टी में खुद को ढालना होगा, जिसे लेकर वे तीस से ज्यादा समय से हमले करते रहे।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।
कांग्रेस पार्टी में लंबे समय से रहे लोगों का पलायन होना बता रहा है कि वह अधिक समय सत्ता लालच से दूर नहीं रह सकते हैं ।उन्हें कहीं ना कहीं से कुछ पद चाहिए। तीन बार के विधायक, कोई दो बार का विधायक ,कोई मंत्री रह चुके है ।इतना सब कुछ मिलने के बाद भी जाहिर है कि उन्हें अपने खाने-पीने में कोई कमी तो महसूस हो रही है। इसलिए वह विचारधारा को छोड़ने के लिए मजबूर है।
दिनेश अग्रवाल बालिग हैं विधायक और मंत्री रहे हैं। उत्तराखंड की सबसे बड़ी बार एसोसिएशन के सचिव और अध्यक्ष रहे हैं।
कांग्रेस छोड़ने उन्हें जो विशिष्ट लाभ होने की संभावना हो अग्रवाल ही जानते होंगे, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने का कारण बतायेंगे उसकी आशा नंही है। हमारी शुभकामनाएं।